Garwali Mithai: गरमा-गरम खाएं या हफ्ते भर बाद, उत्तराखंड की इस मिठाई का नहीं बदलता स्वाद...पहाड़ की संस्कृति मे रची-बसी यह मिठाई अपने आप में शुभ मानी जाती है. लेकिन धीरे-धीरे इस मिठाई का चलन कम होता चला है. आइए इस रिपोर्ट में जानते हैं इसकी वजह
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टिहरी: अरसा यानी कि एक लंबा समय बीत जाना. इसी शब्द पर उत्तराखंड (Uttarakhand) के पहाड़ी क्षेत्रों में विवाह समेत अन्य शुभ कार्यों पर एक मिठाई बनाई जाती है जिसे, अड़सा कहा जाता है. पहाड़ की संस्कृति मे रची-बसी यह मिठाई अपने आप में शुभ मानी जाती है. लेकिन धीरे-धीरे इस मिठाई का चलन कम होता चला है. आइए इस रिपोर्ट में जानते हैं इसकी वजह
शुभ कामों में 'अड़सा'
दरअसल, पहाड़ी राज्य उत्तराखंड अपनी अलग संस्कृति और रीति-रिवाजों के लिए पूरे देश में अलग पहचान रखता है. यहां पर होने वाले विवाह समेत अन्य शुभ कार्यों पर बनने वाली मिठाई अड़सा भी है जोकि, शुभ कार्यों में आने वाले मेहमानों को विदाई के समय मिठाई के रूप में दी जाती है. इसमें कई मेहमान ऐसे होते हैं जो लंबे अरसे बाद एक दूसरे से मिल रहे होते हैं. गुड़ की घोल में चावल के आटे को मिलाकर बनाई जाने वाली यह मिठाई बेहद स्वादिष्ट और लंबे समय तक चलने वाली होती है.
पहाड़ी संस्कृति की पहचान है 'अड़सा'
पहाड़ी संस्कृति में अलग पहचान रखने वाली यह मिठाई अब धीरे-धीरे चलन से बाहर होती जा रही है. इसकी जगह बाजार में बनने वाले लड्डू समेत अन्य बाजार की मिठाइयों ने लेनी शुरू कर दी है जिसके पीछे की वजह स्थानीय लोग भागदौड़ भरी जिंदगी में समय का अभाव और अड़से को बनाने में लगने कड़ी मेहनत और अधिक समय को जिम्मेदार ठहराते हैं.
बहरहाल, उम्मीद की जानी चाहिए कि पहाड़ के वाशिंदे इस मिठाई के सांस्कृतिक महत्व को समझते हुए इसको बढ़ावा देने की कोशिश करेंगे ताकि आने वाली पीढ़ियां इस मिठाई के सांस्कृतिक महत्व के बारे में जान सकें.
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