Scientists Genetically Modify Cow To Solve Insulin Shortage: वैज्ञानिकों ने डायबिटीज पेशेंट के लिए इंसुलिन की कमी को दूर करने के कोशिश में एक बड़ी कामयाबी हासिल की है. ब्राजील में एक भूरे रंग की बोवाइन गाय (Brown Bovine Cow) को जेनेटिकली मोडिफाई करके, रिसर्चर्स ने गाय के दूध से सीधे ह्यूनम इंसुलिन और उसके प्रिकर्सर, प्रोइंसुलिन (Proinsulin) को निकालने में सफलता हासिल की, जैसा कि बायोटेक्नोलॉजी जर्नल (Biotechnology Journal) में छपी एक ग्राउंडब्रेकिंग स्टडी में बताया गया है.


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कैसे तैयार हुआ इंसुलिन?


इस प्रोसेस में विशेष भ्रूण बनाने के लिए सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर शामिल था, जिन्हें बाद में गायों में इम्पलांट किया गया था. हालांकि सिर्फ एक ही ट्रांसजेनिक गाय को सफलतापूर्वक प्रोड्यूस किया जा सका, लेकिन नतीजे आशाजनक थे. दूध के विश्लेषण से प्रोइंसुलिन और इंसुलिन दोनों की मौजूदगी का पता चला, जो इंसुलिन प्रोडक्शन के लिए इस प्रोसीजर की प्रैक्टिकैलिटी को बताता है.



यहां तक ​​कि स्टडी में कुछ लिमिटेशंस सामने आई है, ह्यूस्टन (Houston) में मेमोरियल हरमन (Memorial Hermann) के एक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. स्प्लेंसर (Dr. Splenser) ने कथित तौर पर ट्रांसजेनिक गायों में लैक्टेशन को प्रेरित करने के लिए हार्मोनल स्टिमुलेशन की जरूरत के बारे में चिंताओं को उजागर किया.


डॉ. स्प्लेंसर ने कहा, “रिसर्चर्स को गायों को दूध देने के लिए हार्मोनल रूप से प्रेरित करना पड़ा, जिसके कारण कम मात्रा में इंसुलिन युक्त दूध का उत्पादन हुआ. हालांकि लेखकों ने वेस्टर्न ब्लॉटिंग और मास स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करके गाय के दूध में प्रोइंसुलिन और इंसुलिन के संकेतों की पहचान की, उन्होंने ये साबित नहीं किया कि गायों में उत्पादित इंसुलिन वास्तव में इन-विट्रो या इन-विवो में शारीरिक रूप से सक्रिय था.” 



डायबिटीज के मरीजों को उम्मीद


हालांकि ये सफलता इंसुलिन की कमी को दूर करने की उम्मीद जगाती है, लेकिन जेनेटिकली मोडिफाइड जानवरों के उपयोग को लेकर एथिकल चिंताओं का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए, जैसा कि रिपोर्ट्स में कहा गया है. इलिनोइस यूनिवर्सिटी अर्बाना-कैंपेन (University of Illinois Urbana-Champaign) में कार्ल आर. वोसे इंस्टीट्यूट फॉर जीनोमिक बायोलॉजी (Carl R. Woese Institute for Genomic Biology) में जीनोमिक बायोलॉजी के प्रोफेसर, डॉ. व्हीलर (Dr. Wheeler) ने इस प्रक्रिया का आकलन करने के लिए और ज्यादा रिसर्च की जरूरत पर जोर दिया.


डॉ. व्हीलर ने कहा, "शायद एक दिन हम मानव रोगियों के लिए क्रिटिकल मेडिकल प्रोटीन के सोर्स के रूप में दूध का उपयोग करने में सक्षम हो सकते हैं और शायद इंजेक्शन के बिना डायबिटीज पेशेंट को इंसुलिन देने का एक तरीका भी विकसित कर सकते हैं. हालांकि, अभी इसमें कई साल बाकी हैं. यह एक कॉन्सेप्ट स्टडी का प्रूफ है जिसे प्रकाशित किया गया था. हमें अधिक जानवरों का उत्पादन करने और उनके द्वारा उत्पादित इंसुलिन की मात्रा और डायबिटीज के इलाज के लिए उस इंसुलिन की प्रभावशीलता का निर्धारण करने की जरूरत है."

(इनपुट-एजेंसीज)