Delhi AQI Index: दिल्ली-एनसीआर वालों की सेहत भगवान भरोसे है. खराब-दमघोटू हवा से सब परेशान हैं. इस बीच जगह एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई (AQI) की चर्चा हो रही है. क्या आपको पता है कि इसका मतलब क्या होता है? ये वो पैमाना है जिससे सरकारी मशीनरी हवा में मिले जहर का खाताबही मेंटेन करती है. आज चर्चा एक्यूआई की तो आइए आपको बताते हैं कि इसे कैसे मापा जाता है? 


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AQI को जानिए


कलर कोडेड AQI सूचकांक भारत में 2014 में लॉन्च किया गया था. 2014 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू किया गया AQI प्रदूषण को समझने में मदद करने के लिए है. AQI वायु गुणवत्ता की माप है AQI जितना अधिक होगा, हवा उतनी ही खराब होगी. शनिवार को लगातार तीसरे दिन AQI खराब स्थिति में है. शुक्रवार को AQI कुछ जगह 500 का आंकणा पार करने के साथ ही हाय तौबा मची है. आंखों में जलन, गले में खराश जैसी दिक्कतों से लोग डॉक्टर के पास जा रहे हैं. इस इंडेक्स की माप से पता चलता है कि किस जगह की हवा कितनी साफ है और सांस लेने लायक है या नहीं?


कैसे मापा जाता है एएक्यूआई?


हवा में मौजूद इन सभी जहरीले प्रदूषकों को अलग-अलग एक सूत्र के आधार पर वेटेज दी जाती है. वो वेटेज इस बात पर निर्भर करती है कि उसका मानव स्वास्थ्य पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ता है. IIT (कानपुर) और एक एक्सपर्ट पैनेल ने एक AQI योजना की सिफारिश की थी. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, AQI विभिन्न प्रदूषकों के जटिल वायु गुणवत्ता डेटा को एक एकल संख्या, नाम और कलर में बदल देता है. AQI को 08 प्रदूषण कारकों के आधार पर तय करते हैं. ये प्रमुखत: PM10, PM 2.5, NO2, SO2, CO2, O3, और NH3 Pb होते हैं. 24 घंटे में इन कारकों की मात्रा ही हवा की गुणवत्ता तय करती है.


गैस का खेल


सल्फर ऑक्साइड, ये कोयले और तेल के जलने उत्सर्जित होती है. वहीं कार्बन ऑक्साइड कोयला या लकड़ी जैसे ईंधन और डीजल-पेट्रोल गाड़ियों से होने वाला उत्सर्जन से पैदा होती है. नाइट्रोजन ऑक्साइड, जो उच्च ताप पर दहन से पैदा होती है. इसे निचली हवा की धुंध या ऊपर भूरे रंग के रूप में देखी जा सकती है. ये इंडस्ट्रियल सेक्टर की गतिविधियों से पैदा होती है. अमोनिया की गैस कूड़े, सीवेज और औद्योगिक प्रक्रिया से उभरने वाली गंध से भी उत्सर्जित होती है. 


पीएम 2.5 और पीएम 10 को जानिए


पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर ही धुंध बढ़ती है. विजिबिलिटी का स्तर भी गिर जाता है. ये हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है. इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. पीएम 10 की बात करें ये पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) है. इसका साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. इसमें धूल, गर्दा और धातु के सूक्ष्म कण होते हैं. दिल्ली की धुंध और कम विजिबिलिटी के जिम्मेदार मुख्यत: यही कण होते हैं.



देशभर के निगरानी स्टेशन इन लेवल का आकलन करते हैं. दिल्ली के अलग अलग इलाकों में AQI मापने के यंत्र लगे हुए हैं. विज्ञान के छात्रों के साथ जागरूक पाठक जानते हैं कि ये जहरीली गैसें हैं जो जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं. उच्च एक्यूआई वाले क्षेत्रों में, लोगों को बिना जरूरी काम के बाहर न जाने और अच्छी क्वालिटी का मास्क पहनने की सलाह दी जाती है.