Grahan 2024: क्या है पूर्णिमा और अमावस्या में ग्रहण लगने का कारण? पढ़ें रोचक कहानी
Significance of Grahan: समुद्र मंथन शुरु हुआ तो उससे विष सहित बहुमूल्य रत्न भी निकले. विष तो शिव जी ने पी लिया. फिर कामधेनु, कौस्तुभ मणि, उच्चैश्रवा अश्व, ऐरावत हाथी आदि निकले. बाद में लक्ष्मी जी निकलीं जिन्हें भगवान विष्णु ने अपने वक्ष स्थल पर धारण किया
Grahan Story: राहु और केतु को ज्योतिष शास्त्र में छायाग्रह माना जाता है. समुद्र मंथन की कहानी तो सभी जानते हैं कि दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण देवराज इंद्र श्रीहीन हो गए थे. महर्षि दुर्वासा द्वारा दिए गए पारिजात पुष्प का सम्मान करने के बजाए उन्होंने उसे ऐरावत हाथी के मस्तक पर फेंक दिया था, बस इसी बात से महर्षि क्रुद्ध हो गए थे. श्रीहीन होते ही दैत्यों ने देवलोक पर कब्जा जमा लिया और देवता त्राहि त्राहि करते हुए पहले ब्रह्मा जी और फिर विष्णु जी की शरण में पहुंचे. विष्णु जी ने दैत्यों के सहयोग से समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया.
समुंद्र मंथन से निकली कई चीजें
समुद्र मंथन शुरु हुआ तो उससे विष सहित बहुमूल्य रत्न भी निकले. विष तो शिव जी ने पी लिया. फिर कामधेनु, कौस्तुभ मणि, उच्चैश्रवा अश्व, ऐरावत हाथी आदि निकले. बाद में लक्ष्मी जी निकलीं जिन्हें भगवान विष्णु ने अपने वक्ष स्थल पर धारण किया, सबसे अंत में एक दिव्य पुरुष निकले जिनके हाथ में अमृत से भरा कलश था, वे भगवान विष्णु के अंशांश अवतार धन्वन्तरि थे.
दैत्य उनके हाथ से अमृत कलश छीन कर ले भागे तो देवता फिर विष्णु जी के पास गए. भगवान मोहिनी रूप धारण कर दैत्यों के पास पहुंचे तो पहले अमृतपान के लिए झगड़ रहे दैत्य मोहिनी स्त्री को देख कर आवाक रह गए और उसे ही अमृत बांटने का कार्य सौंप दिया.
राहु का काटा गला
मोहिनी ने देवताओं और दैत्यों की दो लाइनें बनवाकर पहले देवताओं को अमृत पिलाना शुरू किया. इस पर राहु नामक दैत्य देवताओं का रूप धर कर उनकी लाइन में शामिल हो गया और अमृत पान कर लिया तभी सूर्य और चंद्रमा ने उसका भेद खोल दिया. भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु का सिर काट डाला. उस समय तक अमृत गले के नीचे नहीं उतरा था जिससे उसका सिर अमर हो गया. ब्रह्मा जी ने उसे भी ग्रह बना दिया. बस भेद खुलने के कारण ही राहु सूर्य और चंद्रमा से शत्रुता मानता है और क्रमशः पूर्णिमा और अमावस्या को उनके पर आक्रमण करता है.