Zee जानकारी : राहुल गांधी के नेतृत्व में 5 वर्षों में 23 चुनाव हार चुकी है कांग्रेस
गर राजनीति की तुलना क्रिकेट से की जाए और चुनावों को वर्ल्ड कप माना जाए तो आप कह सकते हैं कि कांग्रेस एक ऐसी टीम है जिसे एसोशिएट देश के तौर पर खेलने का मौका तो मिलता है लेकिन उसके जीतने की उम्मीद किसी को नहीं होती। ये ठीक वैसा ही है जैसे क्रिकेट वर्ल्ड कप में कई बार, नेपाल, कनाडा, अफगानिस्तान जैसी टीमों को मौका मिल जाता है। लेकिन इनमें से ज्यादातर टीमें पहले राउंड में ही बाहर हो जाती हैं। ठीक वैसी ही स्थिति कांग्रेस की है और इसका दोष टीम कांग्रेस के कप्तान राहुल गांधी को दिया जा रहा है।
नई दिल्ली : गर राजनीति की तुलना क्रिकेट से की जाए और चुनावों को वर्ल्ड कप माना जाए तो आप कह सकते हैं कि कांग्रेस एक ऐसी टीम है जिसे एसोशिएट देश के तौर पर खेलने का मौका तो मिलता है लेकिन उसके जीतने की उम्मीद किसी को नहीं होती। ये ठीक वैसा ही है जैसे क्रिकेट वर्ल्ड कप में कई बार, नेपाल, कनाडा, अफगानिस्तान जैसी टीमों को मौका मिल जाता है। लेकिन इनमें से ज्यादातर टीमें पहले राउंड में ही बाहर हो जाती हैं। ठीक वैसी ही स्थिति कांग्रेस की है और इसका दोष टीम कांग्रेस के कप्तान राहुल गांधी को दिया जा रहा है।
राहुल गांधी के नेतृत्व में उनकी पार्टी 5 वर्षों में 23 चुनाव हार चुकी हैं। यानी राहुल गांधी ने औसतन हर साल 5 चुनाव हारे हैं। स्थिति ये है कि अगर पंजाब को छोड़ दिया जाए तो जिन राज्यों में चुनाव के बाद कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है वहां भी वो सरकार नहीं बना पा रही है। गोवा और मणिपुर इसके सबसे बड़े उदाहरण है। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस को विरोधियों के मुकाबले ज्यादा सीटें मिली हैं। लेकिन इसके बाद भी बीजेपी के मनोहर पर्रिकर गोवा के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं, वहीं मणिपुर में भी कम सीटों के बावजूद बीजेपी ने सरकार बनाने का दावा किया है।
आपने क्रिकेट में कई बार देखा होगा कि बारिश की वजह से जब खेल रुक जाता है।तो डकवर्थ लेविस मेथड का इस्तेमाल किया जाता है और कई बार ज्यादा स्कोर करने वाली टीम भी डकवर्थ लेविस सिस्टम के तहत हार जाती है। ठीक ऐसी ही हालत कांग्रेस की है जो गोवा और मणिपुर में ज्यादा स्कोर करने के बाद भी मैच हार गई है।
राहुल गांधी को वर्ष 2013 की शुरुआत में कांग्रेस का उपाध्यक्ष बनाया गया था और तब से लेकर अब तक कांग्रेस ने ज्यादातर चुनाव उनके ही नेतृत्व में लड़े हैं। लेकिन इस दौरान कांग्रेस को करीब 23 चुनावों में हार मिली है। इनमें 22 विधानसभा चुनाव और एक लोकसभा का चुनाव शामिल है।
लेकिन अगर इसमें वर्ष 2012 में हुए 7 राज्यों के चुनावों को जोड़ लिया जाए तो राहुल गांधी 27 चुनावों में हार चुके हैं। हम ये बात अच्छी तरह से जानते हैं। कांग्रेस पार्टी के अंदर किसी नेता की इतनी हिम्मत नहीं है कि वो इन आंकड़ों को पार्टी की किसी बैठक में पेश कर सके और इसका DNA टेस्ट कर सके।
2017 में हुए 5 राज्यों के चुनाव में सिर्फ पंजाब में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत मिला है। जबकि गोवा और मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी कांग्रेस को सत्ता नहीं मिल पा रही है। गोवा में आज बीजेपी की सरकार बन गई है और बुधवार को मणिपुर में बीजेपी के एन बीरेन सिंह मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे। यानी ये राहुल गांधी के लिए सबसे बुरे दिन हैं। जब कांग्रेस को लगा कि वो गोवा में सरकार बनाने से चूक जाएगी तो कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में एक अपील कर दी जिस पर सुनवाई करते हए सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस से पूछ लिया कि आखिर सरकार बनाने के लिए उन्होंने क्या किया?
सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस के वकील से कहा कि आपके पास विधायकों की पर्याप्त संख्या थी तो आपको समर्थन करने वाले विधायकों का हलफनामा पेश करना चाहिए था। लेकिन आपकी तरफ से ऐसा नहीं किया गया. अदालत ने कहा कि सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करना विधायकों की संख्या से जुड़ा हुआ मामला है, आपने राज्यपाल के समक्ष या अपनी याचिका में इस बात का कभी जिक्र नहीं किया कि आपके पास जरूरी समर्थन है। यानी कांग्रेस, सरकार बनाने की प्रक्रिया को 2G की स्पीड से अंजाम दे रही थी।
पंजाब में भी कांग्रेस की जीत का श्रेय कैप्टन अमरिंदर सिंह को दिया जा रहा है। सवाल ये है कि कांग्रेस की दुर्गति के लिए राहुल गांधी किस हद तक जिम्मेदार हैं तो इसका जवाब हम आपको कुछ उदाहरण देकर समझाना चाहते हैं। चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने वाले राहुल गांधी कई मौकों पर अखिलेश यादव के साथ दिखाई दिए। कई रैलियां की, कई प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कीं, लेकिन जैसे ही चुनाव के नतीजे आए। राहुल गांधी दृश्य से गायब हो गए, उन्होंने सिर्फ कुछ ट्वीट किए लेकिन मीडिया के सामने नहीं आए। अखिलेश यादव को अकेले ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करके हार स्वीकार करनी पड़ी लेकिन राहुल गांधी कहां थे, किसी को नहीं पता था, उनकी पार्टी भी गोवा और मणिपुर में सरकार बनाने के लिए कुछ खास हाथ पैर नहीं मार पाई। और नतीजा ये हुआ कि जिन राज्यों में कांग्रेस के नंबर्स ज्यादा थे, वो भी उसके हाथ से निकल गए, इतना सब होता रहा लेकिन राहुल गांधी कहां थे किसी को नहीं पता था, यानी जिस वक्त उनकी पार्टी को उनकी सबसे ज्यादा ज़रूरत थी, वो किसी को नज़र नहीं आ रहे थे।
महत्वपूर्ण मौकों पर अक्सर राहुल गांधी अपनी पार्टी को ऑटो पायलट मोड पर डालकर गायब हो जाते हैं। हालांकि आज राहुल गांधी मीडिया के सामने आए। और कहा कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश औऱ उत्तराखंड में हारी है लेकिन गोवा, पंजाब और मणिपुर में जीती है। राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में हारने पर पर कहा कि- हम विपक्ष में है, हमारे अपने उतार चढ़ाव है, हमें यूपी में थोड़ा नुकसान हुआ है और हम इसे स्वीकार करते हैं। हालांकि राहुल गांधी शायद ये भूल गए कि उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी को सिर्फ 7 सीटें मिली हैं।
आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में वाहनों के रजिस्ट्रेशन कोड भी 11 से शुरू होते है। जैसे UP-11.. सहारनपुर का कोड है। UP 14 गाज़ियाबाद का और UP 15 नोएडा का। लेकिन यूपी में कांग्रेस की गाड़ी का कोड है UP 07 और इस कोड का रजिस्ट्रेशन फिलहाल यूपी में नहीं होता है। इसलिए राहुल गांधी को इस पर गौर करना चाहिए, कि वो जिस पार्टी की ड्राइविंग सीट पर बैठे हैं वो हर चुनाव में इतना कम माइलेज क्यों दे रही है।
बहुत सारे लोग ये भी कह रहे हैं कि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में बीजेपी के स्टार प्रचारक थे। क्योंकि राहुल गांधी खुद अपनी पार्टी की हार सुनिश्चित कर रहे थे। वैसे आपको बता दें कि किसी लोकतंत्र का विपक्ष विहीन हो जाना अच्छा नहीं होता है लेकिन जब कोई पार्टी और उसके बड़े नेता, लोगों के बीच अपनी विश्वसनीयता बना ही ना पाएं तो फिर जीतने वाली पार्टी को दोष नहीं दिया जा सकता। राजनीतिक पैमानों के हिसाब से राहुल गांधी अभी युवा हैं, और उनके सामने उनका पूरा करियर पड़ा है। अगर वो चाहें तो एक नई शुरूआत कर सकते हैं। क्योंकि कई बार किसी एक खास प्रोफेशन में प्रयास करते रहने के बाद भी वो रास नहीं आता है। और वक्त पर करियर बदल लेने से व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत कर सकता है। एक विकल्प ये भी हो सकता है कि जिस तरह कई परीक्षाओं में मैक्सिमम नंबर ऑफ अटेंम्ट्स होते हैं, ऐसी ही सीमा राजनीति में भी तय कर दी जाए, ताकि वक्त रहते सही समय पर करियर बदला जा सके।
राहुल गांधी की जगह कोई और होता तो उसका राजनीतिक करियर अब तक खत्म हो चुका होता लेकिन राहुल गांधी के पास गांधी परिवार का वारिस होने की जन्मजात शक्ति है। इसलिए उनका चुनावी परफॉर्मेंस कभी चेक नहीं किया जाता। इससे ये भी पता चलता है कि भारतीय राजनीति में किसी नेता की लंबी पारी के लिए परिवारवाद कितना ज़रूरी है। हालांकि ये तस्वीर अब बदल रही है। जनता ने इवीएम से जवाब देना शुरू कर दिया है।
कांग्रेस का दावा है कि गोवा और मणिपुर में सरकार बनाने के लिए गवर्नर को उन्हें न्यौता देना चाहिए था। इसे लेकर कांग्रेस आज सुप्रीम कोर्ट भी पहुंची थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से भी कांग्रेस को निराशा ही हाथ लगी। यहां आपके लिए 1983 में आए सरकारिया कमीशन की रिपोर्ट देखना भी ज़रूरी है। इस कमीशन ने राज्य और केन्द्र के बीच कामकाज के संबंधों पर अपनी रिपोर्ट दी थी। इस कमीशन ने ये भी बताया था कि चुनावों में किसी पार्टी को बहुमत न मिलने की स्थिति में गवर्नर को क्या करना चाहिए?
सरकारिया कमीशन की रिपोर्ट में साफ तौर पर लिखा गया है कि राज्यपाल को मुख्यमंत्री चुनने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? रिपोर्ट में लिखा है कि विधानसभा में जिस पार्टी या पार्टियों के समूह को बहुमत हो, उसे ही सरकार बनाने के लिए बुलाना चाहिए। इसके अलावा राज्यपाल उस पार्टी को भी सरकार बनाने के लिए बुला सकते हैं, जो बहुमत का दावा कर रही हो और जिसके पास अन्यों का समर्थन हो, जिसमें निर्दलीय विधायक भी आते हैं। इसके अलावा राज्यपाल पार्टियों के उस समूह को भी सरकार बनाने के लिए बुला सकते हैं, जिनका गठबंधन चुनावों के बाद हुआ हो। मणिपुर और गोवा में भी यही हालात हैं, यहां भी बीजेपी को पूर्ण बहुमत में तो नहीं है, लेकिन बीजेपी को कई निर्दलीय और कुछ क्षेत्रीय पार्टियां सपोर्ट कर रही हैं। और इसी के आधार पर भारतीय जनता पार्टी ने इन दोनों राज्यों में सरकार बनाने का दावा पेश किया है।