नई दिल्ली : ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कुछ दूसरे मुस्लिम संगठनों की ओर से तीन तलाक एवं समान आचार संहिता से जुड़ी विधि आयोग की प्रश्नावली के बहिष्कार का ऐलान किए जाने के बाद मुस्लिम महिला कार्यकर्ताओं ने बोर्ड और इन संगठनों पर निशाना साधते हुए कहा कि ये लोग मुसलमानों के प्रतिनिधि नहीं हैं और उनका रूख धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक है।


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भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की सह-संस्थापक जकिया सोमान ने  कहा, ‘विधि आयोग ने सिर्फ तीन तलाक की बात नहीं कही है। उसने हिंदू महिलाओं के संपत्ति के अधिकार और ईसाई महिलाओं के तलाक से संबंधित मामलों की भी बात की है। इसलिए आयोग पर सवाल खड़े करना अनुचित है।’ जकिया ने आरोप लगाया, ‘पर्सनल लॉ बोर्ड में बैठे लोग मुसलमानों के प्रतिनिधि नहीं हो सकते। यह बोर्ड महज एक एनजीओ है और देश में हजारों एनजीओ हैं। इसलिए इनकी बात को मुस्लिम समुदाय की बात नहीं कहा जा सकता। मुझे लगता है कि इनका रूख धार्मिक नहीं बल्कि पूरी तरह से राजनीतिक है। महिलाओं की मांग कुरान के मुताबिक है और उन्हें उनका हक मिलना ही चाहिए।’


ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और देश के कुछ दूसरे प्रमुख मुस्लिम संगठनों ने आज समान आचार संहिता पर विधि आयोग की प्रश्नावली का बहिष्कार करने का फैसला किया और सरकार पर उनके समुदाय के खिलाफ ‘युद्ध’ छेड़ने का आरोप लगाया। यहां प्रेस क्लब में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए मुस्लिम संगठनों ने दावा किया कि यदि समान आचार संहिता को लागू कर दिया जाता है तो यह सभी लोगों को ‘एक रंग’ में रंग देने जैसा होगा, जो देश के बहुलतावाद और विविधता के लिए खतरनाक होगा।


सामाजिक कार्यकर्ता और स्तंभकार नाइश हसन ने कहा, ‘इन लोगों की सोच कट्टरंपथी है। शाह बानो के समय भी इन लोगों ने सरकार पर दबाव बनाया था और आज भी वैसा ही करने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी मांग है कि सरकार इनके दबाव में नहीं आए।’’ नाइश ने कहा, ‘अब महिलाएं झुकने वाली नहीं है। वे हक लेकर रहेंगी। हम सरकार और अदालत के स्तर से पूरी मदद की उम्मीद कर रहे हैं। तीन तलाक की प्रथा का खत्म होना जरूरी है।’