मंगल ग्रह की कार्बन डाइऑक्साइड से बिजली और प्लास्टिक बनेगी, वैज्ञानिकों ने रिसर्च के बाद सामने रखा प्लान
CO2 On Mars: ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर बिजली बनाने का खाका सामने रखा है. उनकी योजना लाल ग्रह पर भरपूर मात्रा में उपलब्ध कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का इस्तेमाल करने की है.
Science News in Hindi: वैज्ञानिकों ने भविष्य में मंगल ग्रह पर बिजली बनाने का तरीका ढूंढ लिया है. वे थर्मोइलेक्ट्रिक जेनेरेटर्स की मदद से ऐसा करना चाहते हैं. ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी (UBC) के वैज्ञानिकों ने एक स्टडी की है. इसमें उन्होंने दिखाया कि मामूली तापमान अंतर के तहत, थर्मोइलेक्ट्रिक जेनेरेटर्स कार्बन डाइऑक्साइड को कन्वर्ट करने में मदद कर सकते हैं. स्टडी के नतीजों से उन्हें भरोसा हो गया है कि अलग-अलग वातावरणों में तापमान का अंतर CO2 को तरह-तरह के उपयोगी ईंधनों और रसायनों में बदलने में मददगार हो सकता है. रिसर्च के नतीजे 'डिवाइस' जर्नल में छपे हैं.
मंगल ग्रह क्यों है इसके लिए मुफीद?
वैज्ञानिक इस बात से बेहद उत्साहित हैं कि मंगल ग्रह के ठंडे वातावरण में ऐसी तरकीब कारगर हो सकती है. वहां के वायुमंडल में CO2 प्रचुर मात्रा में मौजूद है. UBC में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च फेलो और स्टडी के मुख्य लेखक, डॉ अभिषेक सोनी ने कहा कि 'मंगल ग्रह के वातावरण ने इस टेक्नोलॉजी कॉम्बिनेशन के लॉन्ग-टर्म पोटेंशियल में सचमुच मेरी दिलचस्पी जगाई.'
सोनी के मुताबिक, 'वहां का वातावरण कठोर है और तापमान में बड़े बदलावों को थर्मोइलेक्ट्रिक जेनेरेटर्स से न सिर्फ बिजली बनाने, बल्कि मंगल के वायुमंडल मे मौजूद CO2 को कन्वर्ट कर उपयोगी उत्पाद तैयार किए जा सकते है जो किसी इंसानी बस्ती को सप्लाई किए जा सकते हैं.'
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रिसर्चर्स ने जेनेरेटर्स को दो अलग-अलग तापमान पर अटैच किया. उन्होंने पाया कि जब अंतर कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा रहा, तब पर्याप्त करंट निकला जिससे इलेक्ट्रोलाइजर चल पाया जो CO2 को CO (कार्बन मोनोऑक्साइड) में बदलता है.
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मंगल पर कैसे बनेगी बिजली?
मंगल पर यह प्रक्रिया थोड़ी चुनौतीपूर्ण हो जाती है. मंगल के वायुमंडल में 95% CO2 है. वहां सतह पर तापमान 20 डिग्री से लेकर -153 डिग्री सेल्सियस तक रहता है. सोनी की योजना के अनुसार, मंगल पर एक बायोडोम बनाना पड़ेगा और उसे रूम टेंपरेचर पर मेंटेन करना होगा. डोम की सतह पर लगे थर्मोइलेक्ट्रिक जेनेरेट बाहरी और अंदरूनी तापमान के अंतर से बिजली पैदा करेंगे. इस बिजली से CO2 को अन्य कार्बन-आधारित उत्पादों, जैसे ईंधन और रसायनों में बदला जा सकता है.