नई दिल्ली: भारतीय मूल के वैज्ञानिक के नेतृत्व में काम करने वाली वैज्ञानिकों की टीम ने एक नई प्रणाली विकसित की है. इसकी मदद से मंगल ग्रह (Mars) पर मौजूद नमकीन पानी से ऑक्सीजन (Oxygen) और हाइड्रोजन ईंधन (Hydrogen Fuel) बनाया जा सकता है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इस प्रणाली से भविष्य में मंगल ग्रह और उसके आगे अंतरिक्ष की यात्राओं में रणनीतिक बदलाव आएगा.


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कई शोध में मंगल पर जीवन (Life On Mars) के संकेत मिल चुके हैं. इस नई प्रणाली से इन बातों को अधिक बल मिलेगा. शोधकर्ताओं की मानें तो मंगल ग्रह बहुत ठंडा है. इसके बावजूद वहां पानी जमता नहीं है. इससे संभावना जताई जा रही है कि वहां के पानी में बहुत अधिक मात्रा में नमक (क्षार) हो सकता है, जिससे उसके हिमांक तापमान में कमी आती है. 


ईंधन बनाने की कोशिश जारी


वैज्ञानिकों ने बताया है कि बिजली की मदद से पानी के यौगिक को ऑक्सजीन और हाइड्रोजन ईंधन में बदलने के लिए पहले पानी से उसमें घुली लवन को अलग करना पड़ता है. यह इतनी कठिन परिस्थिति में बहुत लंबी और खर्चीली प्रक्रिया होने के साथ मंगल ग्रह के वातावरण के हिसाब से खतरनाक भी होगी. रिसर्चर्स की टीम का नेतृत्व अमेरिका स्थित वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर विजय रमानी ने किया है.


उन्होंने इस प्रणाली का परीक्षण मंगल के वातावरण की परिस्थितियों के हिसाब से शून्य से 36 डिग्री सेल्सियस के नीचे के तापमान में किया है. 


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मंगल पर संभव है उत्पादन


वैज्ञानिक विजय रमानी ने बताया कि मंगल की परिस्थिति में पानी को दो द्रव्यों में खंडित करने वाले हमारा इलेक्ट्रोलाइजर मंगल ग्रह और उसके आगे के मिशन की रणनीतिक गणना को एकदम से बदल देगा. यह प्रौद्योगिकी पृथ्वी पर भी समान रूप से उपयोगी है, जहां पर समुद्र ऑक्सीजन और ईंधन (हाइड्रोजन) का व्यवहार्य स्रोत (Viable Source) है.


रिसर्चर्स ने बताया है कि मंगल ग्रह पर अस्थायी तौर पर भी रहने के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को पानी और ईंधन सहित कुछ जरूरतों का उत्पादन करना पड़ेगा.


नासा का पर्सविरन्स रोवर इस समय मंगल ग्रह की यात्रा पर है. वह अपने साथ ऐसे उपकरणों को ले गए हैं, जो उच्च तापमान आधारित इलेक्ट्रोलिसिस का इस्तेमाल करेंगे. हालांकि, रोवर द्वारा भेजे गए उपकरण मार्स ऑक्सीजन इन-सिटू रिर्सोस यूटिलाइजेशन एक्सपेरिमेंट (मॉक्सी) वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर केवल ऑक्सीजन बनाएगा.


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