Dhundh short film : कहते हैं कि इंसान की जिंदगी और मौत का कोई भरोसा नहीं. लेकिन बाजार और वर्चुअल दुनिया ने हमारी जिंदगी को कुछ इस तरह बदल कर रख दिया है कि इंसान की गैर मौजूदगी का एहसास भी बहुत जल्द धूमिल हो जाता है. जिंदगी के उतार-चढ़ाव में कई बार पीछे मुड़कर देखने का भी लोगों के पास वक्त नहीं होता. उत्तरप्रदेश के उभरते हुए युवा कलाकारों ने एक शॉर्ट फिल्म 'धुंध' बनाई है. फिल्म के जरिए हर परिस्थिति में रिश्तों के एहसास को बचाए रखने का सामाजिक संदेश दिया गया है.
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अरविंद मिश्रा/लखनऊ: उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जनपदों के कुछ युवा फिल्म कलाकारों ने शॉर्ट फिल्म 'धुंध' बनाई है. 4 अगस्त को सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर फिल्म रिलीज की गई. सिर्फ 23 मिनट की शॉर्ट फिल्म धुंध एक ऐसे शख्स (मुन्ना) की कहानी है, जिसकी पत्नी (गुड्डी) गुजर गई है. लेकिन उसकी मौत के बाद भी वह उसके साथ बिताई यादों से खुद को अलग नहीं कर पाता है. मुन्ना को लगता है कि वह अभी भी जिंदा है. इसलिए वह अक्सर उससे ख्यालों में बातचीत करता है. गांव के लोग उसकी भावनाओं की कद्र करने के बजाय उस पर फब्तियां कसते हैं.
छोटे शहरों के कलाकारों की प्रतिभा
फिल्म का निर्देशन कुशीनगर के रहने वाले सर्वेश मणि ने किया है जबकि सिनेमेटोग्राफी मऊ के रंगकर्मी सर्वेश पांडे ने की है. अयोध्या के रहने वाले उत्कर्ष गुप्ता ने मुन्ना के किरदार में अपनी गहरी छाप छोड़ी है. गुड्डी का किरदार गोरखपुर की रहने वाली आस्था पांडे ने निभाया है. फिल्म की स्टोरी राहुल यादव ने लिखी है. अजय मिश्रा ने एडिटिंग में ब्लैक एंड व्हाइट से लेकर कलर का बेहतरीन कॉम्बिनेशन किया है. इन सभी कलाकारों की पृष्ठभूमि अत्यंत सामान्य परिवारों की है, लेकिन फिल्म और कलाओं के लेकर यह उत्तरप्रदेश को एक पहचान देने में जुटे हैं.
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कई अवॉर्ड मिल चुके हैं
फिल्म के डायरेक्टर सर्वेश मणि के मुताबिक धुंध फिल्म को वीनस ब्राइट इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल मुंबई में बेस्ट शॉर्ट फिल्म का अवॉर्ड मिल चुका है. वहीं फिल्म को बेंगलुरु इंडियन फिल्म हाऊस में भी चयनित किया जा चुका है. यंग फिल्म मेकर्स की इस टीम ने इससे पहले गुलाब जामुन फिल्म बनाई थी. इसे गोवा फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला था. इसी तरह दरभंगा इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी गुलाब जामुन ने अवॉर्ड जीते.
फिल्म के सिनेमेटोग्राफर सचिन पांडे का कहना है कि आदमी के जीवन में ऐसी अनेक घटनाएं होती है, जो हमें लंबे समय तक प्रभावित करती हैं. लेकिन कई बार हमारी जिंदगी सीमित दायरे में बंधकर रहकर जाती है. आजकल सोशल मीडिया में हम इस कदर निर्भर हो गए हैं कि हमारे आसपास क्या हो रहा है, उसका पता नहीं होता है. धुंध फिल्म के जरिए इंसानी भावनाएं को जिंदा रखने का प्रयास किया गया है.