World Menstrual Hygiene Day 2023: महिलाओं को मातृशक्ति इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि उन्हें ही भगवान ने सृजन की शक्ति दी है. वह जीवन को जन्म देती हैं. मासिक धर्म जिसे माहवारी या पीरिएड्स भी कहते हैं, उनकी इस शक्ति का आधार है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि आज भी हमारे समाज में महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़ी हेल्थ अवेयरनेस की बहुत कमी है. यहां तक की 70 फीसदी से अधिक महिलाओं को सेनेटरी नैपकीन उपलब्ध नहीं है.
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World Menstrual Hygiene Day: हर साल 28 मई को वर्ल्ड मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे मनाया जाता है. इसका मकसद मेंस्ट्रुअल हाइजीन (मासिक धर्म/माहवारी/पीरिएड्स से जुड़ी स्वच्छता) से जुड़ी बीमारियों को लेकर अवेयरनेस बढ़ाना है. मेंस्ट्रुअल हाइजीन महिलाओं की सेहत से जुड़ा एक बेहद अहम पहलू है. इसका सीधा संबंध महिलाओं के रिप्रोडक्टिव लाइफ से होता है.
द वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) जॉइंट मॉनिटरिंग प्रोग्राम 2012 ने मेंस्ट्रुअल हाइजीन मैनेजमेंट के तहत मेंस्ट्रुअल हाइजीन को डिफाइन किया है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक मासिक धर्म से जुड़ी स्वच्छता के लिए चार अहम काम करने होंगे.
1. इसके तहत मासिक धर्म की प्रक्रिया से गुजर रही महिला व लड़की को क्लीन मेंस्ट्रुअल मैटेरियल यानी सेनेटरी पैड उपलब्ध कराया जाना चाहिए.
2. पैड बदलने के लिए प्राइवेसी उपलब्ध हो.
3. बॉडी की क्लीनिंग के लिए साबुन और पानी उपलब्ध हो.
4. सेनेटरी पैड व नैपकीन के सुरक्षित डिस्पोज की व्यवस्था हो.
प्रसिद्ध गायनेकोलॉजिस्ट डॉ अंजली कुमार के मुताबिक मेंस्ट्रुअल हाइजीन में बरती गई लापरवाही से कैंसर और बांझपन (infertility) जैसी समस्याएं भी सामने आती हैं. उनका कहना है कि मासिक धर्म से जुड़ी स्वच्छता के दो पहलु हैं. पहला लड़कियों और महिलाओं द्वारा मासिक धर्म की प्रक्रिया को स्वस्थ बनाए रखना, इसके लिए सेनेटरी नैपकीन का इस्तेमाल करना. इसके बाद सैनेटरी नैपकीन का निस्तारण (वेस्ट मैनेजमेंट) भी अहम मुद्दा है. ध्यान रहे, मासिक धर्म महिला के प्रजनन का सामान्य हिस्सा है.
क्या इस बार की थीम
2013 में एक जर्मन एनजीओ वॉश यूनाइटेड मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे की पहल की और अगले वर्ष 2014 से 28 मई को दुनिया भर में मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे (विश्व मासिक धर्म स्वच्छता) मनाया जाने लगा. इस वर्ष मेंस्ट्रुअल हाइजीन डे की थीम मेकिंग मेंस्ट्रुअल ए नार्मल फैक्ट ऑफ लाइफ बाई 2030 ( वर्ष 2030 तक मासिक धर्म को जीवन के अहम हिस्से के रूप में स्थापित करना ) है. इसका लक्ष्य है पीरियड्स के कारण किसी को पीछे नहीं रहना पड़े.
अवेयरनेस से बढ़ेगा सैनेटरी नैपकीन का इस्तेमाल
वर्तमान में भारत में लगभग 35 करोड़ महिलाएं मासिक धर्म (Menstruation) के दायरे में हैं. लेकिन 22 फीसदी महिलाओं को ही सेनेटरी नैपकीन मिल पाता है. सेनेटरी नैपकीन का इस्तेमाल बढ़ाने के लिए जागरुकता एक अहम मुद्दा है. आज भी भारतीय समाज में इसे लेकर खुलकर बात नहीं की जाती है. जबकि यह एक जैविक क्रिया है. यहां तक की माहवारी, मासिक धर्म या पीरिएड्स को लेकर बात करना संकोच और शर्म का विषय होता है. इस स्थिति को बदले बिना मासिक धर्म से जुड़ी स्वच्छता का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाएगा.
सैनेटरी नैपकीन का निस्तारण बड़ी चुनौती
भारत में 12 करोड़ 10 लाख महिलाएं हर महीने औसतन 8 सेनेटरी नैपकीन इस्तेमाल करती हैं. इससे सालाना 1 लाख 13 हजार टन मैंन्ट्रु हाइजीन वेस्ट पैदा होता है. चूंकि इन पैड्स को बनाने में भारी मात्रा में प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है, जिसे पूरी तरह से गलने में 500 से 800 साल लग जाते हैं. अक्सर देखा जाता है कि सेनेटरी नैपकीन का निस्तारण सही तरीकों न होने से इन्हें जला दिया जाता है या शौचालय में फ्लश करने या लैण्डफिल में छोड़ दिया जाता है. इससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचता है. यही नहीं इनको एकत्रित करने वाले सफाई कर्मचारियों के स्वास्थ्य के लिए भी घातक होते हैं.
बायोडिग्रेडेबल सैनेटरी नैपकीन विकल्प
ऐसे में अब जरूरत बायोडिग्रेडेबल सेनेटरी नैपकीन की है. भारत में अभी इनका चलन बहुत कम है. हालही में गोरखपुर की एक कंपनी नाईन ने सराहनीय पहल करते हुए बायोडिग्रेडेबल सैनेटरी नैपकीन लॉच किया है. बताया जाता है कि ये लकड़ी के गूदे, रेज़िन एवं ऑयल, पीएलए (पॉली लैक्टिक एसिड) आधारित सामग्री से बनाए जाते हैं. इससे यह आसानी से मिट्टी में गल कर खाद बन जाते हैं. हालांकि बायोडिग्रेडेबल सैनेटरी नैपकीन को बनाने में अभी लागत बहुत अधिक आती है. बायोडिग्रेडेबल सेनेटरी नैपकीन को प्रोत्साहित करने में जुटे सामाजिक उद्यमी अमर तुलसियान के मुताबिक सरकार को चाहिए की इससे जुड़े कच्चे माल पर उत्पादकों को कस्टम ड्यूटी में राहत दे, जिससे इन्हें कॉस्ट इफेक्टिव बनाया जा सके. बहरहाल जब तक समाज मासिक धर्म और पीरियड्स को लेकर अपनी पुरानी मान्यताओं को नहीं बदलेगा तब तक यह महिलाओं के स्वास्थ्य के सामने चुनौती के रूप में होगा. जबकि यह एक ऐसी जैविक प्रक्रिया है जो सृजन का आधार है.
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