अयोध्या में है प्रभु श्रीराम की कुलदेवी का मंदिर, वनवास और रावण वध के पहले लिया था आशीर्वाद
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अयोध्या में है प्रभु श्रीराम की कुलदेवी का मंदिर, वनवास और रावण वध के पहले लिया था आशीर्वाद

देवी भागवत के तीसरे अध्याय में श्री बड़ी देवकाली जी के महत्त्व का वर्णन किया गया है. एक ही शिला में विराजमान देवी के तीनों रूप का दर्शन कर रघुकुल की परम्परा रही है. महाराजा सुदर्शन जो भगवान श्रीराम के पूर्वज थे, उनके समय का यह मंदिर है...

अयोध्या में है प्रभु श्रीराम की कुलदेवी का मंदिर, वनवास और रावण वध के पहले लिया था आशीर्वाद

अयोध्या: अयोध्या में भगवान श्री राम की कुलदेवी मां बड़ी देवकाली मंदिर श्रद्धा का एक बड़ा केंद्र है. यहां देश के कोने-कोने से श्रद्धालु नवरात्री में मां के दर्शन करने पहुंचते हैं. मां बड़ी देवकाली को भगवान श्री राम की कुलदेवी के रूप में जाना जाता है. एक ही शिला में विराजमान श्री महा काली, श्री महा लक्ष्मी और श्री महासरस्वती भक्तों के कल्याण के लिए यहां विराजमान हैं. यहां श्रद्धा के साथ जो भी मुरादे मांगी जाती हैं, मां भक्तों की वह मुरादें पूरी करती हैं.

श्रीराम के पूर्वज करते थे मां देवकाली की पूजा
धर्मनगरी अयोध्या के 14 कोस की परिधि में श्री बड़ी देवकाली जी के नाम से प्रसिद्ध मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम की कुलदेवी का मंदिर स्थापित है. एक ही शिला में विराजमान श्री महाकाली, श्री महालक्ष्मी और श्री महासरस्वती पूरे देश में दो ही जगह विराजमान हैं. एक अयोध्या में तो दूसरा जम्मू में त्रिकुट पर्वत पर. कहा जाता है कि प्रभु श्री राम के पूर्वज महाराजा रघु अपनी अराध्य कुलदेवी श्री बड़ी देवकाली जी की तीनों रूपों की पूजा अर्चना किया करते थे. श्रीराम का जब जन्म हुआ तब मां कौशल्या ने बाल रूप श्रीराम के साथ यहां पूजा अनुष्ठान कर अपनी कुलदेवी के तीनों रूपों की पूजा अर्चना की थी. यह प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर दूर दाराज से आये भक्तों की आस्था का केंद्र है.

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देवकाली की पूजा कर ही वनवास गए थे श्रीराम
देवी भागवत के तीसरे अध्याय में श्री बड़ी देवकाली जी के महत्त्व का वर्णन किया गया है. एक ही शिला में विराजमान देवी के तीनों रूप का दर्शन कर रघुकुल की परम्परा रही है. महाराजा सुदर्शन जो भगवान श्रीराम के पूर्वज थे, उनके समय का यह मंदिर है. कहा जाता है कि जब दशरथ पुत्र श्रीराम को वनवास हुआ था, उस समय प्रभु राम अपनी कुलदेवी मां आदिशक्ति के तीनों रूप में विराजमान बड़ी देवकाली जी की पूजा अर्चना कर अयोध्या की मंगल कामना करते हुए वन को गए थे. जब सीता जी का रावन ने हरण किया था, तब भी प्रभु राम ने अपनी कुलदेवी की उपासना लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए की थी. उसके बाद ही लंका गए थे और लंका पर विजय प्राप्त कर सीता जी को प्राप्त किया था.

सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी
चैत्र व शारदीय नवरात्र में बड़ी देवकाली जी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. क्योंकि चैत्र रामनवमी के दिन प्रभु श्री राम चन्द्रजी का जन्म हुआ था. इसदिन भक्त जन अपने पापों का प्रायश्चित और पुण्य की प्राप्ति के लिए रघुकुल की कुलदेवी देवकाली जी की पूजा अर्चना करते हैं. कहा जाता है कि नवरात्र में सिद्धि प्राप्त करने के लिए बड़ी देवकाली जी की विशेष तरह से पूजा की जाती है. साल भर दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु नवरात्र में जरुर आते हैं. पहले मां के तीनों रूप की पूजा अर्चना करते हैं. मंदिर के बाहर मां शक्ति का वाहन सिंह विराजमान है. कहा जाता है कि श्रीराम की कुलदेवी मां श्री देवकाली जी की तरफ मुंह किये दोनों सिंह मंदिर की रखवाली करते हैं. मां आदिशक्ति का वाहन सिंह शक्ति का प्रतीक भय को समाप्त करने वाला है. महाराजा रघु की कुलदेवी और श्री राम की अराध्य श्री बड़ी देवकाली जी के दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता. यहां मांगी गई मुरादें पूरी होती हैं.

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