Independence Day Monuments: इस बाग में फांसी पर लटकाए गए थे क्रांतिकारी, जलियां वाला बाग से भी पुराना है इतिहास
Advertisement
trendingNow0/india/up-uttarakhand/uputtarakhand1825281

Independence Day Monuments: इस बाग में फांसी पर लटकाए गए थे क्रांतिकारी, जलियां वाला बाग से भी पुराना है इतिहास

सूली वाला बाग का इतिहास जलियां वाला बाग से भी पहला है. इतिहास के हर पन्नों पर जलियां वाला बाग का जिक्र है. बचपन से ही बच्चों को किताबों में जलियां वाला बाग में अंग्रेजों की जुल्मों-ओ-दास्तान के बारे में पढ़ाया जाता रहा है, लेकिन सूली वाला बाग के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं...

Independence Day Monuments: इस बाग में फांसी पर लटकाए गए थे क्रांतिकारी, जलियां वाला बाग से भी पुराना है इतिहास

मुजफ्फरनगर/अंकित मित्तल: आज़ादी के दीवानों के अफसाने तो आपने तमाम सुने होंगे, लेकिन आज हम शहीदों की जिस वीर गाथा और अंग्रेजों के जुल्म-ओ-सितम से आपको रू-बा-रू कराने जा रहे हैं, वो बेहद ही अलग है. इतिहास के काले पन्नों में कहीं दफन हो चुकी इस सूली वाले बाग की दास्तां में अंग्रेजी हुकूमत की क्रूरता और जुल्म की इंतेहा है. जी हां... जलिया वाला बाग नहीं, बल्कि वो सूली वाला बाग, जिसमें अंग्रेजों ने मुजफ्फरनगर के पुरकाज़ी कस्बे में 500 से अधिक बेगुनाहों को सूली पर लटका दिया. बाद में आंदोलनकारियों के कत्ल-ए-आम की इस जगह को सूली वाला बाग कहा जाने लगा.

1857 की क्रांति में पूरा देश आजादी के लिए आंदोलन कर रहा था. आज़ादी के दीवानों के दिलों में मेरठ से भड़की चिंगारी धीरे-धीरे भड़कती जा रही थी और आग मुजफ्फरनगर तक पहुंच गई थी. पुरकाजी कस्बे के सूली वाले बाग ने आंदोलन के हवन में आहुति देकर इतिहास के पन्नों पर एक अमिट कहानी तो लिखी, लेकिन वो गुमनामी के अंधेरे में कहीं खोकर रह गई. चलिए आज हम आपको सूली वाले बाग के बारे में सिलसिलेवार तरीके से बताते हैं.

इसलिए पड़ा सूली वाला बाग
जानकारों के मुताबिक साल 29 मई 1857 को मुजफ्फरनगर जनपद के कलेक्टर मिस्टर वरफोर्ट की हत्या कर दी गई, जिसके बाद एक जुलाई 1857 को अंग्रेजों ने मिस्टर एडवर्ड को मुजफ्फरनगर की कमान सौंपी. भारत को आजाद कराने की जिद लिए आगे बढ़ रहे क्रांतिकारियों को रोकने के लिए नए कलेक्टर ने सेना को बुलवाया. सेना के मेजर विलियम ने जनपद की बेगुनाह जनता पर अत्याचार की सारी सीमाएं लांघ डाली. सैकड़ों बेगुनाह लोगों को सूली पर लटकाकर मौत के घाट उतार दिया गया. तभी से इस स्थान का नाम सूली वाला बाग पड़ गया. इस सूली वाले बाग़ मे उन लोगो को सूली पर लटकाया गया जिन्होंने अंग्रेजो की सल्तनत को हिलाने का प्रयास किया. इस सूली वाले बाग़ का इतिहास वैसे तो जनपद के बच्चे बच्चे की जुबान पर है लेकिन अब तक ये इतिहास सरकारी दस्तावेजों मे दर्ज नहीं हो सका है.

सूली वाला बाग़ के इतिहास की जानकारी देते हुए नगर पंचायत अध्यक्ष जहिर फारूखी ने बताया की इस सूली वाले बाग़ का इतिहास जलिया वाला बाग से पुराना ह.  यहाँ पर अंग्रेजी शासक द्वारा क्रांतिकारीयों को घर से उठा-उठा कर सूली पर लटका दिया जाता था. यहाँ लगभग सैकड़ों की संख्या मे क्रांतिकारियों को सूली पर लटकाया गया है. यहाँ पर कुछ सालों पहले इतनी गंदगी का ढेर लगा रहता था और  यहाँ से गुजरना भी दुभर था. इस सरकार ने इस बाग़ का जीर्णोद्धार कराया और साफ सफाई करा कर यहां पर तालाब को पक्का कराया. अब यहां पर लोग घूमने आते हैं और देखकर अपने क्रांतिकारियों को याद करते है.

आंदोलकारियों को फांसी पर लटकाया जाता था
ये सूली वाला बाग़ पुरकाजी कस्बे के बीचों बीच स्थित है. इस कस्बे के बुजुर्गों की मानें तो आंदोलनकारियों को पकड़-पकड़कर अंग्रेज इस बाग में लेकर आते थे और उन्हें चोरी छिपे-छिपे फांसी पर लटकाकर मार दिया करता थे. कस्बे और आसपास के लोगों ने एक बार अंग्रेजों के इस जुल्म-ओ-सितम का विरोध किया.  इलाके के लोगों ने अंग्रेजों से हथियार छीन लिए. अंग्रेजों से बंदूक, तोप, गोला-बारूद तक छीनकर अपने साथ ले गए.  जिसकी गवाही लगातार पुरकाजी इलाके के हरिनगर के जंगलों में खुदाई के दौरान निकलने वाले गोला-बारूद और तोप चीख-चीखकर दे रही है.अब तक हरिनगर इलाके से तीन तोप मिट्टी के अंदर से खुदाई के दौरान निकल चुकी है. जिनमें से एक तोप डीएम आवास पर, एक तोप एसएसपी आवास और एक तोप को आगरा लैब में जांच के लिए भेजी गई है.

पुरकाजी के इस ऐतिहासिक सूली वाला बाग में आज भी 70 ऐसे आंदोलनकारियों के नामों की सूची लगी हुई है, जो उन 500 शहीदों में शुमार है, जिनकी अंग्रेजों ने सूली पर लटका कर हत्या कर दी थी.  इनमें शामली, कैराना, मेरठ, मवाना, मुजफ्फरनगर, भौकरहेड़ी, सिसौली आदि के रहने वाले आंदोलनकारी शामिल हैं. इस सूली वाले बाग़ के बारे मे जानकारी देते हुए चशमदीद महराज खान ने बताया की हमारा होटल यहीं पास में है. हमने यहीं पेड़ में एक सूली बनी हुई देखी थी जिसमे हाथ फंसाया जाता था और फिर उसको सूली पर चढ़ा दिया जाता था.  मैं यहाँ पर कुश्ती खेलने आता था जब मैंने उस सूली को देखा तो मैंने अपने दादा जी से उसके बारे मे जानकारी की. जिसके बाद उन्होंने मुझे बताया की यहां पर अंग्रेज क्रांतिकारियों को सूली पर चढ़ाते थे. यहां पर सैकड़ों की संख्या मे क्रांतिकारियों को सूली पर चढ़ाया गया था.

जलियां वाला बाग से भी पहला है इतिहास
आपको जानकर हैरत होगी कि सूली वाला बाग का इतिहास जलियां वाला बाग से भी पहला है. इतिहास के हर पन्नों पर जलियां वाला बाग का जिक्र है. बचपन से ही बच्चों को किताबों में जलियां वाला बाग में अंग्रेजों की जुल्मों-ओ-दास्तान के बारे में पढ़ाया जाता रहा है, लेकिन सूली वाला बाग के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं, जिसके पीछे सबसे बड़ी वजह ये ही रही है कि क्रांतिकारियों की कत्लगाह बने सूली वाला बाग की हमेशा से उपेक्षा की गई. प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बार-बार आग्रह किए जाने के बाद भी इस सूली वाले बाग को आज तक भी शहीद स्मारक का दर्जा नहीं दिया गया. 

Trending news