जेनेरिक दवाई पहले डेवलपर्स के पेटेंट की अवधि खत्म होने के बाद उनके फॉर्मूलों और सॉल्ट का यूज डेवलप किया जाता है. इसके साथ ही ये सीथी मैन्युफैक्चरिंग की जाती है. जहां पेंटेट ब्रांडेड दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं वहीं जेनेरिक दवाओं की कीमत को निर्धारित करने के लिए सरकार का हस्तक्षेप होता है..
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Branded And Generic medicine: जब भी हम बीमार होते हैं डॉक्टर के पास जाते हैं, उनकी लिखी हुई दवाओं को सीधे मेडिकल स्टोर से खरीद लेते हैं. डॉक्टर की लिखी हुई दवाओं पर भरोसा होता है और हम दवाइयों को लेकर आते हैं. क्या आप जानते हैं कि डॉक्टर जो दवाई का नाम पर्चे पर लिख रहा है वो जेनेरिक है या ब्रांडडे? ज्यादातर का जवाब न होगा, क्योंकि हम सेहत के मामले में खिलवाड़ नहीं करते हैं.
मंगलवार को यूपी के डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक (Brajesh Pathak) ने डाक्टरों द्वारा लिखी जा रही ब्रांडेड दवाओं की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए जेनेरिक दवाएं ही लिखने के सख्त हिदायत चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को दी है. इस संबंध में शाम को अपर मुख्य सचिव, चिकित्सा और स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद की ओर से शासनादेश जारी किया गया.
चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग ने जारी किए आदेश
चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी किए गए निर्देश में सभी सरकारी अस्पतालों को कहा गया है कि वह अस्पतालों में उपलब्ध दवाओं की सूची को प्रदर्शित करें. किसी भी कीमत पर डाक्टर मरीजों को बाहर से दवाएं नहीं लिखी जाएं. साथ ही हिदायत दी गई की जन औषधि केंद्रों का बेहतर ढंग से संचालन बेहतर ढंग से किया जाए.
ज्यादातर लोगों को ये भी नहीं पता की ब्रांडेड दवाएं, जेनेरिक दवाओं के मुकाबले काफी महंगी होती. और प्राइवेट डॉक्टर मुनाफा कमाने के चक्कर में ब्रांडेड दवाएं ही लिखते हैं जो हमारी जेब पर भारी पड़ती है. वैसे दवाओं का ज्यादा इस्तेमाल करने की वजह से एक सवाल हम सब के दिमाग में बना रहता है कि ब्रांड और जेनेरिक दवाओं में कौन सी दवाएं ज्यादा असरदार है. ब्रांड और जेनेरिक दवाओं के बारे में जानने के लिए यहां पढ़ें...
क्या होती है जेनेरिक दवा?
किसी बीमारी के इलाज के लिए कई तरह की रिसर्च और स्टडी के बाद एक रसायन (साल्ट) तैयार किया जाता है जिसे आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए दवा की शक्ल दे दी जाती है. इस साल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से बेचती है. आमतौर पर सभी दवाएं एक तरह का केमिकल सॉल्ट होती हैं. इन्हें रिसर्च के बाद अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाया जाता है. जेनेरिक दवा जिस सॉल्ट से बनी होती है, उसी के नाम से जानी जाती है. जैसे- दर्द और बुखार में काम आने वाले पैरासिटामोल सॉल्ट को कोई कंपनी इसी नाम से बेचे तो उसे जेनेरिक दवा कहेंगे. वहीं, जब इसे किसी ब्रांड (जैसे- क्रोसिन) के नाम से बेचा जाता है तो यह उस कंपनी की ब्रांडेड दवा कहलाती है.
क्या हैं ब्रांडेड दवाएं?
जेनेरिक दवाओं को जब एक ट्रेड नाम या ब्रांड नाम के तहत बेचा जाए तो उसे ब्रांडेड जेनेरिक कहा जाता है.
क्यों सस्ती होती हैं जेनरिक दवाइयां
जेनरिक दवाइयों के सस्ते होने का मुख्य कारण होता है कि ये किसी भी बड़े ब्रांड की नहीं होती हैं. जिसके कारण इन दवाइयों की मार्केटिग आदि पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं किया जातै है. दवाइयों की मार्केटिंग,रिसर्च, प्रचार, डेवलपमेंट और ब्रांडिंग पर काफी खर्च आता है. लेकिन, जेनरिक दवाई पहले डेवलपर्स के पेटेंट की अवधि खत्म होने के बाद उनके फॉर्मूलों और सॉल्ट का यूज डेवलप किया जाता है. इसके साथ ही ये सीथी मैन्युफैक्चरिंग की जाती है. जहां पेंटेट ब्रांडेड दवाओं की कीमत कंपनियां खुद तय करती हैं वहीं जेनेरिक दवाओं की कीमत को निर्धारित करने के लिए सरकार का हस्तक्षेप होता है
जानें ब्रांड और जेनेरिक दवा में अंतर
ब्रांड और जेनेरिक दवा में अंतर शेप-साइज और रंग में होता है. जेनेरिक की पैकेजिंग और ब्रांडेड दवा की पैकिंग अलग-अलग होती है. दोनों में अंतर इनएक्टिव इंग्रीडियेंट में होता है जो दवा के उपचार प्रभाव में योगदान नहीं करते हैं. एक ही साल्ट की दो दवाओं की कीमत में बड़ा अंतर होता है. यूं तो जेनेरिक दवा का सबूत हो सकता है लेकिन इसके लिए कई मोबाइल ऐप जैसे Healthkart plus और फार्मा जन समाधान भी मौजूद हैं. इनके जरिए आप आसानी से सस्ती दवाएं खरीद सकते हैं.
जेनेरिक दवाओं के लाभ
जेनेरिक दवाएं सीधे खरीददार तक पहुंचती हैं. जेनेरिक दवा ब्रांडेड दवाओं से सस्ती होती हैं. इससे आप हर महीने अच्छी खासी रक कीमत बचा सकते हैं. इन दवाओं की पब्लिसिटी के लिए कुछ खर्चा नहीं किया जाता. इसलिए ये सस्ती होती हैं. इन दवाओं की कीमत सरकार खुद तय करती है. एक बात समझ लें कि जेनेरिक दवाओं का असर, डोज और इफेक्ट्स ब्रांडेड दवाओं की तरह ही होते हैं. इसमें कोई अंतर नहीं होता है.
जेनेरिक दवा ब्रांडेड की तुलना में सस्ती क्यों होती हैं?
जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड की तुलना में दस से बीस गुना तक सस्ती होती हैं. दरअसल, फार्मा कंपनियां ब्रांडेड दवाइयों की रिसर्च, पेटेंट और विज्ञापन पर काफी पैसा खर्च करतीं हैं। जबकि जेनेरिक दवाइयों की कीमत सरकार तय करती है और इसके प्रचार-प्रसार पर ज्यादा खर्च भी नहीं होता।
जेनेरिक दवा कहां और कैसे मिलती है?
ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसयूज ऑफ इंडिया (बीपीपीआई) पर प्रधानमंत्री जन औषधि योजना (पीएमबीजेपी) को लागू करने की जिम्मेदारी है. इसमें दवाओं को कम कीमत पर मुहैया कराया जाता है. इससे जुड़े जन औषधि केंद्र पर ज्यादातर जेनेरिक दवाइयां ही बेची जाती हैं.
अपने डॉक्टर से कहें लिखे जेनेरिक दवाएं
इसके अलावा आप अपने डॉक्टर से भी जेनेरिक दवा लिखने को कह सकते हैं. इसके बाद आप मेडिकल स्टोर्स या केमिस्ट से भी ब्रांडेड की जगह अच्छी क्वालिटी की जेनेरिक दवा की मांग कर सकते हैं. अगर सचमुच जेनेरिक दवा जरूरी हो जाए तो इससे मरीज को बजट और हेल्थ दोनों तरह से फायदा होगा.
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