Swami Avimukteshwaranand Political Comments: देश के धर्मगुरुओं में से इन दिनों सबसे ज्यादा राजनीतिक सुर्खियों में रहने वाले नाम में उत्तराखंड के जोशीमठ स्थित ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का नाम सबसे ऊपर है. महज कुछ घंटों के भीतर ही उन्होंने महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तराखंड की सियासत को सरगर्म कर दिया. 


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बयानों से महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तराखंड में मची सियासी हलचल


देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट के विवाह समारोह में भाग लेने के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आशीर्वाद के रूप में माला पहना दी. कुछ ही घंटों बाद मातोश्री में ठाकरे परिवार के सत्कार से प्रसन्न होकर उनको वापस मुख्यमंत्री बनाने की बात कर दी. कुछ ही घंटे बाद दिल्ली के बुराड़ी में प्रस्तावित केदारनाथ मंदिर निर्माण का मुखर विरोध किया. साथ ही केदारनाध धाम मंदिर से 228 किलो यानी लगभग 164 करोड़ कीमत का सोना गायब होने की चर्चा छेड़ दी.


स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को लेकर सोशल मीडिया पर जंग


कुछ ही घंटों में देश भर में सियासी जगत को कई सारे मुद्दे और सवाल उपलब्ध कराने के वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को लेकर सोशल मीडिया पर यूजर्स के बीच जंग छिड़ गई. वहीं, विभिन्न राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों के बयान भी आने लगे. ट्रेंड में रहने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को लेकर उनका अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा वाले समारोह में नहीं जाना फिर से याद किया जाने लगा. इससे पहले भी समय-समय पर एक संन्यासी के रूप में उनकी सक्रियता सामने आती रही है.


कौन हैं शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती?


स्वतंत्रता सेनानी और ज्योतिर्मठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के 2022 में निधन के बाद उनके उत्तराधिकारी शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य बनाया गया था. वहीं, शारदा पीठ द्वारका का शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती को बनाया गया था. दोनों ही पीठ के शंकराचार्यों में से स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बाहरी जगत में अधिक चर्चित और सक्रिय दिखते हैं. 


छात्र राजनीति में सक्रियता, 1994 में जीत चुके हैं छात्रसंघ का चुनाव


उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के पट्टी तहसील के ब्राह्मणपुर गांव में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का जन्म हुआ था. उनका मूल नाम उमाशंकर उपाध्याय है.  की प्राथमिक शिक्षा प्रतापगढ़ में ही हुई. उन्होंने वाराणसी के मशहूर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है. पढ़ाई के दौरान छात्र राजनीति में सक्रिय होकर 1994 में छात्रसंघ का चुनाव भी जीत चुके हैं. 


स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी राम चैतन्य का प्रभाव


गुजरात में रहने के दौरान उमाशंकर उपाध्याय धर्म और राजनीति में समान दखल रखने वाले स्वामी करपात्री जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी राम चैतन्य के संपर्क में आए. उनकी सलाह पर उमाशंकर उपाध्याय ने संस्कृत की विधिवत पढ़ाई शुरू की. करपात्री जी के बीमार होने पर वापस आकर उनके निधन तक उनकी खूब सेवा की. इसी बीच उमाशंकर ज्योतिष पीठाधीश्वर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के संपर्क में आए. 


15 अप्रैल 2003 को दंड सन्यास की दीक्षा, नाम स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद


संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से आचार्य की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद उन्होंने संन्यास को अपनाया. उन्हें 15 अप्रैल 2003 को दंड सन्यास की दीक्षा दी गई. उनका पुराना नाम छोड़ दिया गया. उनको स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती नाम से नई पहचान मिली. संन्यासी रहते हुए  स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती हमेशा सक्रिय रहते हैं. उन्हें सड़क पर उतर कर आंदोलन करते हुए कई बार देखा गया है. गंगा और गाय की रक्षा उनके खास मुद्दे हैं. साल 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित करने के लिए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने लंबे समय तक अनशन किया था. स्वास्थ्य बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. 


स्पष्ट है मोदी सरकार के खिलाफ स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की मुखरता 


अपने गुरु की आज्ञा के बाद ही स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने अपना अनशन खत्म किया था. उनके गुरु और कांग्रेसी कहे जाने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से उन्हें उत्तराधिकार के साथ ही कई राजनेताओं से नजदीकी भी मिली है. इसलिए मोदी सरकार के खिलाफ उनकी मुखरता स्पष्ट दिखती है. वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के निर्माण के दौरान उन्होंने मंदिर तोड़े जाने का काफी विरोध किया. लोकसभा चुनाव 2019 में वाराणसी में उन्होने पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की भी कोशिश की. लोकसभा चुनाव 2024 में वाराणसी सीट से गऊ गठबंधन के बैनर से उम्मीदवार उतारा था. 


उद्धव ठाकरे के घर हिंदू धर्म, पाप-पुण्य, विश्वासघात, दोबारा सीएम पर बातें


मुंबई में दिए स्वामी अमिमुक्तेश्वरानंद ने साफ कहा, ''हम हिंदू धर्म को मानते हैं. हम पुण्य और पाप में विश्वास करते हैं. विश्वासघात को सबसे बड़ा पाप कहा जाता है. यही उद्धव ठाकरे के साथ हुआ है. उन्होंने मुझे बुलाया था. मैं यहां (मातोश्री) आया. उन्होंने स्वागत किया. हमने कहा कि उनके साथ हुए विश्वासघात से हमें दुख है. जब तक वे दोबारा सीएम नहीं बन जाते, हमारा दुख दूर नहीं होगा.'' ठाकरे परिवार ने मातोश्री में उनका चरण पादूका पूजन आयोजित किया था.


शिंदे सेना की कड़ी प्रतिक्रिया, कौन मुख्यमंत्री बनेगा ये जनता तय करेगी


स्वामी अमिमुक्तेश्वरानंद के इस राजनीतिक बयान की महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिव सेना ने निंदा की. कांग्रेस छोड़कर शिंदे सेना में आए संजय निरुपम ने पलटवार किया कि जगतगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद जी धार्मिक कम और राजनीतिक ज्यादा हैं. कौन मुख्यमंत्री बनेगा और कौन नहीं ये जनता तय करेगी, शंकराचार्य नहीं. वहीं, भाजपा से जुड़े अकाउंट से सोशल मीडिया पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को जमकर ट्रोल किया जाने लगा.


केदारनाथ मंदिर और 228 किलो सोना गायब पर बयान से दो राज्यों में हलचल 


इसके बाद दिल्ली में बनने वाले केदारनाथ मंदिर पर ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने आरोप लगाया, "केदारनाथ में सोना घोटाला हुआ है, उस मुद्दे को क्यों नहीं उठाया जाता? वहां घोटाला करने के बाद अब दिल्ली में केदारनाथ बनेगा? और फिर एक और घोटाला होगा. केदारनाथ से 228 किलो सोना गायब है... कोई जांच शुरू नहीं हुई है. इसके लिए कौन जिम्मेदार है?... अब वे कह रहे हैं कि दिल्ली में केदारनाथ बनाएंगे, ऐसा नहीं हो सकता." 


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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की केदारनाथ मंदिर विवाद पर सफाई 


उनके इस बयान से दिल्ली से लेकर उत्तराखंड तक प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई. श्रीकेदारनाथ धाम ट्रस्ट, दिल्ली के अनुरोध करने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी केदारनाथ मंदिर के भूमिपूजन में शामिल हुए थे. उन्होंने विवाद पर सफाई देते हुए कहा, 'प्रतीकात्मक रूप में अनेक स्थानों पर मंदिरों का निर्माण हुआ है, लेकिन वो धाम का स्थान नहीं ले सकते हैं. बाबा केदार का धाम उत्तराखंड में है और ये कहीं और नहीं बन सकता.' 


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