नई दिल्ली: बच्चे का आगमन किसी परिवार में खुशियों की सौगात लेकर आता है लेकिन साथ ही लाता है गहन जिम्मेदारियां भी. खासतौर से बढ़ते बच्चे के लिए तो बहुत जरूरी होता है कि परिवार और पैरेंट्स के साथ अच्छी तालमेल जहां रिश्तों में खटास भी न आए और बच्चों की पर्सनैलिटी ग्रोथ भी अच्छे से हो. बच्चे की परवरिश का मतलब अपने बच्चों को खाने-पीने, पहनने, इस्तेमाल करने और रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति करना भर नहीं है. आइए आज ऐसे ही कुछ टिप्स पर गौर करें जो बच्चों की परवरिश में काफी अच्छा योगदान दे सकते हैं.


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बच्चों को शुरू से ही अनुशासन का पालन करना सिखाएं. यह आदत जीवन भर उनकी मदद करेगा. क्योंकि यह उसकी पर्सनैलिटी का हिस्सा हो जाएगी. समय पर खाने, नहाने और सुबह उठने का डिसिप्लिन बनाएं. उसे नियम में रहने की आदत डलवानी चाहिए. कुछ पेरेंट्स बच्चों को बात-बात पर निर्देश देने लगते हैं और उनको बार-बार झिड़कते हैं. कई बार तो मार भी देते हैं. इससे बेहतर होगा कि समझाकर उन्हें नियम में रहना सिखाएं.


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बच्चों पर अपनी मर्जी थोपने के जमाने अब जा चुके हैं. बच्चा जो बनना चाहे, उसे वही बनने में मदद करें. अपनी अपेक्षाएं अपने बच्चे पर न ही थोपें. इससे बच्चे तनावग्रस्त होने लगते हैं. यह स्वाभविक विकास में बाधक बनता है. अपनी मर्जी नहीं थोपें बल्कि सही बात उसे समझाएं. आपका और उनका नजरिया अलग हो सकता है, अपनी संतान के नजरिए का सम्मान करें. जरूरी नहीं कि आपके सपने ही अच्छे हों, हो सकता है जो उसने अपने भविष्य के लिए सोचा है, नए बदलते जमाने के हिसाब से वह ज्यादा तरक्की की ओर ले जाए.


बच्चे धर्म और प्रथाओं से जुड़े सवाल-जवाब करते हैं. उन्हें डांटे नहीं और न ही डांट कर चुप करा दें. अध्यात्म‍ और धर्म के प्रति उसकी सोच-समझ खुद विकसित होगी, उससे बस इसमें मदद करें, फैसला उसे ही लेने दें.


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कई बार पैरेंट्स को लगने लगता है कि बच्चा दूसरों (स्कूल के साथी, टीचर्स, पड़ोसी) के संपर्क में आने के बाद उनसे दूर जा रहा है. लेकिन ऐसा होता नहीं है. बच्चा कई तरह के लोगों से मिलता-जुलता है. नए गैजेट्स जैसे कि मोबाइल फोन, लैपटॉप, टीवी का इस्तेमाल करता है. लेकिन ऐसा नहीं है कि वह आपको भुला रहा है या आपके प्रति लापरवाह हो रहा है, अगर आपका नजरिया खुशनुमा और बर्ताव बेहतर होता है, तो वह भावानात्मक स्तर पर आपके करीब जरूर रहेगा.


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