Maa Bhagwati: शक्ति की उपासना हर कालखंड में होती रही है. महाभारत के समय जब विशाल कौरव सेना में अपने ही बंधु-बांधवों को देखकर अर्जुन युद्ध करने से विचलित हुए तो उनके रथ चलाने के लिए सारथी के रूप में चल रहे भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश देने के साथ ही उनसे माता दुर्गा की उपासना करने के लिए कहा. उन्होंने अर्जुन से कहा, हे वीर श्रेष्ठ अर्जुन! तुम शत्रुओं को पराजित करने के लिए रणक्षेत्र की ओर मुख कर पवित्र भाव से माता दुर्गा का स्मरण करो, उनका आशीर्वाद मिलने पर युद्ध में तुम्हारी निश्चित ही जीत होगी.  


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इतना सुनते ही अर्जुन रथ से उतर पड़े और पवित्र भाव से दोनों हाथ जोड़कर मां दुर्गा का ध्यान करते हुए कहने लगे, हे देवी! तुम कालशक्ति, भद्रकाली तथा महाकाली हो, क्रोध में चंडिका रूप रखने वाली देवी तुम ही परेशानियों में फंसे लोगों को संकट से बाहर निकालने वाली हो. देवराज इंद्र को पराजित कर स्वर्ग पर कब्जा करने वाले महिषासुर और शुंभ निशुंभ आदि का वध कर देवताओं को सुरक्षित करने वाली देवी जगदम्बा भी तुम ही हो. हे मां, मैं भी अन्याय और अत्याचार के खिलाफ धर्मयुद्ध करना चाहता हूं और इस युद्ध में बिना आपके आशीर्वाद के विजय नहीं पायी जा सकती है. आपने हमेशा ही पीड़ितों की रक्षा की है, इसलिए इस युद्ध में भी आप मेरा साथ दें.


मनुष्यों पर सदैव ही अपनी कृपा बरसाने वाली मां भगवती दुर्गा अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न हुईं और वहीं पर श्री कृष्ण के सामने ही आकाश में स्थित होकर बोलीं. हे पांडुनंदन तुम्हारे साथ तो स्वयं नारायण है, इसलिए तुम कुछ समय में ही युद्ध में विजय प्राप्त कर लोगे. शत्रु तो दूर इंद्र के लिए भी तुम अजेय हो और मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ है. इतना कहकर माता दुर्गा वहां से विलुप्त हो गईं. 


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