नई दिल्‍ली: हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म में परिक्रमा का खासा महत्‍व है. इनमें भगवान की मूर्ति से लेकर मंदिर, नदी और पहाड़ की भी परिक्रमा की जाती है. शास्त्रों के अनुसार परिक्रमा करने से कई जन्मों का पाप नष्ट हो जाता है. लिहाजा देवी-देवताओं की पूजा करने के बाद मंदिर या गर्भ गृह की परिक्रमा की जाती है, लेकिन शिवलिंग (Shivling) के मामले में स्थिति अलग है. 


चंद्राकार परिक्रमा 


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शिवलिंग की पूजा और परिक्रमा (Parikrama) के नियम अलग हैं. इसकी केवल आधी परिक्रमा ही की जाती है. शास्‍त्रों के अनुसार शिवलिंग की आधी परिक्रमा करना ही उचित होता है, इसे चंद्राकार परिक्रमा कहा जाता है. 


जलाधारी को लांघना भी वर्जित 


परिक्रमा के अलावा जलाधारी (Jaladhari) को लेकर भी शास्‍त्रों में नियम दिए गए हैं. इसके अनुसार कभी भी जलाधारी को लांघना नहीं चाहिए. शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल, दूध आदि जिस जगह से निकलता है, उसे जलाधारी कहते हैं. इसे न लांघने के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों वजहें बताईं गईं हैं. 


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ये हैं वजह 


धर्म के मुताबिक बात करें तो शिवलिंग को शिव और शक्ति दोनों की सम्मिलित ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. शिवलिंग पर जल चढ़ाने से जल पवित्र हो जाता है और उसमें शिव और शक्ति की उर्जा के कुछ अंश समाहित हो जाते हैं. ऐसे में जब कोई इसे लांघता है तो उसकी टांगों के बीच से शिवलिंग की ऊर्जा उसके अंदर प्रवेश कर जाती है. इस कारण उसमें वीर्य या रज संबंधित शारीरिक परेशानियां पैदा हो जाती हैं.


वहीं वैज्ञानिक पहलू से बात करें तो भारत का रेडियो एक्टिविटी मैप देखने से पता चलता है कि शिवलिंगों के आसपास के क्षेत्रों में रेडिएशन पाया जाता है. इसके साथ ही शिवलिंग के आकार और एटॉमिक रिएक्टर सेंटर के आकार में काफी समानता है. ऐसे में शिवलिंग पर चढ़े जल में इतनी ज्यादा ऊर्जा समाहित हो जाती है कि इसे लांघने से व्यक्ति को बहुत नुकसान हो सकता है.



(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)