सूरतः गुजरात राज्य का सूरत शहर काफी मशहूर है. सूरत मुख्यतः कपड़ा उद्योग और डायमंड कटिंग के लिए काफी प्रसिद्ध है. इसिलए इस शहर को डायमंड और सिल्क सिटी कहा जाता है. सूरत भारत का आठवां सबसे बड़ा शहर और नौवां सबसे बड़ा शहरी समूह है.


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राजनीतिक दृष्टि से भी सूरत लोकसभा सीट काफी महत्वपूर्ण है. साल 1984 के लोकसभा चुनाव तक सूरत कांग्रेस का गढ़ रहा था. लेकिन उसके बाद से अब तक बीजेपी का गढ़ बना गया है. 1984 के बाद से सूरत लोकसभा सीट कांग्रेस ने कभी नहीं जीती है.


सूरत लोकसभा सीट पर 1952 में पहली बार चुनाव हुआ था. जिसमें कांग्रेस के कन्हैया लाल देसाई ने जीत दर्ज की थी. वहीं, 1957 में कांग्रेस की टिकट से पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने जीत हासिल की. वहीं, 1971 तक मोरारजी देसाई ने लगातार कांग्रेस को जीत दिलाई. वहीं, 1977 में मोरारजी देसाई ने जनता दल के टिकट से चुनाव मैदान में उतरी और उन्होंने जीत हासिल की.


हालांकि 1980 कांग्रेस ने सीडी पटेल को सूरत सीट से मैदान में उतारा और उन्होंने कांग्रेस को जीत दिलाई. वहीं, 1984 में भी सीडी पटेल ने कांग्रेस की जीत को बरकरार रखा. लेकिन इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने सूरत में जीत का चेहरा नहीं देखा.


1989 में सूरत लोकसभा सीट से बीजेपी ने काशीराम राणा को मैदान में भेजा और उन्होंने बड़ी जीत हासिल की. इसके बाद से 2004 के लोकसभा चुनाव तक काशीराम राणा का सूरत लोकसभा सीट पर एक छत्र राज रहा. वह लगातार 6 बार इस सीट से सांसद रहे. वहीं, काशीराम राणा के बाद बीजेपी ने दर्शना जरदोष को टिकट दिया. 2009 में दर्शना जरदोष ने बीजेपी के विजय रथ को बरकरार रखा. वहीं, 2014 में भी दर्शना जरदोष ने भारी मतों से सूरत सीट पर जीत दर्ज की.


करीब तीन दशक से बीजेपी सूरत लोकसभा सीट पर राज कर रही है. ऐसे में कांग्रेस के लिए इस सीट को जीतना आसान नहीं है. कांग्रेस को सूरत में बीजेपी के किले को भेदने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी.