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नैनीताल: हाई कोर्ट ने देवस्थानम बोर्ड पर जाने-माने वकील और BJP के दिग्गज नेता सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका खारिज कर दी है. उत्तराखंड सरकार ने राज्य में होने वाली धार्मिक यात्राओं के बेहतर संचालन के लिए देवस्थानम बोर्ड का गठन किया है, इसी बोर्ड के गठन को चुनौती देते हुए सुब्रमण्यम स्वामी ने ये याचिका दायर की थी कि धार्मिक यात्राओं का संचालन सरकार का काम नहीं है. आज यानि मंगलवार को नैनीताल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने ये स्वामी की याचिका खारिज कर दी. देवस्थानम बोर्ड पर कोर्ट के फैसले के बाद राज्य सरकार ने राहत की सांस ली है.
सुब्रमण्यम स्वामी अब सुप्रीम कोर्ट में करेंगे अपील
नैनीताल होई कोर्ट के फैसले के बाद सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुये कहा कि वो अभी आदेश का अध्ययन कर रहे हैं. नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले को वो सुप्रीमकोर्ट में चुनौती देंगे. स्वामी हाई कोर्ट में अपनी बहस के दौरान लगातार संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 32 का हवाला देते हुये इस बोर्ड के गठन को जनभावनाओं के विरूद्ध बता रहे थे. मुख्यमंत्री को बोर्ड का अध्यक्ष बनाये जाने का भी वो लगतार विरोध करते रहे. स्वामी का तर्क था कि मुख्यमंत्री एक जनप्रतिनिधि है, ऐसे में उसका काम सरकार चलाना है, मंदिर चलाना नहीं स्वामी का तर्क था कि सरकार तीर्थ पुरोहितों को उनके पारंपरिक अधिकारों से वंचित करना चाहती है.
सरकार की पैरवी में कूदा NGO
तीर्थ पुराहितों ने जैसे ही बोर्ड के गठन को चुनौती दी वैसे ही स्वामी उनके समर्थन में खड़े हो गए. लेकिन सरकारी वकील की पैरवी के साथ-साथ देहरादून के एक NGO ने भी बोर्ड गठन को लेकर सरकार की कोर्ट में मजबूत पैरवी की. हालांकि इस मामले में कई बार स्वामी के तर्कों से राज्य सरकार बैकफुट पर नजर आई.
क्या है चार धाम देवस्थानम एक्ट?
सरकार ने चारो धामों में श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए चार धाम समेत कुल 51 मंदिरों के रखरखाव, बुनियादी सुविधाओं और ढांचागत सुविधाओं के लिए देवस्थानम बोर्ड का गठन किया. मुख्यमंत्री को इसका अध्यक्ष, संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री को उपाध्यक्ष और गढ़वाल मंडल के मंडालायुक्त को CEO की जिम्मेदारी दी गई. मुख्यसचिव, पर्यटन सचिव, वित्त सचिव को इसका पदेन सदस्य नियुक्त किया गया. इसके अलावा भारत सरकार के संस्कृति विभाग के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी को भी पदेन सदस्य नियुक्त किया गया. टिहरी रियायत के के सदस्य को भी बोर्ड में नामित किया गया. सनातन धर्म का पालन करने वाले 3 सांसद और 6 विधायक भी बोर्ड में नामित होते हैं. इस बोर्ड का वास्तविक मकसद यात्रा की व्यवस्था को बेहतर किया जाना है.
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गठन के बाद से ही राजनीति का केंद्र बन गया है बोर्ड
बोर्ड के गठन के बाद उत्तराखंड कांग्रेस ने इसे राजनीतिक मुददा बनाते हुये तीर्थ पुरोहितों को साथ लेकर कई बार विरोध प्रदर्शन किया. कांग्रेस ने खुले मंच ने सरकार में आने के बाद इसको निरस्त करने का वायदा भी तीर्थ पुराहितों से किया है.
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