बलराम चतुर्वेदी/कानपुर देहात: सरकारें मुफ्त सरकारी राशन देने के लिए तमाम योजनाएं ,सुविधाओं का दम भर्ती नजर आ रही हैं. वो महज मुफ्त मिल रही रेवड़ी की तरह साबित हो रही है. विपक्ष मुफ्त राशन योजना को चुनावी दांव बताकर टिप्पणियां करता नजर आ रहा है. वहीं, कानपुर देहात में 1200 आबादी के ग्रामीण इस मुफ्त राशन को लेने के लिए उफनाती नदी को तैर कर पार करने को मजबूर है.


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कानपुर देहात से  हैरान कर देने वाली तस्वीरे सामने आईं हैं, जिसे देख कर आप सोच में पड़ जाएंगे. पेट की आग को बुझाने के लिए लोग मौत का दरिया पार कर रहे हैं. जरा सी चूक और जिंदगी मौत के आगोश में समा जाएगी. कानपुर देहात के भोगनीपुर तहसील का भरतौली गांव जनपद के अधिकारियों और जिम्मेदारों के नजर से मानों ओझल हो चुका है. इसी लिए शायद इन बेबस गांव वालों की बेबसी इन्हें दिखाई नहीं देती है.


महिलाएं नदी पार करने को मजबूर 
सैकड़ों की तादात में हाथों में झोला और सरकारी राशन का कार्ड लेकर प्लास्टिक का टब लेकर लाचार गांव वाले नदी की बीच धारा को तैर कर पार सिर्फ इसलिए जा रहे हैं कि उन्हें नदी के उस पार मुट्ठी भर सरकारी अनाज मिलेगा. इससे मजबूर ग्रामीण खुद और अपने परिवार की भूख मिटा सकेंगे. इस गांव की महिलाएं और तमाम पुरुष इस नदी में एक हुजूम के साथ उतरकर उस पार जाने का जोखिम उठा रहे हैं. कुछ महिलाएं गाड़ी के ट्यूब में हवा भरकर उसके सहारे नदी पार करने को मजबूर हैं. कुछ महिलाएं खुद तैर कर नदी के पार जा रही हैं. साथ में गांव के तमाम पुरुष भी सिर पर टब और झोला रख कर राशन ला रहे हैं. इस गांव में ज्यादातर महिलाएं तैरना सीख चुकी हैं क्योंकि मुफ्त राशन पाने की बेबसी ने इन्हें तैरना भी सिखा दिया है.


आपको बता दें कि आखिर क्यों गांव के वाशिंदों को नदी में तैर कर जाने की क्या मजबूरी है? दरअसल इस गांव को मिलाकर 4 गांव और भी हैं. इनका ग्राम प्रधान क्षेत्र एक ही है और गांव में राशन की दुकान भी एक है, लेकिन इन 5 मजरों के बीच कानपुर देहात की सिंगूर नदी इन गांवों को 3 और 2 मजरों में बांट देती है. इसके चलते लंबे अरसे से सरकारी राशन की दुकान नदी के उस पार 3 मजरों वाले गांव में बनी है. नदी इस पार के 2 गांव के 1200 लोगों को नदी पार कर के ही राशन लेने जाना पड़ता है.


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गांव में राशन की दुकान खोवने की मांग 
ग्रामीणों ने कई बार अधिकारियों से इस बात की गुहार भी लगाई गई. इस गांव में राशन की दुकान अलग से खोल दी जाए या फिर उन्हे इसी गांव में ही राशन मिलने लगे, लेकिन नतीज शिफर ही रहा न किसी अधिकारी ने इनकी सुनी और न ही किसी ने इनकी बेबसी समझी,लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर कब तक पेट भरने के लिए ये लोग जिंदगी दांव पर लगा कर पेट भरते रहे रहेंगे. इस जनपद में प्रदेश सरकार के तीन मंत्री इसी जनपद के हों फिर भी इस गांव पर सत्तानशीन सरकार की नजरें इनायत क्यों नहीं हो रही न तो नदी के बीच कोई स्थाई या अस्थाई पुल की व्यवस्था है. 300 के करीब इस गांव में सरकारी राशन के कार्डधारक हैं. बावजूद मुफ्त राशन की ऐसी व्यवस्था सरकार की योजनाओं ,अधिकारियों की कार्यशैली और आत्मनिर्भर भारत की असली तस्वीर बयां करती है.


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