Veerappan Death Date: वो मौत का दूसरा नाम था. ओसामा बिन लादेन को पकड़ने में 10 साल लगे. लेकिन उसे पकड़ने में दो दशक तक पुलिसवालों ने सिर खपाया. उसका नाम किसी को भी खौफजदा करने के लिए काफी था. दुबले पतले शरीर और लंबी मूंछों वाला वो शख्स था वीरप्पन, जिसने कभी पुलिसवालों को मौत के घाट उतार दिया तो कभी फिल्म स्टार को ही अगवा कर लिया. कहा जाता है उसने 2000 से ज्यादा हाथियों को मौत की नींद सुला दिया था.


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कर्नाटक में एक गांव है गोपीनाथम. यहां पूस के दिनों में 8 जनवरी 1952 को एक लड़का पैदा हुआ. नाम रखा गया मुनिस्वामी वीरप्पन. जैसे-जैसे बड़ा होता गया, उसके खूंखार इरादे सामने आने लगे. जब 17 साल का हुआ तो उसने पहले हाथियों को मारा और फिर उनके दांत बेचने का धंधा शुरू कर दिया. इस धंधे में वह इतनी तेजी से आगे बढ़ा कि जंगल ही उसके लिए घर बन गए. बहुत कम उम्र में उसने अपना गिरोह तैयार कर लिया था. ये लोग हाथी के दांतों के साथ-साथ चंदन की भी तस्करी करते थे. वीरप्पन के गुर्गों ने जंगलों से 2000 से ज्यादा हाथियों का नामोनिशान मिटा दिया था. इन हाथी दांतों को बहुत ऊंचे दामों पर विदेशों में सप्लाई कर दिया जाता था.


2 महीने की बेटी को उतारा था मौत के घाट


 पुलिस लगातार उसके पीछे थी. लेकिन गैंग ही उसका इतना पावरफुल हो चुका था कि हर एक्शन की खबर उसे पहले ही मिल जाती थी. 1987 में उसने एक फॉरेस्ट अफसर को अगवा कर लिया. तमिलनाडु सरकार ने एक्शन दिखाना शुरू किया और गोपालकृष्ण नाम के मशहूर पुलिस अफसर को कमान सौंपी. वह 4 पुलिसवाले, 12 मुखबिरों और 2 फॉरेस्ट अधिकारियों को लेकर वीरप्पन को पकड़ने जंगल में पहुंचे. लेकिन वहां वीरप्पन ने माइंस बिछाई हुई थीं. इस धमाके में गोपालकृष्ण समेत 21 लोग मारे गए थे.


कहा जाता है कि सरेंडर का बहाना बनाते हुए उसने एक फॉरेस्ट अफसर को किडनैप किया. बाद में उसके सिर को काटकर उससे फुटबॉल खेली थी. उसकी बेरहमी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक बार पुलिस उसे गिरफ्तार करने के बहुत करीब आ गई थी. तब उसकी दो महीने की बेटी भी उसके साथ थी. तभी वह रोने लगी. तो उस जल्लाद ने बच्ची को गला दबाकर मार दिया ताकि उसके रोने से वह गिरफ्तार न हो जाए. 


फिल्मस्टार को कर लिया था किडनैप


साल 2000 में उसने साउथ के मशहूर हीरो राजकुमार को अगवा कर लिया था. पूरा देश इससे हिल गया था. 100 दिन तक राजकुमार वीरप्पन के पास रहे लेकिन कोई भी वीरप्पन तक पहुंच नहीं पाया. उसने इसके बदले सरकार से अपनी मांगें मनवाईं और जब वे पूरी हो गईं तब उसने राजकुमार को छोड़ा.


ऐसे हुआ खात्मा


पुलिस और सरकार सोच नहीं पा रही थी कि कैसे वीरप्पन को पकड़ा जाए. 2003 में तमिलनाडु सरकार ने स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया. इसके हेड थे आईपीएस विजय कुमार. एकदम तेजतर्रार और बेहद होशियार. वह जानते थे कि जंगल में वीरप्पन को पकड़ना यानी मौत को दावत देना है. उन्होंने पहले वीरप्पन के गैंग में अपने लोग भर्ती कराए. एक दिन उनको मालूम चला कि वीरप्पन आंखों के इलाज के लिए जंगल से बाहर आ रहा है.


उन्होंने पूरा प्लान बनाया. एसटीएफ ने वीरप्पन के लिए जंगल में एंबुलेंस भेजी. इसका ड्राइवर पुलिस का आदमी था. जंगल से बाहर कुछ ही दूरी पर पुलिसवाले तैनात थे. मौका पाते ही एंबुलेंस का ड्राइवर भाग निकला और चारों तरफ से पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग की. इसी के साथ 20 साल का खौफ और मौत का पर्याय वीरप्पन मौत की नींद सो गया. 


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