नई दिल्लीः चैत्र मास की द्वितिया तिथि को मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है. तप की देवी ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्ष माला और बायें हाथ में कमण्डल होता है. कहते हैं देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं. ब्रह्मचारिणी का अर्थ, तप का आचरण करने वाली होता है. शास्त्रों में देवी ब्रह्मचारिणी को हिमालय की पुत्री बताया गया है और हजारों वर्षों तक तपस्या करने पर ही इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. इनको ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी माना जाता है. इसलिए माता ब्रह्मचारिणी का स्वरुप एक तपस्विनी का है, जिन्हें सभी विद्याओं का ज्ञाता माना जाता है. मान्यता है कि माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से निर्बुद्धियों को बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है और जीवन में सफलता मिलती है.


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ब्रह्मचारिणी देवी की पूजा विधि-
देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए सबसे पहले घर की शुद्धि करें और फिर खुद भी स्नान करें. इसके बाद जिस स्थान पर देवी मां विराजमान हैं उस जगह की शुद्धिकरण करें. फिर देवी की फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें दूध, दही, शक्कर, घी और शहद से स्नान कराएं. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में फूल लेकर प्रार्थना करें. घी और कपूर मिलाकर देवी की आरती करें. देवी को प्रसाद अर्पित करें. प्रसाद के बाद आचमन करें और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें. अंत में क्षमा प्रार्थना करें.



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इस मंत्र का जाप करें
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। 
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥


या देवी सर्वभू‍तेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


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शास्त्रों में कहा गया है कि जो कोई भी माता ब्रह्मचारिणी की पूजा करता है उसे सिद्धि, एकाग्रता, सदाचार, विजय और ज्ञान की शक्ति प्राप्त होती है. शास्त्रों के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी को माता पार्वती का अवतार माना जाता है. ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार चैत्र नवरात्रि 8 दिनों की होगी, इस दौरान मां के नौ रूपों की पूजा होगी. जिनमें दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होगी. इसके बाद तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन देवी कुष्मांडा, पांचवे दिन स्कंदमाता, छठे दिन मां कत्यानी, सातवें दिन मां कालरात्रि, आठवें दिन मां महागौरी और अंत में मां सिद्धिरात्रि की पूजा होगी.