Swarabhanu Rahu ketu Connection: राहु-केतु का नाम नाम सुनते ही अक्सर लोग घबरा जाते हैं. जब इनका अशुभ प्रभाव किसी जातक के कुंडली पर पड़ता है तो उसे काफी सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, राहु और केतु ग्रह डेढ़ साल में राशि परिवर्तन करते हैं. ये दोनों ग्रह हमेशा वक्री चाल चलते हैं. भारत में इन दोनों को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. इन दोनों का संबंध शक्तिशाली दानव स्वरभानु से माना जाता है. ऐसे में आइए जातने हैं कि क्या है इन तीनों का आपसी संबंध.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

समुद्र मंथन


पौराणिक कथा के अनुसार, जब देवता और असुर समुद्र मंथन कर रहे थे तो उस समय अमृत भी निकला था. इसको पाने को लेकर देव और दानवों के बीच लड़ाई होने लगी. हालांकि, शक्तिशाली असुरों ने अमृत को छीन लिया था और वह उसे पीकर अमर हो जाना चाहते थे. तभी भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर उस अमृत कलश हो प्राप्त कर लिया था.


अमृत का कलश


इसके बाद भगवान विष्णु के मोहिनी रूप कलश से दोनों को अमृत पिलाने लगे. वह जानते थे कि असुरों ने अगर अमृत पी लिया तो संसार में हाहाकर मच जाएगा. ऐसे में वह देवताओं को अमृत और असुरों को मदिरा पिलाने लगे.


स्वरभानु असुर


हलांकि, स्वरभानु नाम के असुर को यह समझ में आ गया और वह देवता का रूप धारण कर देवताओं की पंक्ति में बैठ गया. जब वह अमृत पीने लगा तो चंद्र देव और सूर्य देव कुछ संदेह हुआ और उन्होंने यह बात भगवान विष्णु को जाकर बताई.


सूर्य और चंद्र देव से बेर


यह सुनकर भगवान विष्णु ने स्वरभानु का सिर तन से अलग कर दिया. हालांकि, अमृत के प्रभाव से वह मरा नहीं और उसका सिर और धड़ जीवित रहा. इसके बाद ही स्वरभानु का सिर राहु तो धड़ केतु कहलाया. हालांकि, इस घटना के बाद से वह सूर्य और चंद्र देव से बेर रखने लगा, इसलिए वह उनको निगल लेता है. जब यह घटना घटती तो उसे सूर्य और चंद्र ग्रहण के नाम से जाना जाता है.


अपनी निःशुल्क कुंडली पाने के लिए यहाँ तुरंत क्लिक करें


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)