पृथ्वीराज और आल्हा-ऊदल के युद्ध का साक्षी है मां शारदा का यह मंदिर, बड़ी दिलचस्प है कहानी
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पृथ्वीराज और आल्हा-ऊदल के युद्ध का साक्षी है मां शारदा का यह मंदिर, बड़ी दिलचस्प है कहानी

Bairagarh Sharda Devi Mandir: यह शारदा देवी का मन्दिर जालौन के मुख्यालय उरई से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम बैरागढ़ में सिथित है. यहां पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा के रूप में विराजमान हैं. मां शारदा देवी की अष्टभुजी मूर्ति लाल पत्थर से निर्मित है...

पृथ्वीराज और आल्हा-ऊदल के युद्ध का साक्षी है मां शारदा का यह मंदिर, बड़ी दिलचस्प है कहानी

जितेन्द्र सोनी/जालौन: नवरात्र के त्योहार पर 9 दिन मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है. आइए हम आपको उस ऐतिहासिक मन्दिर की ओर ले चलते हैं जो आखिरी हिन्दूराजा पृथ्वीराज और बुन्देलखंड के वीर योद्धा आल्हा-ऊदल के युद्ध का आज के समय में भी गवाह बना है. यह मन्दिर जालौन जिले के बैरागढ़ गांव में स्थित है, जो शक्ति पीठ शारदा देवी मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है. यहां जालौन से ही नहीं, बल्कि पूरे दूर-दराज के क्षत्रों से भी लोग दर्शन करने के लिए आते हैं. यहां पर केवल नवरात्र ही नहीं, बल्कि पूरे 12 माह भक्तों का तांता लगा रहता है. नवरात्र पर यहां भव्य आयोजन किए जाते हैं.

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आदिकाल में बना था मंदिर, कुंड में मिली थी मां की मूर्ति
यह शारदा देवी का मन्दिर जालौन के मुख्यालय उरई से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम बैरागढ़ में सिथित है. यहां पर ज्ञान की देवी सरस्वती मां शारदा के रूप में विराजमान हैं. मां शारदा देवी की अष्टभुजी मूर्ति लाल पत्थर से निर्मित है. मां शारदा का शक्ति पीठ बैरागढ़ मन्दिर की स्थापना चन्देलकालीन राजा टोडलमल द्वारा 11वीं सदी में कराई गई थी. जबकि किवदंतियों के अनुसार यह मन्दिर आदिकाल में बना है. मान्यता है कि मां शारदा की मूर्ति मन्दिर के पीछे बने एक कुंड से निकली थी.

तीन रूपों में दिखती है मूर्ति
प्राचीन किवदंतियों के अनुसार कुंड से मां शारदा प्रकट हुई थीं. इसीलिए इस स्थान को शारदा देवी सिद्ध पीठ कहा जाता है. मां शारदा शक्ति पीठ के बारे में दर्शन करने वाले लोगों के अनुसार, मूर्ति तीन रूपों में दिखाई देती है. सुबह के समय मूर्ति कन्या के रूप में नजर आती है, तो दोपहर के समय युवती के रूप में और शाम के समय मां के रूप में मूर्ति दिखाई देती है. देवी के दर्शन के लिये पूरे भारत वर्ष से श्रद्धालु यहां आते हैं.

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क्या है पृथ्वीराज और आल्हा से कनेक्शन
मां शारदा शक्ति पीठ पृथ्वीराज और आल्हा के युद्ध की साक्षी है. पृथ्वीराज ने बुन्देलखंड को जीतने के उद्देश्य से 11वीं सदी के बुन्देलखंड के तत्कालीन चन्देल राजा परमर्दिदेव (राजा परमाल) पर चढ़ाई की थी. उस समय चन्देलों की राजधानी महोबा थी. आल्हा-ऊदल राजा परमाल के मंत्री के साथ वीर योद्धा भी थे. बैरागढ़ के युद्ध मे आल्हा-ऊदल ने पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में बुरी तरह परास्त कर दिया था. बताया गया कि आल्हा और ऊदल मां शारदा के उपासक थे.  

मां ने आल्हा ऊदल को दिया था वरदान
आल्हा को मां शारदा का वरदान था कि उन्हें युद्ध में कोई नहीं हरा पाएगा. ऊदल की मौत के बाद आल्हा ने प्रतिशोध लेते हुए अकेले पृथ्वीराज से युद्ध किया और विजय प्राप्त की थी. उसके बाद आल्हा ने विजय स्वरूप मां शारदा के चरणों के बगल में सांग गाढ़ दी. पृथ्वीराज चौहान सांग को न ही उखाड़ सके और न ही सांग की नोंक को सीधा कर पाए. इसके बाद आल्हा ने युद्ध से बैराग ले लिया. 

आल्हा के बैराग लेने पर नाम पड़ा बैरागढ़
सांग आज भी मन्दिर के मठ के ऊपर गढ़ी है. यह सांग 30 फिट से भी ऊंची है और जमीन में इतनी ही गड़ी हुई है. मन्दिर में आल्हा द्वारा गाड़ी गई सांग इसकी प्राचीनता दर्शाती है. जब आल्हा ने युद्ध से बैराग लिया, तभी से यहां का नाम बैरागढ़ पड़ गया. 

देश में दो जगह है यह मंदिर
देश में यह मन्दिर दो ही स्थान पर है. एक जालौन के बैरागढ़ में और दूसरा मध्य प्रदेश के सतना के मैहर में. मन्दिर की प्रचीनता और सिद्ध पीठ होने के कारण मां शारदा के दर्शन करने के लिए दूर दराज से श्रद्धालु आते हैं. 

एक महीने तक चलता है भव्य मेला
मन्दिर के पुजारी श्याम जी महाराज का कहना है कि मां शारदा के दर्शन करने प्राचीन समय में आल्हा ऊदल आते थे. उन्होंने बताया कि लोग अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की आस में चैत्र और शारदीय नवरात्रि पर यहा दर्शन करने आते हैं. वहीं, यहां एक विशाल मेला भी लगता है जो पूरे एक महीने तक चलता है. 

कुंड में नहाने से दूर होते हैं रोग
पुजारी के मुताबिक, मन्दिर के पीछे एक कुंड है. इस कुंड में नहाने से सभी प्रकार के चरम रोग खत्म हो जाते हैं. एक श्रद्धालु ने बताया कि वह बीते 15 साल से यहां आ रहे हैं और जब तक देवी मां बुलाती रहेंगी वह आते रहेंगे. 

डिस्क्लेमर: भारत मान्यताओं का देश है और मान्यताओं को सही या गलत के चश्मे से नहीं देखा जाता. यह आर्टिकल भी उन्हीं मान्यताओं पर और कुछ किवदंतियों पर आधारित है. हम इसकी कोई पुष्टि नहीं करते. 

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