ज्ञानवापी और मथुरा की ईदगाह को लेकर कहा कि पहले भी बाबरी मस्जिद का विवाद कोर्ट में चला था. तब प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट जो कि 1991 में संस्कार लागू किया गया था. उसमें कहा गया था कि इस विवादित मुद्दे को छोड़कर बाकी पूरे देश भर में आजादी के बाद से जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में हैं, उसी तरह स्वीकार किया जाएगा.
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नीना जैन/सहारनपुर
Jamiat Ulama-e-Hind Meeting: यूपी के देवबंद में जमीअत उलेमा-ए-हिंद के 2 दिवसीय सत्र में चले अधिवेशन में ज्ञानवापी मथुरा की ईदगाह के साथ कॉमन सिविल कोड जैसे महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित हुए. अधिवेशन में प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट पर भी चर्चा हुई. कहा गया कि सभी को अपने तरीके से अपने ढंग से जीने का अधिकार है, इसीलिए कोई भी कॉमन सिविल कोड उनपर थोपा नहीं जा सकता और इस संबंध में वह देश भर में मुहिम चलाएंगे. लोगों को इससे अवगत कराएंगे.
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प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट में संशोधन
वहीं, ज्ञानवापी और मथुरा की ईदगाह को लेकर कहा कि पहले भी बाबरी मस्जिद का विवाद कोर्ट में चला था. तब प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट जो कि 1991 में संस्कार लागू किया गया था. उसमें कहा गया था कि इस विवादित मुद्दे को छोड़कर बाकी पूरे देश भर में आजादी के बाद से जो धार्मिक स्थल जिस स्वरूप में हैं, उसी तरह स्वीकार किया जाएगा. लेकिन अब उसी बात से पीछे हटकर इसमें संशोधन की बात की जा रही है. हालांकि, बैठक में कहा गया कि उन्हें कोर्ट पर भरोसा है.
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"जिसको हमसे दिक्कत है वह जा सकता है"
अधिवेशन में तलाक और निकाह को लेकर भी चर्चा की गई. इसके अलावा, शरीयत और कानून को लेकर भी स्पष्ट किया कि पहले शरीयत है, उसके बाद कानून. इतना ही नहीं, जमीयत उलेमा हिंद के नेशनल सेक्रेट्री मौलाना नियाज अहमद फारूकी ने जानकारी देते हुए बताया कि मौलाना महमूद असद मदनी ने साफ कर दिया है कि पाकिस्तान को जाना पहले भी रिजेक्ट कर चुके हैं हम. मुसलमानों का देश हैं यह और हम यहीं पर पैदा हुए हैं और यही रहेंगे. जिन्हें हम बर्दाश्त नहीं हैं, वह चले जाएं जहां जाना है. मौलाना नियाज अहमद फारूकी ने कहा कि तलाक को लेकर शरीयत में कहा गया है कि शरीयत पर अमलीकरण करें. ताकि तलाक देने की बात ही ना हो और यह सभी के लिए हितकारी होगा. जब उनसे कहा गया कि तीन तलाक के बाद कई महिलाएं इसको बेहतर बता रही हैं, तो उन्होंने कहा कि वह वह जानें लेकिन शरीयत को मानने वाले तलाक से दूर रहेंगे.
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