कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बी एस कौटिल्य बताते हैं कि भूस्खलन के चलते बलिया नाले की बुनियाद 90% तक खराब हो चुकी है. साथ ही बलियानाला एक मीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से नीचे की तरफ खिसक रहा है, जो नैनीताल के अस्तित्व पर बड़ा खतरा है.
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गौरव जोशी/नैनीताल: बीते 150 साल से बलिया नाला क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन से अब नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है. बरसात के दौरान लगातार भूस्खलन की घटनाएं सामने आ रही हैं. भूस्खलन बलियानाला क्षेत्र से बढ़ते हुए पाइंस समेत कृष्णापुर क्षेत्र तक जा पहुंचा है. जिससे ब्रिटिश कालीन शहर त्रि -ऋषि सरोवर नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है.
कई सालों से बलिया नाले पर अध्ययन कर रहे कुमाऊं विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बी एस कौटिल्य बताते हैं कि भूस्खलन के चलते बलिया नाले की बुनियाद 90% तक खराब हो चुकी है. साथ ही बलियानाला एक मीटर प्रति वर्ष की रफ्तार से नीचे की तरफ खिसक रहा है, जो नैनीताल के अस्तित्व पर बड़ा खतरा है. अगर समय रहते इसका उपचार नहीं किया गया तो जल्द ही नैनीताल का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है. प्रोफेसर कॉटिल्या बताते हैं कि नैनीताल बलियानाले से शुरू हुआ भूस्खलन अब शहर के अन्य क्षेत्रों को खतरा पैदा कर रहा है. बलियानाले से लगे कृष्णापुर क्षेत्र में भी कई दरारें पड़ने लगी हैं, अध्ययन के दौरान उन्हें पता लगा कृष्णापुर क्षेत्र में भी लंबी लंबी दरारें पड़ने लगी है जो धीरे-धीरे शहर की तरफ बढ़ रही हैं.
उन्होंने बताया कि बलियानाले की पहाड़ी पर हो रहे भूस्खलन का मुख्य कारण बलियानाला की पहाड़ी पर हो रहे पानी का रिसाव है. पहाड़ियों पर तेजी से हो रहा रिसाव बलिया नाले को तेजी से कमजोर कर रहा है. साथ ही भूमिगत तौर पर पहाड़ियों को असुरक्षित बना रहा है. जिस तरफ भी नाले पर काम कर रही निर्माण एजेंसियों समेत सरकार को विशेष ध्यान देना चाहिए. सरकार को समय रहते पहाड़ी पर बह रहे पानी को एकत्र कर नैनी झील पर छोड़ना चाहिए.
भूस्खलन प्रभावित पहाड़ी सुरक्षित हो सकेगी. इसके अलावा बलियानाले के स्थाई ट्रीटमेंट के लिए राज्य सरकार को उत्तरकाशी के वर्णावत पर्वत की तर्ज पर काम किया जाना चाहिए. जिससे नैनीताल की बुनियाद में हो रहे भूस्खलन पर रोक लग सकेगी. बलिया नाला क्षेत्र में रहने वाले लोग भी बलिया नाले में हो रहे भूस्खलन से चिंतित हैं और सरकार से जल्द से जल्द क्षेत्र के ट्रीटमेंट की मांग कर रहे हैं.