नई दिल्‍ली: कर्नाटक की राजनीति में एक अहम मोड़ आ गया है. बी एस येदियुरप्पा ने नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली. वहीं, कांग्रेस-JDS गठबंधन इस राजनीतिक लड़ाई को कानूनी रूप दे चुकी है. भाजपा राज्य में सबसे बड़ा दल होने के दावा पेश कर सत्ता की सीढ़ी चढ़ गई. बहुमत का दावा करने वाली कांग्रेस और किंगमेकर जनता दल सेक्युलर (JDS) दौड़ में पिछड़ती चली गई. भाजपा की इस जीत में सबसे बड़ा चेहरा बनकर उभरे बी एस येदियुरप्पा. कर्नाटक में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा होने के अलावा बी एस येदियुरप्पा पहले भी मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. 2008 में दक्षिण भारत में पहली बार भाजपा सरकार बनी थी. तब बी एस येदियुरप्पा ही मुख्यमंत्री बनकर आए थे. येदियुरप्पा की कहानी बेहद दिलचस्प है. इसमें कई मोड हैं. आइये जानते हैं कर्नाटक के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री की जिंदगी के कुछ अनछुए पहलु...


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राजनीति में आने से पहले क्‍लर्क थे येदियुरप्पा
27 फरवरी 1943 को लिंगायत परिवार में जन्मे येदियुरप्पा मांड्या जिले के बुकानाकेरे रहने वाले हैं. 1965 में येदियुरप्‍पा ने नौकरी शुरू की. सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट में उन्होंने बतौर फर्स्‍ट डिवीजन क्‍लर्क से शुरुआत की. हालांकि, कुछ समय बाद यहां से नौकरी छोड़ दी. इसके बाद शिकारीपुरा पर पहुंच कर राइस मिल में नौकरी की. यहां भी येदियुरप्पा ने बतौर क्‍लर्क के तौर पर ही नौकरी शुरू की.


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मालिक की बेटी से ही की शादी
येदियुरप्‍पा ने पढ़ाई पूरी करने के बाद काम की तलाश शुरू की. यहां उनकी मदद एक दोस्त ने की. फर्स्ट डिवीजन क्लर्क की नौकरी दिलाने में इस दोस्त का बड़ा हाथ रहा. लेकिन, नौकरी छोड़ने के बाद फिर इस दोस्त ने येदियुरप्‍पा की मुलाकात वीरभद्र शास्त्री से कराई. शास्त्री वही शख्स थे, जिनकी राइस मिल में येदियुरप्‍पा ने दूसरी नौकरी शुरु की. शास्त्री ने येदियुरप्‍पा को नौकरी पर रख लिया और काबिलियत देखते हुए उन्हें आगे बढ़ने का मौका दिया. वीरभद्र शास्त्री ने ही येदियुरप्‍पा की लग्न और मेहनत को देखते हुए अपनी बेटी मित्रा देवी से उनकी शादी करा दी. हालांकि, 2004 में मित्रा देवी की मृत्यु हो गई.


महज 300 रुपए मिलता था वेतन
येदियुरप्‍पा का शुरुआती जीवन मुश्किल भरा रहा. 4 साल की उम्र में उनकी मां का देहांत हो गया. इसके बाद पिता की भी जल्दी ही मृत्यु हो गई. येदियुरप्‍पा ने इसके बाद अपना समय चाचा के यहां गुजारा. ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान वह शेषाद्रिपुरम कॉलेज में इवनिंग क्‍लास करते थे और दिन में एक स्‍थानीय प्राइवेट कंपनी में 300 रुपए प्रति महीने की जॉब करते थे.


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शादी के बाद आया टर्निंग प्वाइंट
येदियुरप्‍पा की लाइफ का टर्निंग प्वाइंट उनकी शादी थी. शादी से पहले से ही येदियुरप्‍पा संघ से जुड़े थे. लेकिन, शादी के 2 बाद उन्हें राजनीति में आने का मौका मिला. टाइम्‍स ऑफ इंडिया के मुताबिक, जब येदियुरप्‍पा ने राजनीति में आने का फैसला किया तो मित्रा देवी के पिता वीरभद्र शास्त्री ने उन्हें सबसे ज्‍यादा प्रोत्‍साहित किया.


दुकान भी चलाई
शादी हो चुकी थी और राजनीति में भी कदम रखा जा चुका था. लेकिन, आर्थिक स्थिति को मजबूत बनाने के लिए जरूरी था कि कुछ और भी किया जाए. इसलिए येदियुरप्‍पा ने शिवमोगा में एक हार्डवेयर की दुकान खोली. 


2007 में बदल ली थी नाम की स्पेलिंग
येदियुरप्‍पा को धार्मिक माना जाता है. पूजा-पाठ में उनकी गहरी आस्‍था है. इस बार भी कर्नाटक चुनाव की वोटिंग से पहले उन्होंने पूजा की और उसके बाद ही वोट डालने निकले. अपनी इसी धार्मिक प्रवृति के चलते उन्होंने 2007 में एक ज्‍योतिषी के कहने पर अपने नाम की स्पेलिंग बदली थी. पहले वह अपने नाम को अंग्रेजी में Yediyurappa लिखते थे और बाद में बदलकर Yeddyurappa किया. ज्‍योतिषी के कहने पर उन्‍होंने अपने नाम में एक अतिरिक्‍त D जोड़ा और I को हटा दिया.


सफारी सूट है पहचान
येदियुरप्‍पा की पहचान उनके सफारी सूट से होती है. माना जाता है कि येदियुरप्पा अपने ड्रेस कोड को बहुत संवेदनशील हैं. 1983 में पहली बार विधायक बनने के बाद उन्‍होंने हल्के रंग का सफारी सूट पहनना शुरू किया था. तब से आज तक सार्वजनिक जीवन में उन्‍होंने कोई और कपड़ा नहीं पहना.


फिर चुने गए सीएम पद के उम्मीदवार
2008 में पहली बार येदियुरप्पा बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री चुनकर आए. लेकिन, 2011 में भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हें कुर्सी गंवानी पड़ी. लिंगायत परिवार में जन्में येदियुरप्पा के लिए कर्नाटक में यह बड़ा फैक्टर है. यही वजह है कि येदियुरप्पा के बिना बीजेपी के लिए कर्नाटक में अपनी पैंठ बनाना मुश्किल था. यही वजह है कि भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे येदियुरप्पा को उन्होंने फिर से मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया.