नेत्रहीन भी अब ले पाएंगे धरती की सुंदरता का आनंद, यहां बना विश्व का पहला दृष्टि ईको पार्क
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नेत्रहीन भी अब ले पाएंगे धरती की सुंदरता का आनंद, यहां बना विश्व का पहला दृष्टि ईको पार्क

राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान में विश्व की पहली ईको वाटिका विकसित की गई है और इन पेड़-पौधों को दृष्टि दिव्यांग को छूने, खूशबू और खाने से पहचान सकेंगे.

वाटिका में पेड़ पौधों पर ब्रेल लिपि में पूरी जानकारी लिखी गई है.

देहरादून: क्या आपने सोचा है कि जो लोग आंखों से देख नहीं सकते, वो धरती की सुदंरता को कैसे महसूस करते होंगे. लेकिन अब ऐसे लोग धरती की हरियाली को महसूस कर सकेंगे और औषधीय पेड़-पौधों की जानकारी भी ब्रेल लिपि में उन्हें मिलेगी. देहरादून के राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान में विश्व की पहली ईको वाटिका विकसित की गई है और इन पेड़-पौधों को दृष्टि दिव्यांग को छूने, खूशबू और खाने से पहचान सकेंगे.

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संस्थान में ईको वाटिया को शुरू करने का ये नायाब सोच 6 महीने पहले शुरू की गई. करीब 44 एकड़ क्षेत्रफल में फैले संस्थान में सैकड़ों पेड़-पौधे हैं, जिन्हें दृष्टि दिव्यांगों नहीं देख सकते थे और न ही उन्हें इनकी जानकारी थी. इस वाटिका में पेड़ पौधों पर ब्रेल लिपि में पूरी जानकारी लिखी गई है और इनके औषधीय गुणों के बारे में बताया गया है. इस वाटिया में केवल पेड़ ही नहीं औषधीय गुणों वाले पौधों को भी लगाया गया है. ईको टूरिज्म की तर्ज पर इसे यूनिवर्सिल डिजाइन से तैयार किया गया है. 

औषधीय पौधों के लिए नीले, लाल, हरे और पीले रंग में बोर्ड लगाया गया है. प्रकृति के बारे में दृष्टि दिव्यांगों के लिए ये अपनी तरह का पहला प्रयोग है. संस्थान के निदेशक ने डॉ नचिकेता राऊत ने कहा कि अब दृष्टि दिव्यांग भी पेड़-पौधों के बारे में जान सकेंगे और अपने आप को प्रकृति के बीच पाएंगे. संस्थान के निदेशक डॉ नचिकेता राऊत ने कहा कि दृष्टि दिव्यांग छात्रों को प्रकृति के और करीब लाने और बागवानी को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है. उन्होने कहा कि सभी पेड़-पौधों को ऐसे डिजाइन से लगाया है, ताकि भविष्य में मैप भी तैयार किया जा सके.

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राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान देश का एक प्रतिष्ठित संस्थान है, जिसने इस तरह का नायाब प्रयोग किया है. संस्थान में करीब 500 दृष्टि दिव्यांग बच्चे पढ़ते हैं साथ ही दृष्टि दिव्यांगों को ट्रैनिंग भी दी जाती है. 30 लोगों का स्टाफ भी दृष्टि दिव्यांग है, जो यहां कार्यरत है. संस्थान में कढ़ी पत्ता, एलोविरा, धनिया, नीम, लेमनग्रास, तुलसी, तेजपत्ता, नीम, आम, लीची, पीपल और जामून के पेड़ों पर ब्रेल लिपि में जानकारी लिखी गई है.

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अभी इसकी शुरुआत छोटे स्तर पर की गई है, लेकिन धीरे-धीरे पूरे संस्थान में इस ईको वाटिका को विकसित किया जा रहा है. औषधीय पेड़ पौधों को स्टैंड लगाकर खड़ा किया गया है और इन्हें नीले, लाल, हरे और पीले रंग में रंगा गया है. लाल रंग स्टैंड में जो पौधे को छूने, नीले रंग स्टैंड में जो पौधे है उन्हें खाने, हरे स्टैंड में खूशबू और पीले रंग में जो स्टैड इस वाटिका में लगाए गये है उन्हें देखकर पहचाना जा सकता है. 

 

भारत के आखिरी गर्वनर जनरल लार्ड माउन्टबेटन ने ये जमीन फ्री में दी थी ताकि दृष्टि दिव्यांगों का इलाज किया जा सके. देश का पहला सीबीएसई स्कूल भी यहां संचालित है और 3 आईएएस भी इस संस्थान से निकल चुके है. अभी संस्थान के परिसर में ईको वाटिका को विसकित किया गया है लेकिन अब राजपुर और कैनाल रोड में स्थित आम, जामुन और यूकेलिप्टस के पेड़ों में भी ब्रेल लिपि से जानकारी दी जाएगी. 

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