किसी को जब प्यार हो जाता है तो उसे पूरी दुनिया ही खूबसूरत लगने लगती है. वो जिससे प्यार करता है उसी के ख्यालों में खोया रहता है. लेकिन क्या आपको पता है कि एक समय ऐसा भी था जब प्यार को बीमारी के रूप में देखा जाता था. जब लोगों को प्यार होता था तो इसका इलाज भी कराया जाता था. ये बात है 11वीं शताब्दी की जब कई लेखक और डॉक्टर प्यार को बीमारी के रूप में देखते थे, इतना ही नहीं वो इसका इलाज भी बताते थे. आइए जानते हैं कि उस समय में प्यार को बीमारी के रूप में देखा जाता था साथ ही ये भी जानेंगे कि इसका इलाज कैसे किया जाता था.


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प्यार एक बीमारी


11वीं शताब्दी के एक चिकित्सक का मानना था कि प्यार एक बीमारी है और ये शरीर में काले पदार्थ की वजह से होती है, ऐसा दावा करने वाले चिकित्सक का नाम था कॉन्स्टेंटाइन अफ्रीकन. इसी के साथ उनका ये भी कहना था कि ये बीमारी सीधा दिमाग पर असर डालती है और दिमाग में अजीब विचार पैदा करती है और चिंता भी पैदा करती है. 


 


कई लोगों ने बताया बीमारी


इसी के साथ एक लेखक भी थे जिनका नाम बोइसियर था, इन्होंने अपनी नोवेल द सॉवेज में प्यार को उस बीमारी के रूप में देखा जो लोगों में उदासी पैदा करती है. उस जमाने के चिकित्सक ये भी कहते थे कि प्यार इतनी घातक बीमारी है कि इससे लोगों की जान भी जा सकती है.


 


ऐसे करते थे इलाज


प्यार को बीमारी के रूप में कई लोगों ने देखा जिसका इलाज भी बताया गया था. इस बीमारी को ठीक करने के लिए दो तरीके थे. पहला तरीका था सात्विक आहार देना, यानी मांस, अंडा या शराब जैसी चीजों से दूर रखा जाता था. उन सभी चीजों से दूर रखा जाता था जिनसे शरीर में गर्मी बढ़े. ऐसा इसलिए किया जाता था क्योंकि उस समय के चिकित्सकों का मानना था कि इन चीजों को खाने से मन में यौन इच्छाें जगती हैं. दूसरा तरीका है अनुशासन से ठीक से जिंदगी जीना.