India-US Relations: भारत-चीन के तनावपूर्ण रिश्तों के बीच अमेरिकी संसद में एक प्रस्ताव ऐसा पेश किया गया है जो ड्रैगन की बौखलाहट बढ़ा सकता है. दरअसल वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर ‘यथास्थिति को बदलने की’ चीन की सैन्य आक्रामकता का विरोध करते हुए अरुणाचल प्रदेश को भारत के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देने के लिए अमेरिकी सीनेट में बृहस्पतिवार को एक द्विदलीय प्रस्ताव पेश किया गया.


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इस प्रस्ताव में एलएसी पर यथास्थिति को बदलने के लिए चीन द्वारा सैन्य बल के उपयोग, विवादित क्षेत्रों में गांवों के निर्माण, भारतीय राज्य अरुणाचल के शहरों एवं क्षेत्रों के लिए मंदारिन भाषा के नामों के साथ मानचित्रों का प्रकाशन करने तथा भूटान में चीन के क्षेत्रों के विस्तार समेत चीनी उकसावे की निंदा की गई है.


प्रस्ताव में चीन के कारण सुरक्षा को पैदा हुए खतरे एवं उसकी आक्रामकता के खिलाफ अपनी रक्षा के लिए कदम उठाने पर भारत की सराहना की गई है.


चीन के अरुणाचल पर दावे को लेकर आलोचना  
प्रस्ताव में कहा गया है कि चीन अरुणाचल प्रदेश के अपना क्षेत्र होने का दावा करता है और इसे वह ‘दक्षिण तिब्बत’ कहता है और उसने अपनी आक्रामक और विस्तारवादी नीतियों के तहत ये दावे किए हैं.


‘अरुणाचल भारत का अभिन्न अंग’
डेमोक्रेट पार्टी के नेता जेफ मर्कले और रिपब्लिकन नेता बिल हैगर्टी द्वारा पेश किए गए द्विदलीय प्रस्ताव में कहा गया है, ‘अमेरिका अरुणाचल प्रदेश राज्य को एक विवादित क्षेत्र के रूप में नहीं, बल्कि भारत के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देता है.’’


इंडिया कॉकस के सह-अध्यक्ष एवं सीनेटर जॉन कॉर्निन ने इस प्रस्ताव को सह-प्रायोजित किया है.


सीनेट का प्रस्ताव अरुणाचल प्रदेश पर चीनी दावों का विरोध करते हुए इस बात की पुष्टि करता है कि अमेरिका मैकमोहन रेखा को चीन और भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश के बीच अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मान्यता देता है.


मैकमोहन रेखा 1914 में भारत की तत्कालीन ब्रिटिश सरकार और तिब्बत के बीच शिमला समझौते के तहत अस्तित्व में आई थी. इस सीमारेखा का नाम भारत में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार के विदेश सचिव सर हैनरी मैकमोहन के नाम पर रखा गया था, जिनकी इस समझौते में महत्त्वपूर्ण भूमिका थी.


(इनपुट - भाषा)   


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