मोबाइल फोन का बढ़ता इस्तेमाल बच्चों के विकास पर गहरा असर डाल रहा है. हाल ही में सामने आए आंकड़ों से पता चलता है कि कई बच्चे मोबाइल की लत के कारण बोलना सीखने में काफी देरी कर रहे हैं.


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आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) ग्रेटर नोएडा में हर महीने दस से अधिक 5-7 साल के बच्चे स्पीच थेरेपी के लिए पहुंच रहे हैं. इनमें से 25 प्रतिशत बच्चों में मोबाइल की लत के कारण ही बोलने में समस्या देखी गई है. ऐसे में यदि आप भी बच्चे को मोबाइल दिखाते हैं तो यही वक्त हैं सावधान हो जाएं. 


क्या है स्पीच थेरेपी

स्पीच थेरेपी बच्चों और वयस्कों को उनके संचार और भाषा कौशल में सुधार करने में मदद करती है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी बोलने या प्रभावी ढंग से संवाद करने की क्षमता को क्या प्रभावित कर रहा है, स्पीच थेरेपी जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है.


मोबाइल का बच्चों के विकास पर प्रभाव

डॉ. अंकित आनंद, जो जिम्स में ऑडियोलॉजिस्ट हैं, का कहना है कि मोबाइल के अत्यधिक इस्तेमाल से बच्चों का ध्यान भटक रहा है. वे मोबाइल में इतने खो जाते हैं कि उन्हें भूख या प्यास लगने पर भी बताना भूल जाते हैं. इससे बच्चों को शब्दों का सही इस्तेमाल करना नहीं आता है.

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माता-पिता की भूमिका महत्वपूर्ण

डॉ. अंकित के अनुसार, माता-पिता को बच्चों को मोबाइल देने से बचना चाहिए. छोटी उम्र में बच्चों को मोबाइल देने से उनके दिमाग का विकास प्रभावित होता है. बच्चों को खेलने, पढ़ने और अन्य गतिविधियों में शामिल करना चाहिए ताकि उनका सर्वांगीण विकास हो सके.


क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

बच्चों के मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मोबाइल की लत बच्चों के मानसिक विकास को प्रभावित करती है. इससे बच्चों में अकेलापन, चिड़चिड़ापन और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई जैसी समस्याएं हो सकती हैं.