बाराबंकी: उत्तरप्रदेश में बीजेपी ने लोकसभा चुनाव की रणनीति बनानी शुरू कर दी है. इस बार यूपी में बीजेपी की पसमांदा मुस्लिमों के वोटबैंक पर ख़ास नजर है.ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने पीएम मोदी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की तारीफ कर अहम सियासी संकेत दिए हैं.
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नितिन श्रीवास्तव/बाराबंकी: केंद्र और उत्तर प्रदेश की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारी अभी से शुरू कर दी है. बीजेपी की रणनीति में इस बार राज्य के मुस्लिम मतदाताओं पर ख़ास फोकस रहेगा. अलग-अलग लोक कल्याणकारी योजनाओं के जरिए भाजपा पसमांदा मुसलमानों से जुड़ना चाहती है. देश के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूहों में पसमांदा मुसलमान सबसे पिछड़े हैं.
वसीम राईन के बयान का सियासी संकेत
बाराबंकी जिले में ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन के मुताबिक 2022 में उत्तर प्रदेश के चुनाव हो रहे थे, तो डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी हमारे लिए आवाज उठाई थी. देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि पसमांदा समाज को साथ जोड़ना है, उनके लिए काम करना है. वसीम राईन ने कहा कि आजादी के बाद पीएम मोदी पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने पसमांदा समाज के लिए कुछ बोला है. आपको बता दें कि बाराबंकी जनपद में प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने भाजपा की तारीफ करते हुए बाकी पार्टियों पर भी निशाना साधा है. उन्होंने कहा है कि अब यह नहीं चलने वाला है कि वोट हमारा राज उनका.
केशव मौर्य ने किया था ट्वीट
अब तक इन मुस्लिम मतदाताओं का रुझान ज्यादातर गैर-बीजेपी पार्टियों की तरफ ही रहा है. पसमांदा मुसलमानों से जुड़ने के लिए उत्तर प्रदेश डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने 2022 के चुनाव में बात की थी. डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट करते हुए लिखा था कि यदुवंशियों, रविदासवंशियों के साथ पसमांदा मुस्लिमों को भी भाजपा के साथ लाएंगे. 2024 में यूपी के हर बूथ में कमल ही कमल खिलाएंगे.
योगी कैबिनेट में मिला प्रतिनिधित्व
योगी सरकार-2.0 में बलिया के नेता दानिश अंसारी को कैबिनेट में शामिल किया था, उस वक्त पॉलिटिकल पंडित दंग रह गए थे. दानिश अंसारी पसमंदा समुदाय से आते हैं. पसमंदा फारसी भाषा का शब्द है, इसका अर्थ 'पीछे छूटा हुआ' होता है. उत्तर भारत में मुस्लिमों की पिछड़ी जाति को पसमंदा समुदाय में रखा गया है. पसमंदा शब्द का चलन भारतीय मुस्लिमों समाज में 1998 में तेजी से बढ़ा. वैसे तो भारत में पसमंदा आंदोलन का इतिहास सौ साल पुराना है. जानकारों के मुताबिक देश में मुस्लिमों में 15 प्रतिशत उच्च वर्ग से ताल्लुक रखते हैं. इस वर्ग को अशरफ कहा जाता है. इस वर्ग में शेख, सैयद, मिर्जा, मुगल और खान भी शामिल हैं.