बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले से जुड़ी सभी कार्यवाही SC ने की बंद, पढ़े पूरा इतिहास
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बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले से जुड़ी सभी कार्यवाही SC ने की बंद, पढ़े पूरा इतिहास

Delhi News: मोहम्मद असलम भूरे नाम के व्यक्ति ने 1992 में उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ इलाके में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के संबंध में अदालत को दिए गए वचन के उल्लंघन के लिए अवमानना याचिका दायर की थी. 

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले से जुड़ी सभी कार्यवाही SC ने की बंद, पढ़े पूरा इतिहास

नई दिल्ली: अयोध्या में बाबरी मस्जिद के विध्वंस से उत्पन्न अवमानना ​​​​कार्यवाही को सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर दिया है. जस्टिस संजय किशन कौल, अभय एस ओका और विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में समय बीतने और शीर्ष अदालत के 2019 के फैसले को देखते हुए अवमानना के मामले नहीं हैं.

गौरतलब है कि मोहम्मद असलम भूरे नाम के व्यक्ति ने 1992 में उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ इलाके में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के संबंध में अदालत को दिए गए वचन के उल्लंघन के लिए अवमानना याचिका दायर की थी. शीर्ष अदालत की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 9 नवंबर, 2019 को अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था. मस्जिद निर्माण के लिए केंद्र को सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड आवंटित करने का निर्देश दिया था. अवमानना ​​की कार्यवाही को बंद करते हुए पीठ ने कहा कि मामले को पहले सुनवाई के लिए आना चाहिए था. 

इतिहास पर एक नजर
1885 में मामला पहली बार राम मंदिर का मामला अदालत में पहुंचा था. महंत रघुबर दास ने फैजाबाद अदालत में बाबरी मस्जिद से लगे एक राम मंदिर के निर्माण की इजाजत के लिए अपील दायर की थी. ऐसा कहा जाता है कि 23 दिसंबर, 1949 में करीब 50 हिंदुओं ने मस्जिद के केंद्रीय स्थल पर कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति रख दी. इसके बाद उस स्थान पर हिंदू नियमित रूप से पूजा करने लगे. मुसलमानों ने नमाज पढ़ना बंद कर दिया. फिर 16 जनवरी, 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में एक अपील दायर कर रामलला की पूजा-अर्चना की विशेष इजाजत मांगी. उन्होंने वहां से मूर्ति हटाने पर न्यायिक रोक की भी मांग की. इसी साल सितंबर के महीने में महंत परमहंस रामचंद्र दास ने हिंदू प्रार्थनाएं जारी रखने और बाबरी मस्जिद में राममूर्ति को रखने के लिए मुकदमा दायर किया. मस्जिद को 'ढांचा' नाम दिया गया. 

17 दिसंबर, 1959: निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल हस्तांतरित करने के लिए मुकदमा दायर किया. 

18 दिसंबर, 1961: उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दायर किया.

1984: विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) ने बाबरी मस्जिद के ताले खोलने और राम जन्मस्थान को स्वतंत्र कराने व एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान शुरू किया। एक समिति का गठन किया गया. 

1 फरवरी, 1986: फैजाबाद जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दी. ताले दोबारा खोले गए. नाराज मुस्लिमों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया.

जून 1989: भारतीय जनता पार्टी ने वीएचपी को औपचारिक समर्थन देना शुरू करके मंदिर आंदोलन को नया जीवन दे दिया.

1 जुलाई, 1989: भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवा मुकदमा दाखिल किया गया.

9 नवंबर, 1989: तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक शिलान्यास की इजाजत दी.

अगस्त 1989 : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने विवादित ढांचे के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया.

अक्टूबर 1991: उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार ने बाबरी मस्जिद के आस-पास की 2.77 एकड़ भूमि को अपने अधिकार में ले लिया.
दिसंबर 1992: मामले के संबंध में दो प्राथमिकी दर्ज की गईं. एक अज्ञात कारसेवकों के खिलाफ मस्जिद को गिराने के लिए और दूसरी भाजपा नेताओं लालकृष्ण आडवाणी, एम एम जोशी और अन्य के खिलाफ कथित तौर पर विध्वंस से पहले सांप्रदायिक भाषण देने के लिए. 

16 दिसंबर, 1992: मस्जिद की तोड़-फोड़ की जिम्मेदार स्थितियों की जांच के लिए एम.एस. लिब्रहान आयोग का गठन हुआ.

जनवरी 2002: प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने कार्यालय में एक अयोध्या विभाग शुरू किया, जिसका काम विवाद को सुलझाने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों से बातचीत करना था.

अप्रैल 2002: अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर उच्च न्यायालय के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की.

मार्च-अगस्त 2003: इलाहबाद उच्च न्यायालय के निर्देशों पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में खुदाई की. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का दावा था कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष होने के प्रमाण मिले हैं. मुस्लिमों में इसे लेकर अलग-अलग मत थे.

सितंबर 2003: एक अदालत ने फैसला दिया कि मस्जिद के विध्वंस को उकसाने वाले सात हिंदू नेताओं को सुनवाई के लिए बुलाया जाए.

अक्टूबर 2004: आडवाणी ने अयोध्या में मंदिर निर्माण की भाजपा की प्रतिबद्धता दोहराई.

जुलाई 2009: लिब्रहान आयोग ने गठन के 17 साल बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी रिपोर्ट सौंपी.

28 सितंबर 2010: सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहबाद उच्च न्यायालय को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज करते हुए फैसले का मार्ग प्रशस्त किया.

30 सितंबर 2010: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया.

21 मार्च 2017: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की पेशकश की. चीफ जस्टिस जे एस खेहर ने कहा है कि अगर दोनों पक्ष राजी हो तो वो कोर्ट के बाहर मध्यस्थता करने को तैयार हैं.

19 अप्रैल 2017: सुप्रीम कोर्ट ने 1992 बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले की रोज सुनवाई का आदेश देते हुए दो साल में सुनवाई पूरी करने का आदेश दिया था.

15 Jul 2019: अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने के मामले की सुनवाई करने वाले स्पेशल जज ने सुप्रीम कोर्ट से छह माह का और समय मांगा. स्पेशल जज ने 25 मई को लिखी चिट्ठी में सर्वोच्च अदालत को बताया है कि उनका कार्यकाल 30 सितंबर 2019 तक निर्धारित है.

28 मई 2020: अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने के मामले की सुनवाई चार जून को हुई. कोर्ट ने 28 मई को कल्याण सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत 32 आरोपियों को बयान दर्ज कराने के लिए तलब किया था लेकिन आरोपियों के वकीलों ने कोर्ट को बताया कि यह सभी भी लोग अलग-अलग राज्यों में रहते हैं. 

24 Jul 2020: सीबीआई ने भाजपा के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी का बयान दर्ज किया. पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने लगाए गए आरोपों से इन्कार किया और कहा कि उन पर जो भी आरोप लगाए गए हैं, वह राजनीतिक कारणों से थे.

अगस्त 2022: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार और सीबीआई को बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में लालकृष्ण आडवाणी और एम एम जोशी सहित सभी 32 आरोपियों को बरी करने के खिलाफ एक आपराधिक अपील की स्थिरता पर अपनी आपत्ति दर्ज करने की अनुमति दी. हाई कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 5 सितंबर तय की है. 

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