हर धर्म में धार्मिक यात्रों का विशेष महत्त्व है. ये धार्मिक यात्राएं मनुष्य और ईश्वर के प्रेम को और भी मजबूत करती हैं. हर धार्मिक यात्रा उस धर्म के अनुयाइयों के लिए किसी पवित्र उत्सव से काम नहीं होती. इस लेख में जानें हज यात्रा के बारे में.
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Imprtance of Haj: हज इस्लाम में एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है. इस्लाम में पांच फर्ज बताए गए हैं. कलमा, रोजा, नमाज, जकात और हज. कलमा का अर्थ है पैगंबर मोहम्मद साहब और उसके रसूल पर यकीन रखना. रोजा का मतलब है रमजान के समय एक तरह का उपवास करना. नमाज यानि खुदा को याद करना. जकात अर्थात दान पुण्य करना और पांचवां है हज करना. हज यानि तीर्थ यात्रा.
हज क्या है
हज अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है यात्रा करने का इरादा करना. इस्लामिक धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हर मुसलमान को पूरे जीवन में कम से कम एक बार हज यात्रा जरूर करनी चाहिए. इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार , पैग़ंबर इब्राहिम को अल्लाह ने एक तीर्थस्थान बनाने के लिए कहा था. अल्लाह के आदेश का पालन करते हुए इब्राहिम और उनके बेटे इस्माइल ने पत्थर से एक छोटा सी इमारत बनाई. इसी को क़ाबा कहा जाता है. कहते हैं बाद में यहाँ अलग अलग रूपों में ईश्वर की पूजा होने लगी.
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ऐसा माना जाता है कि आखिरी पैगम्बर हजरत मोहम्मद को अल्लाह ने हुक्म दिया कि वह काबा को पहले की तरह रखें और वहां केवल अल्लाह की इबादत होने दें. साल 628 में स्वयं पैगम्बर मोहम्मद ने अपने अनुयाइयों के साथ इस स्थान की पहली तीर्थ यात्रा की. इस धार्मिक परम्परा को हज कहा गया. इसके बाद हर साल दुनियाभर के मुस्लिम सऊदी अरब के मक्का में हज के लिए पहुंचते हैं. हज में पांच दिन लगते हैं और ये ईद उल अज़हा या बकरीद के साथ पूरी होती है.
इस साल सऊदी अरब ने बदले ये नियम
अनुमान है कि इस साल 26 जून से हज यात्रा शुरू हो जाएगी. इस साल 90 दिनों के लिए टूरिस्ट वीजा पर सऊदी अरब जाने वाले लोग हज के समय में हज और उमरा नहीं कर पाएंगे. सऊदी अरब के हज और उमरा मंत्रालय ने कहा कि पर्यटक वीजा समाप्त होते ही यहाँ से चले जाएं. साथ ही इस साल मक्का में दाखिल होने के लिए व्यक्ति और वाहन दोनों का परमिट दिखाना अनिवार्य होगा.