भारत में 25 करोड़ परिवार हैं और इनमें से हर परिवार में कोई ना कोई बच्चा, कभी न कभी डॉक्टर बनने का सपना देखता है। आपने ये भी सुना होगा कि कुछ राज्यों ने NEET का विरोध किया है, तो कुछ राज्य NEET के पक्ष में हैं। लेकिन आपको अभी तक ये समझ में नहीं आया होगा कि NEET का मतलब क्या है? इसका Medical Entrance की परीक्षा पर क्या असर पड़ेगा? और इसे लेकर विवाद क्या है? 


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- NEET का मतलब होता है, National Eligibility Entrance Test. NEET का मकसद ये है कि देश भर के Medical colleges में दाखिले के लिए एक ही परीक्षा हो।


- दरअसल, 2012 में Medical Council of India और Dental Council of India ने देशभर में MBBS और postgraduate medical courses के लिए एक ही entrance exam करवाने की घोषणा की थी।


- 2012 से पहले CBSE, All India Pre-Medical Test यानी AIPMT का Exam लेता था। NEET परीक्षा की घोषणा होने के बाद इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गईं और जुलाई 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने NEET Exam को खारिज कर दिया और आदेश दिया कि private medical institutions को NEET परीक्षा के आधार पर admissions नहीं करने चाहिए। 


- इसके बाद Medical Council of India ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दाखिल की, जिस पर कोर्ट ने अप्रैल 2016 में सुनवाई की। 


- इस बीच केन्द्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट से NEET परीक्षा करवाने की मांग की थी, जिसके बाद 28 अप्रैल 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में NEET को लागू करने का फैसला कर दिया। 


- इसके बाद NEET Phase-1 के तहत 1 मई को Exam भी हुआ जिसमें करीब साढ़े 6 लाख छात्रों ने हिस्सा लिया। 


- कुछ राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई। इस पर राज्य सरकारों के तीन तर्क थे। 


- पहला तर्क ये था कि कुछ राज्य पहले ही परीक्षा करवा चुके हैं, ऐसे में छात्रों को दोबारा NEET के तहत परीक्षा देनी होगी। जिससे छात्रों को परेशानी होगी। 


- राज्यों का दूसरा तर्क ये था कि राज्य क्षेत्रीय भाषाओं में भी entrance exam करवाते हैं। लेकिन NEET के तहत परीक्षा सिर्फ अंग्रेज़ी में ही होगी, जिससे कई छात्र दाखिले से वंचित हो सकते हैं। 


- राज्यों का तीसरा तर्क था कि राज्यों की परीक्षा का syllabus, CBSE से अलग होता है। लेकिन NEET की परीक्षा CBSE syllabus के आधार पर ही होती है, इसलिए दूसरे Syllabus वाले छात्रों को इससे परेशानी हो सकती है।


- इन समस्याओं को देखते हुए 15 राज्यों ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से NEET को एक साल तक के लिए रोकने के लिए कहा था। इसके बाद सरकार एक अध्यादेश लेकर आई। जिसमें राज्यों को एक साल तक NEET परीक्षा से छूट दी गई। अब इस अध्यादेश को राष्ट्रपति ने मंज़ूरी दे दी है। 


- अध्यादेश के मुताबिक अब राज्यों को ये छूट मिलेगी कि वो इस साल MBBS और BDS के लिए ख़ुद टेस्ट करवाएं या NEET का हिस्सा बनें। हालांकि अगले वर्ष से NEET परीक्षा सभी राज्यों के लिए ज़रूरी होगी। 


- इस अध्यादेश की दूसरी अहम बात ये है कि सभी प्राइवेट और Deemed universities में दाखिला NEET के ज़रिए ही होगा, क्योंकि private collages में कम नंबर पाने वाले छात्र भी, मोटी फीस लेकर admission ले लेते थे।


- अब राज्य बोर्ड के छात्रों को 24 जुलाई को होने वाली NEET परीक्षा के दूसरे चरण में नहीं बैठना होगा, लेकिन अगर वो केन्द्रीय या private medical colleges में admission चाहते हैं, तो उन्हें NEET में शामिल होना होगा। 


- केन्द्र सरकार के अध्यादेश से राज्यों को 1 साल के लिए इस परीक्षा से छूट तो जरूर मिली है, लेकिन 1 वर्ष के बाद उन्हें नीट के द्वारा ही परीक्षा करवानी होगी। 


- प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए हर साल कम से कम 100 अलग-अलग परीक्षाएं आयोजित की जाती हैं। इन प्रवेश परीक्षाओं की फीस 1200 रुपये से 6,000 रुपये तक है। 


- इसका मतलब ये हुआ कि अगर कोई छात्र छह या सात अलग-अलग परीक्षाओं में बैठता है तो उसे करीब 25,000 रुपये फीस चुकानी होगी। इसमें आने-जाने का खर्च शामिल नहीं है। लेकिन नीट लागू होने के बाद अब सिर्फ एक ही परीक्षा होगी। 


- कुछ छात्र ऐसे भी हैं, जिन्हें नीट परीक्षा से समस्या है। इन छात्रों की समस्याओं को सुलझाए बगैर नीट का फॉर्मूला पूरी तरह सफल नहीं हो सकता।


- देश के 65 फीसदी मेडिकल कॉलेज पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में हैं। जिसकी वजह से राज्यों में डॉक्टरों और जनसंख्या के अनुपात में काफी अंतर है। 


- संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट के मुताबिक देश की कुल आबादी में 31 प्रतिशत जनसंख्या वाले छह राज्यों में एमबीबीएस की 58 प्रतिशत सीटें हैं जबकि 46 प्रतिशत आबादी वाले आठ राज्यों में केवल 21 प्रतिशत सीटें हैं।


आपके दिमाग में ये सवाल ज़रूर उठ रहा होगा कि क्या सचमुच NEET लागू होने से क्षेत्रीय भाषाओं वाले छात्रों के साथ भेदभाव होगा और वे पीछे छूट जाएंगें? या फिर नेता अपने फायदे के लिए Students के कंधे पर बंदूक रखकर चला रहे हैं? इसका जवाब हमें ढूंढना होगा। दरअसल सारा खेल ये है कि private medical colleges के मालिक और जिन नेताओं का पैसा इन colleges में लगा है, वो लोग मेडिकल सीटों पर Capitation Fees और Management Quota से होने वाली कमाई छोड़ने को तैयार नहीं हैं। ये बात किसी से छिपी नहीं है कि बहुत से private medical colleges या तो सीधे प्रभावशाली नेता और उनके परिवार से जुड़े हैं या फिर कुछ नेताओं अघोषित का पैसा इनमें लगा हुआ है। खासतौर पर महाराष्ट्र, कनार्टक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु में private medical colleges में मोटी Capitation फीस के बदले एडमिशन करवाना आम बात है और इस तरह एडमिशन लेकर डॉक्टर बनने वाले लोग मरीज़ों के साथ क्या करते होंगे.. इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है।


- देश भर में कुल 412 medical colleges हैं, जिनमें से 224 प्राइवेट और 188 सरकारी कॉलेज हैं। 


- इन colleges में 52 हज़ार 765 MBBS की Seats हैं, जिनमें से करीब 23 हज़ार Seats सरकारी Colleges के पास हैं। 


- मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बैंगलुरू के कुछ private colleges एक-एक सीट के लिए छात्रों से एक करोड़ रुपये तक लेते हैं जबकि उत्तर प्रदेश में 25 से 35 लाख रुपये में मेडिकल कॉलेज की सीट बेची जाती है। 


- एक अनुमान के मुताबिक radiology और dermatology में MD की सीट के लिए तो 3-3 करोड़ रुपये तक लिए जाते हैं। 


- देश के private medical colleges में MBBS की seat की औसत कीमत 58 लाख रुपये है।


- एक आंकड़ा ये भी है कि MBBS की seats बेचने से देशभर के private medical colleges एक साल में 9 हज़ार करोड़ रुपये की कमाई कर लेते हैं। 


- एक प्राइवेट कॉलेज में MBBS के लिए Capitation Fees 50 लाख रुपये तक है । जबकि MBBS की Tuition Fees करीब 45 लाख रुपये है। 


- अगर आपको प्राइवेट कॉलेज से post graduation करना है, तो 2 करोड़ रुपये की Capitation Fees चुकानी होगी जबकि Tuition Fees के तौर पर करीब 30 लाख रुपये देने होंगे। 


- अगर कोई छात्र किसी प्राइवेट कॉलेज से Super-speciality का कोई कोर्स करना चाहता है तो उसे Capitation Fees के तौर पर 2.5 करोड़ रुपये और Tuition Fees के तौर पर करीब 20 लाख रुपये देने होंगे। 


- सरकारी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई के लिए किसी भी तरह की Capitation Fees नहीं ली जाती है। 


- सरकारी मेडिकल कॉलेज में अगर MBBS करना है तो फीस सिर्फ 11 हजार 500 रुपये होगी। 
सरकारी मेडिकल कॉलेज से Post graduation करने में सिर्फ 20 हज़ार रुपये लगते हैं और Super-speciality कोर्स के लिए सिर्फ 30 हज़ार रुपये का खर्च आता है। 


- विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि NEET लागू होने के बाद डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए छात्र बड़ी संख्या में विदेशी कॉलेजों में एडमिशन ले सकते हैं।


- विदेशों से मेडिकल डिग्री हासिल करने वाले छात्रों की पहली पसंद, चीन, यूक्रेन और रूस जैसे देश होते हैं। इन देशों में डॉक्टरी की पढ़ाई करना भारत के प्राइवेट कॉलेजों के मुकाबले काफी सस्ता पढ़ता है और इन कॉलेजों में छात्रों को एडमिशन भी आसानी से मिल जाता है। 


- विदेशों से मेडिकल की डिग्री हासिल करने वाले छात्रों को भारत आकर एक Screening Test देना पड़ता है। 


- Screening Test  में पास होने पर ही छात्रों को भारत के अस्पतालों में Practice की इजाजत दी जाती है। 


- विदेशी कॉलेजों में पढ़ाई के बाद भारत आकर Screening Test देने वाले छात्रों की संख्या 2005 से 2015 के बीच दोगुनी हो चुकी है। 


- हैरानी की बात ये है कि Screening Test में पास होने वाले छात्रों की संख्या 50 प्रतिशत से घटकर सिर्फ 10 प्रतिशत रह गई है। 


- जून 2014 में तो सिर्फ 4.93 प्रतिशत छात्र ही भारत में Practice के लिए जरूरी Screening Test  पास कर पाए थे। 


- अमेरिका और Canada में छात्रों को मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के लिए MCAT exam देना होता है और इस exam के score से ही आप किसी मेडिकल कॉलेज में admission पा सकते हैं।


- इंग्लैंड में मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए एक ही Entrance Exam होता है। यहां UK Clinical Aptitude Test होता है जिसे UK university Medical and Dental Schools का consortium आयोजित करता है। 


- ऑस्ट्रेलिया में UMAT के नाम से मेडिकल Entrance Exam होता है। यहां भी देश भर के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए एक ही Entrance Exam होता है।