Maharishi Bhrigu Lord Vishnu Katha: महर्षि भृगु भी ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक हैं, वह प्रजापति भी हैं. दक्ष की कन्या को इन्होंने पत्नी के रूप में स्वीकार किया. धाता और विधाता नाम के दो पुत्र तथा श्री नाम की एक कन्या हुई. इन्हीं श्री का विवाह नारायण भगवान से हुआ था. महर्षि च्यवन भी इनके पुत्रों में हैं. इनके अलावा भी इनके कई पुत्र हुए. एक बार सरस्वती नदी के तट पर ऋषियों की एक बड़ी सभा में इस बात पर विवाद छिड़ गया कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से सर्वश्रेष्ठ कौन है. समाधान न निकल पाने पर इसकी जिम्मेदारी महर्षि भृगु को दी गई. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

सर्वश्रेष्ठ का पता लगाने के लिए सबसे पहले वह ब्रह्मा जी की सभा में गए, किंतु अपने पिता का कोई अभिवादन नहीं किया. पुत्र होने के नाते उन्होंने भृगु को क्षमा करने के साथ ही अपने क्रोध को दबा लिया. इसके बाद वह कैलाश पर्वत में अपने बड़े भाई रुद्रदेव के पास पहुंचे तो वह अपने छोटे भाई को भृगु को देख प्यार करने को आगे बढ़े, लेकिन भृगु ने यह कहकर उनसे मिलने से इनकार कर दिया कि तुम गलत रास्ते पर चलने वाले हो. इस पर उन्हें बहुत क्रोध आया और वह त्रिशूल लेकर मारने दौड़े तभी पार्वती ने उन्हें रोककर क्रोध शांत कराया. 


इसके बाद भृगु बैकुंठ धाम पहुंचे, जहां पर विष्णु जी सो रहे थे और लक्ष्मी जी पंखा झलकर उनकी सेवा कर रही थीं. वह बेधड़क उसी कक्ष में पहुंचे और सोते हुए विष्णु जी के सीने पर लात मारी. लात खाते ही विष्णु जी तुरंत उठ खड़े हुए और भृगु ऋषि के चरणों में सिर रखकर बोले, भगवान विराजिए. सूचना मिल जाती तो मैं द्वार पर ही आपका स्वागत करता. खैर कोई बात नहीं, मेरी छाती के कारण आपके पैरों को तो बहुत ही कष्ट हुआ होगा और फिर वह उनके पैर दबाते हुए बोले, आपने मुझ पर बड़ा उपकार किया है. महर्षि भृगु का अनुभव सुनने के बाद सभी ऋषियों ने कहा कि जो लोग सात्विकता प्रेमी हैं, उन्हें एकमात्र भगवान विष्णु का ही भजन करना चाहिए. 


अपनी फ्री कुंडली पाने के लिए यहां क्लिक करें