Varanasi News: वाराणसी की धार्मिक समितियों ने गंगा आरती का शादियों और सामाजिक आयोजनों में हो रहे व्यावसायिक दुरुपयोग पर कड़ा विरोध जताया जा रहा है. इवेंट कंपनियाँ गंगा आरती को एक प्रदर्शन के रूप में पेश कर रही हैं, जिससे इसकी पवित्रता पर असर पड़ रहा है.
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Varanasi News: काशी के घाटों पर शाम ढलते ही गंगा आरती की दिव्यता का जो दृश्य होता है, वह किसी भी धर्म और संस्कृति में समान आदर का प्रतीक है. सनातन संस्कृति की पहचान, बनारस की गंगा आरती, अब केवल धार्मिक श्रद्धा का केंद्र नहीं रह गई है बल्कि इसे अब व्यावसायिक आयोजन के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा रहा है.
धार्मिक समितियाँ हो रही एकजुट
काशी की इस पहचान को लेकर अब स्थानीय धार्मिक समितियाँ गहरी चिंता में हैं और इसे रोकने के लिए एकजुट हो रही हैं. काशी विद्वत परिषद और काशी तीर्थ पुरोहित समिति सहित अन्य समितियाँ ने एक बैठक आयोजित की, जिसमें इस मुद्दे पर सख्त कदम उठाने की रणनीति तय की गई. जल्द ही ये समितियाँ धर्मार्थ मंत्रालय को एक पत्र लिखने की योजना बना रही हैं, जिसमें गंगा आरती के इस दुरुपयोग पर सख्त कार्यवाही की मांग की जाएगी.
क्या है विवाद की जड़?
दरअसल, काशी की धार्मिक समितियाँ मानती हैं कि गंगा आरती का आयोजन केवल श्रद्धा और आस्था का विषय है. इसे किसी भी अन्य प्रकार के दिखावटी आयोजन में शामिल करना उसकी पवित्रता और मर्यादा का उल्लंघन है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, शादियों और अन्य सामाजिक समारोहों में इसे इवेंट के तौर पर शामिल करने का चलन तेजी से बढ़ा है. इसमें विशेषतः इवेंट मैनेजमेंट कंपनियों का हाथ बताया जा रहा है, जो गंगा आरती की प्रतिकृति बनाकर अपने कार्यक्रमों में शामिल कर रहे हैं.
गंगा आरती की इस तरह से नकल करना और उसे केवल एक प्रदर्शन का रूप दे देना, काशी की धार्मिक संस्थाओं के लिए अस्वीकार्य है. गंगा सेवा निधि के संरक्षक, श्याम लाल सिंह, ने बैठक के दौरान कहा कि इस तरह का कार्य "धार्मिक अपराध" के समान है और इसके लिए सख्त दंड का प्रावधान होना चाहिए.
समुदाय की अपील: धार्मिक मान्यताओं की रक्षा के लिए कदम उठाएं
बैठक में यह भी प्रस्तावित किया गया कि काशी विद्वत परिषद और काशी तीर्थ पुरोहित समिति को इसके विरोध में एक बड़ा आंदोलन खड़ा करना चाहिए. इस समस्या का सामना करने के लिए विभिन्न धार्मिक संगठनों के संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है. श्याम लाल सिंह का कहना है कि इस तरह के कार्यक्रमों के कारण जल्द ही ऐसा समय आ सकता है जब इवेंट कंपनियाँ पुरोहितों को भी अपने पैकेज में शामिल कर लेंगी और ऐसे कथित पुरोहित केवल रिकॉर्ड किए गए मंत्रों के साथ शादी-विवाह कराएँगे.
गंगा आरती की मर्यादा को बनाए रखने के लिए कुछ अहम प्रस्ताव पारित किए गए हैं:
1. गंगा आरती की पवित्रता की रक्षा: किसी भी प्रकार का आयोजन जिसमें गंगा आरती की मर्यादा को ठेस पहुँचाई जाए, उसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाएगा. यह तय किया गया कि गंगा आरती के दुरुपयोग पर रोक लगाने के लिए सभी कदम उठाए जाएँगे.
2. इवेंट कंपनियों पर प्रतिबंध: शादियों और अन्य कार्यक्रमों में गंगा आरती का आयोजन करने वाली इवेंट कंपनियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है. इससे गंगा आरती की पवित्रता और गरिमा बनाए रखी जा सकेगी.
3. फर्जी ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन पर रोक: गंगा आरती में भाग लेने के नाम पर कुछ ठगों ने फर्जी ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू कर दिए हैं. इसका खुलासा करते हुए समितियों ने सरकार से इन ठगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग की है, ताकि गंगा आरती के नाम पर किसी प्रकार का व्यावसायिक लाभ न उठाया जा सके.
4. फर्जी थाली में आरती और धन वसूली: गंगा आरती के बाद कुछ लोग फर्जी थाली में दीपक जलाकर श्रद्धालुओं से धन वसूली कर रहे हैं. इसे देखते हुए इस तरह के कार्यों पर पूर्ण रोक लगाने का प्रस्ताव भी पारित किया गया है.
5. देव दीपावली से पहले सफाई व्यवस्था: आगामी देव दीपावली के आयोजन के मद्देनज़र, सभी घाटों की सफाई, लाइट व्यवस्था और आवश्यक मरम्मत कार्य समय पर पूरे किए जाने की मांग की गई है.
6. पुरानी और जर्जर नावों को हटाने की मांग: कुछ लोग गंगा के पक्के घाटों पर टूटी-फूटी नावों की मरम्मत करते हैं, जो श्रद्धालुओं और पर्यटकों के आवागमन को प्रभावित करता है. समितियों ने आग्रह किया कि जर्जर नावों को घाटों से हटाकर अन्य स्थानों पर ले जाया जाए, ताकि घाटों की छवि बनी रहे.
संस्कृति की रक्षा: काशी का कर्तव्य
काशी के लोगों का मानना है कि गंगा आरती केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि काशी की पहचान है. इसे व्यावसायिक रूप देने का प्रयास संस्कृति का अपमान है. इस संबंध में जल्द ही धार्मिक समितियाँ संगठित होकर धर्मार्थ मंत्रालय से हस्तक्षेप की अपील करने जा रही हैं. यह बैठक गंगा आरती की दिव्यता और उसकी सांस्कृतिक महत्ता को संरक्षित करने का एक प्रयास है. आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या सरकार इस मांग पर ध्यान देती है और क्या गंगा आरती की गरिमा को बनाए रखने के लिए सख्त नियमों को लागू किया जाता है या नहीं.
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