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मथुरा: श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ईदगाह की भूमि पर अपना दावा करते हुए कोर्ट में याचिका दायर की है, जो मथुरा के सिविल जज सीनियर डिविजन कोर्ट में स्वीकार हो गई है. यह पली बार है कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ईदगाह की भूमि पर याचिका दायर की है. मिली जानकारी के मुताबिक यह मामला हाईकोर्ट स्थानांतरित होगा.
यह है पूरा मामला...
श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद का विवाद अब कोर्ट तक पहुंच गया है. आपको बता दें कि श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने पहली बार ईदगाह की जमीन पर अपना दावा करते हुए कोर्ट में याचिका दायर की है. मिली जानकारी के मुताबिक ट्रस्ट की ओर से मथुरा के सिविल जज सीनियर डिवीज़न कोर्ट में मामला दायर हुआ. आपको बता दें कि कोर्ट में याचिका दायर करने वाले विनोद कुमार बिंदल और ओमप्रकाश सिंघल हैं. अदालत ने इस मामले पर सुनवाई की और वाद को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट (High Court) भेजने की बात कही है. क्योंकि इस मामले में पहले से चल रही करीब 17 पर सुनवाई के साथ इसको भी शामिल किया जा सके.
1968 में भूमि का समझौता
श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से ट्रस्टी विनोद कुमार बिंदल और ओमप्रकाश सिंघल ने इस याचिका के बारे में अधिक जानकारी देते हुए बताया कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी को प्रतिवादी बनाया गया है. विनोद कुमार और ओमप्रकाश सिंगल ने बताया कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान, जिसे श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से मंदिर परिसर की देखरेख, साफ-सफाई की व्यवस्था के लिए श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के नाम से रखा गया था. इस संघ के द्वारा गैर आधिकारिक तौर पर 1968 में शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी से भूमि को लेकर समझौता किया था. इस समझौते के तहत ढाई एकड़ भूमि ईदगाह कमेटी को दे दी गई. 13.37 एकड़ भूमि श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम पर है. वहीं दावा किया गया है कि जब भूमि सेवा संघ के नाम पर थी ही नहीं तो उसके द्वारा समझौता कैसे किया जा सकता है.
17 वाद हो चुके हैं दायर
आपको बता दें कि इस समझौते की डिक्री 1973 व 1974 में न्यायालय द्वारा की गई है और इसे रद किया जाना चाहिये. इस मामले में अब तक 17 वाद दायर हो चुके हैं, लेकिन ये पहला मामला है, जिसमें जन्मभूमि ट्रस्ट खुद ही वादी है. ट्रस्ट के गोपेश्वर चतुर्वेदी ने इस मामले में अधिक जानकारी देते हुए बताया कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ने 1968 में शाही मस्जिद ईदगाह कमेटी से प्रमुख दस बिंदुओं पर बिना किसी अधिकार के समझौता किया था.
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