maa durga unique temple: उत्तराखंड का अनोखा मंदिर जहां अंगुली स्पर्श से हिलता है त्रिशूल, देवी मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
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maa durga unique temple: उत्तराखंड का अनोखा मंदिर जहां अंगुली स्पर्श से हिलता है त्रिशूल, देवी मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

maa durga unique temple: उत्तरकाशी में शक्ति मंदिर में मां दुर्गा शक्ति के रूप में विराजमान हैं. जहां पर नवरात्रि में श्रद्धालु दूरदराज से मां शक्ति के त्रिशूल का दर्शन करने के लिए आते हैं. मंदिर में स्थापित त्रिशूल अंगुली के स्पर्श से त्रिशूल हिलने लगता है. 

maa durga unique temple: उत्तराखंड का अनोखा मंदिर जहां अंगुली स्पर्श से हिलता है त्रिशूल, देवी मां के दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु

हेमकान्त नौटियाल/उत्तरकाशी: हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व माना जाता है. चैत्र नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-आराधना की जाती है. आज नवरात्रि की अष्टमी तिथि है. अष्टमी तिथि पर मां दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. नवरात्रि में माता रानी के मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है, कई ऐसे मंदिर हैं जो कई मायनों में अनूठे हैं. इन्हीं में से एक है उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का  शक्ति मंदिर. 

दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
उत्तरकाशी जिले के मंदिरों में चैत्र नवरात्रि की धूम है, भागीरथी नदी के किनारे और काशी विश्वनाथ मंदिर के सम्मुख स्थित शक्ति मंदिर में मां दुर्गा शक्ति के रूप में विराजमान हैं. जहां पर नवरात्रि में श्रद्धालु दूरदराज से मां शक्ति के त्रिशूल का दर्शन करने के लिए आते हैं. मंदिर में स्थापित त्रिशूल की विशेषता है कि त्रिशूल को जोर से हिलाने पर नहीं हिलता है लेकिन अंगुली के स्पर्श से त्रिशूल हिलने लगता है. प्राचीन शक्ति मंदिर में नवरात्र पर श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है. आस्था है कि इस मंदिर में दुर्गा देवी शक्ति स्तंभ के रूप में विराजमान हैं.

स्कंद पुराण में है इस शक्ति त्रिशूल का वर्णन
मंदिर के पुजारी का कहना है कि स्कंद पुराण के केदारखंड में इस शक्ति त्रिशूल का वर्णन मिलता है. यह सिद्धपीठ पुराणों में राजराजेश्वरी माता शक्ति के नाम से जानी गई है. अनादि काल में देवासुर संग्राम हुआ था, जिसमें देवता और असुरों से हारने लगे, तब सभी देवताओं ने मां दुर्गा की उपासना की थी जिसके बाद दुर्गा ने शक्ति का रूप धारण किया और असुरों का वध इस त्रिशूल से किया.

इसके बाद यह दिव्य शक्ति के रूप में विश्वनाथ मंदिर के निकट अनंत पाताल लोक में भगवान शेषनाग के मस्तिक में शक्ति स्तंभ के रूप में विराजमान हो गई. वहीं आज तक इस शक्ति स्तंभ का ये पता नहीं चल पाया है कि यह किस धातु से बना हुआ है और इसकी गहराई कितनी है. इस त्रिशूल की धातु और गहराई का पता लगाने के लिए कई बार वैज्ञानिकों ने इस पर शोध भी किया फिर भी इसका पता नहीं चल पाया.

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