Chandrayaan-3 Mission: इंसानों की बड़ी छलांग के लगभग 50 साल बाद चंद्रमा की सतह पर लौटने की एक नई रेस शुरू हुई है. पानी और ऑक्सीजन, लोहा, सिलिकॉन, हाइड्रोजन और टाइटेनियम जैसे तत्वों की बढ़ती मौजूदगी के कारण वैज्ञानिकों का आकर्षण बढ़ रहा है. इतना ही नहीं, यह बाकी इंटर प्लैनेट मिशन्स के लिए गेटवे का भी काम कर सकता है. वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि एस्टेरॉयड के असर या महामारी जैसी ग्लोबल इमरजेंसी की स्थिति में चांद इंसानी सभ्यता के लिए बैकअप के रूप में काम कर सकता है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

भारत ने रचा है इतिहास


वर्तमान में तीन देशों - भारत (एक), अमेरिका (चार), दक्षिण कोरिया (एक) के लगभग 6 अंतरिक्ष मिशन चंद्रमा की कक्षा में घूम रहे हैं. चंद्रमा की भूमध्य रेखा के करीब स्पेसक्राफ्ट पहले सफलतापूर्वक उतर चुके थे. अब भारत के चंद्रयान -3 ने पहली बार उसके दक्षिणी ध्रुव पर उतरकर इतिहास रचा है. इसकी मुख्य वजह असमान भूभाग और सूर्य की रोशनी न होने के कारण लैंडिंग में मुश्किल होना है. दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी के सामने नहीं है इसलिए वहां स्पेसक्राफ्ट से कम्युनिकेशन स्थापित करना भी मुश्किल है.


रूस का लूना लैंडर मिशन, जिसके चंद्रयान-3 के साथ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने की उम्मीद थी, 20 अगस्त को प्रीलैंडिंग ऑर्बिट में एंट्री करते वक्त दुर्घटनाग्रस्त हो गया. जापान, अमेरिका, इजराइल, चीन और रूस जैसे देश जल्द ही चंद्रमा पर कक्षीय और लैंडर मिशन शुरू करने की संभावना रखते हैं.



आईआईटी जोधपुर के फिजिक्स डिपार्टमेंट की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रीतांजलि मोहना ने बताया, 'चांद का दक्षिणी हिस्सा वैज्ञानिकों के लिए खास दिलचस्पी का विषय है क्योंकि इसके चारों ओर स्थायी रूप से दिखाई देने वाले क्षेत्रों में पानी की बर्फ होती है. ज्यादा विपरीत परिस्थितियां इसे धरतीवासियों के लिए उतरने, रहने, काम करने के लिए एक चुनौतीपूर्ण जगह बनाती हैं, लेकिन कमाल की विशेषताएं उम्मीदें पैदा करती हैं.


बाकी ग्रहों को जानने में मिलेगी मदद


अनंत टेक्नोलॉजीज (एटीएल) इंडिया के संस्थापक और सीएमडी डॉ. सुब्बा राव पावुलुरी ने कहा, 'चंद्रमा पर जाने का नंबर एक कारण यह है कि इससे हमें अन्य ग्रहों पर जाने में मदद मिलेगी. नंबर दो चंद्रमा पर हीलियम और लिथियम जैसी कुछ दुर्लभ धातु काफी ज्यादा हैं, जिसमें दुनिया भर के वैज्ञानिकों की दिलचस्पी है. चूंकि दुनिया भर में संसाधन कम हो रहे हैं, यह आने वाले समय में मानवता के लिए खुद को मजबूत करने का एक तरीका हो सकता है.'


कंपनी, जो लॉन्च व्हीकल्स और सैटेलाइट्स में इसरो की लंबे समय से भागीदार रही है, ने चंद्रयान -3 के लिए लॉन्च वाहन (एलवीएम 3) में योगदान दिया है. मोहराना ने बताया कि चंद्र दक्षिणी ध्रुव में सूर्य क्षितिज के नीचे या ठीक ऊपर मंडराता है, जिससे सूर्य की रोशनी की अवधि के दौरान तापमान 130 डिग्री फ़ारेनहाइट (54 डिग्री सेल्सियस) से ऊपर हो जाता है.



उन्होंने कहा, 'रोशनी की इन अवधियों के दौरान भी ऊंचे पहाड़ काली छाया डालते हैं और गहरे गड्ढे अपनी गहराइयों में अंधेरे की रखवाली करते हैं. इनमें से कुछ क्रेटर स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्रों के घर हैं, जिन्होंने अरबों वर्षों में दिन का उजाला नहीं देखा है, जहां तापमान -334 डिग्री फ़ारेनहाइट से -414 डिग्री फ़ारेनहाइट (-203 डिग्री सेल्सियस से -248 डिग्री सेल्सियस) तक होता है.


'चंद्रमा हर 27.322 दिन में एक बार हमारे ग्रह के चारों तरफ चक्कर लगाता है. चंद्रमा धरती के साथ ज्वारीय रूप (Tidal Form) से घिरा हुआ है, जिसका मतलब है कि जब भी यह तुल्यकालिक घूर्णन (सिनक्रोनस रोटेशन) करता है तो यह अपनी धुरी पर ठीक एक बार घूमता है.'


'अब थोड़ी अलग है स्पेस रेस'


आईआईटी बॉम्बे के एस्ट्रोफिजिसिस्ट प्रोफेसर वरुण भालेराव ने बताया कि चंद्रमा की दौड़ अब स्पेस इन्वेस्टिगेशन के शुरुआती दिनों से अलग है. उन्‍होंने कहा कि 1960 के दशक में और बाद में चंद्र मिशन के शुरुआती चरण के दौरान स्पेस की दौड़ गर्म थी और लोग अपनी बात रखने की कोशिश कर रहे थे.


भालेराव ने कहा, 'अब मुझे लगता है कि यह एक सिनेरियो के रूप में थोड़ा अलग है जहां धरती की निचली कक्षा तक पहुंच बेहद लोकतांत्रिक हो गई है. बहुत सारे देश और निजी कंपनियां अब असल में धरती की निचली कक्षाओं में लॉन्च कर सकते हैं और फिर यह स्वाभाविक हो जाता है कि हर किसी के लिए अगला कदम हमारे सबसे करीबी पड़ोसी के पास जाना होगा.'



उन्होंने कहा, 'और मुझे लगता है कि भविष्‍य में इस तरह के मिशन बढ़ जाएंगे. देश चंद्रमा के रहस्‍यों का पता लगाने और समझने की कोशिश करेंगे और इसका इस्तेमाल बाहरी स्पेस में आगे जाने वाले मिशनों के लिए अपनी टेक्नोलॉजी को बेहतर बनाने के लिए भी करेंगे.'


(इनपुट- IANS)