क्रिकेटर स्टीव स्मिथ ने शुक्रवार को सिसकते हुए माफी मांगी. करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों के लिए यह करुण दृश्य था. स्मिथ को फूटफूट कर रोते देख उनके प्रशंसक भी रोते दिखे. घटना ही वैसी थी. हालांकि बात गेंद के खेल में बेईमानी की थी. हर खेल के नियम होते हैं. और नियमों से भी ज्यादा ज़रूरी किसी खेल से जुड़ी नैतिकता और खेल भावना मानी जाती है. लेकिन ये हकीकत नहीं बदल सकती कि आखिरकार होता वह खेल ही है. वैसे इस बात को कोई नहीं नकार सकता कि गलती की गई. सोच-समझकर गलती की गई. भले ही गुनाह करने के लिए ऑस्ट्रेलिया के इन खिलाडियों का फैसला निजी था. लेकिन इससे वे खुद के साथ-साथ अपने देश की छवि को भी अपूरणीय क्षति पहुंचा बैठे. बहरहाल खिलाड़ियों को कठोर सजा सुनाई जा चुकी है. इस सजा का खुद गुनाहगार खिलाड़ियों ने किसी भी रूप में कोई विरोध नहीं किया. बल्कि वे प्रायश्चित करते हुए दिख रहे हैं. फिर भी इस मामले की चर्चा बंद नहीं हो पा रही है. प्रकरण के कई पहलुओं पर सोच-विचार होना शुरू हो गया है.


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सजा के मकसद का पहलू
पूरी दुनिया में बड़े से बड़े अपराधियों को भी जो सज़ाएं दी जाती हैं, आजकल उनका मकसद उन्हें सुधारना ही होता है. इसीलिए आदतन अपराधियों तक को कड़ी सज़ा देने से हर सभ्य देश बचता है. और फिर यह मामला तो खेल में बेईमानी करने का है. इसके बावजूद इसकी चर्चा ज्यादा होने का कारण यह है कि क्रिकेट दुनिया में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला खेल है. इस खेल के खिलाड़ी की लोकप्रियता के सामने बड़े से बड़े राष्ट्राध्यक्ष भी नहीं टिक पा रहे हैं. लोकप्रियता के शिखर पर खेल रहे क्रिकेट के खिलंदड़ों को इतनी कठोर सज़ा का अनुमान कोई नहीं लगा पा रहा था. नियम कानून अपनी जगह हैं. उस पर ज्यादा बात करना ठीक नहीं माना जाता. और जो गलती की गई है. उसकी सज़ा भी भुगतनी चाहिए. लेकिन इतने भर से बात खत्म नहीं हो पा रही है. क्योंकि कई लिहाज़ से यह मामला अनोखा है.


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क्या ऐसा पहला मामला है?
बिल्कुल नहीं. क्रिकेट में चुपके से गेंद से छेड़छाड़ के मामलों के दसियों मामले हो चुके हैं. यह भी लगभग वैसा ही है. गेंद को एकतरफ से ज्यादा खुरदरी की गई थी. इसे गेंद से छेड़छाड़ का गुनाह माना गया. यह गुनाह ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज कैमरून बेनक्रोफ्ट ने किया था. बेनक्रोफ्ट को कैमरे में पकड़ा गया. सज़ा होनी ही थी. दसियों साल में बीसियों खिलाड़ियों को इसी गुनाह में सज़ा मिल चुकी है. इन सज़ायाफ्ताओं में दुनिया के एक से बढ़कर एक दिग्गज खिलाडियों के नाम शामिल हैं. हालांकि खेल में ऐसे गुनाह के लिए कभी किसी को इतनी ज्यादा सज़ा दी गई हो वैसा देखने सुनने को नहीं मिलता. पिछले प्रकरणों में किसी की मैच फीस काट ली गई. या फिर किसी को एक या दो मैच नहीं खेलने की सज़ा दी गई. ऐसे मामले में सिर्फ गेंदबाज को ही सज़ा मिलने की घटनाएं हुई हैं. ये अनोखा संयोग है बॉल टेंपरिंग के तीनों दोषी खिलाड़ी गेंदबाज नहीं बल्कि बल्लेबाज हैं. इस मामले में एक और अनोखापन ये भी है कि पिछले मामलों में ज्यादातर आरोपी खिलाड़ियों ने अपनी बेगुनाही के तर्क जरूर रखे. यानी अपना गुनाह कबूला नहीं था.


उन्हें दूसरे सबूतों के आधार पर सज़ा दी गई. लेकिन हाल के मामले में आश्चर्यजनक यह है कि टीम के कप्तान ने भी मासूमियत से मान लिया कि टेंपरिंग की बात मुझे पता थी. कप्तान ने यह भी मान लिया कि देश और अपनी टीम की जीत की चाह में यह गुनाह हो गया. यह बात बेनक्रोफ्ट और कप्तान स्मिथ ने प्रकरण वाले दिन का खेल खत्म होने के फौरन बाद बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कबूल कर ली. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के होने तक मामले की औपचारिक सुनवाई और सज़ा का एलान हुआ भी नहीं था. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को सुनकर लगता था कि बेनक्रोफ्ट और स्मिथ मानकर चल रहे थे कि अपनी गलती कबूल कर लेने से उन्हें नियमों के मुताबिक सज़ा मिल जाएगी और आगे ऐसी गलती न दोहराने का आश्वासन देकर वे टूटे हुए भरोसे की थोड़ी भरपाई कर पाएंगे.



क्या ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने ज्यादा गंभीरता दिखा दी
साउथ अफ्रीका के साथ टेस्ट मैच खेल रही ऑस्टेलियाई टीम के खिलाड़ियों से बॉल टेंपरिंग का गुनाह हुआ. टीवी पर सीधे प्रसारण के दौरान ही इस प्रकरण की सूचना मिलते ही ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने इस प्रकरण पर इतना गुस्सा जता दिया कि विश्व मीडिया इन खिलाड़ियों को बड़ा भारी खलनायक बनाने की मुहिम पर चल पड़ा. दुनियाभर में ऑस्टेलियाई खिलाड़ियों के लिए व्यंगात्मक और शर्मनाक भाषा का इस्तेमाल होने लगा. और फिर ये तीनों खिलाड़ी रातों-रात गंभीर अपराधी में तब्दील हो गए. उन्हें जिस तरह से साउथ अफ्रीका के एयरपोर्ट से भारी भरकम सुरक्षा घेरे में निकाला गया वह दृश्य किसी बड़े अपराधी को ले जाने के दृश्यों जैसा ही था. उन खिलाड़ियों के साथ उनका परिवार भी था. उनका गुनाह उतनी ज़लालत के लायक था भी या नहीं? यह सवाल भी सभ्य समाज के सोचने के लिए खड़ा हो गया है. विश्व के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में शुमार इन खिलाड़ियों को जीवनभर उनके किए योगदान को भुलाकर क्या अब इस एक गलती के लिए ही याद किया जाना सही होगा?


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सज़ाओं की मात्रा
अब तक की जांच में यह निकलकर आया है कि गुनाह की योजना के पीछे दिमाग उपकप्तान वार्नर का था. जिसे अंजाम देते हुए बेनक्रोफ्ट पकड़े गए. और इसकी सूचना कप्तान स्मिथ को थी. बहरहाल इस अपराध के लिए बेनक्रोफ्ट को 9 महीने खेलने पर पाबंदी की सज़ा मिली है. साथ में उनकी 75 फीसद मैच फीस भी काट ली गई. कप्तान और उपकप्तान से उनके पद छीन लिए गए. उनकी 100 फीसद मैच फीस कट गई. दानों के क्रिकेट खेलने पर एक साल की पाबंदी लग गई. इसके अलावा 100 घंटे सामुदायिक सेवा करने की सज़ा भी उन्हें दी गई है. स्मिथ को दी गई सजाओं में यह भी जोड़ा गया है कि दो साल तक उन्हें नेतृत्व का कोई पद नहीं दिया जाएगा. वार्नर को ताउम्र किसी नेतृत्व का पद नहीं मिलेगा. इन खिलाड़ियों के बाकी देशों में होने वाले निजी क्रिकेट आयोजनों के करार भी रदद कर दिए गए हैं. यानी इन सजाओं ने इतिहास में ऐसे अपराध के लिए दी गई सज़ाओं के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.



आगे ऐसी हरकत रोकने के लिए क्या नज़ीर पैदा की गई?
इस सज़ा को भविष्य के लिए प्रतिरोध पैदा करने के लिए एक नजीर के तौर पर सही ठहराया जा सकता है. लेकिन फिर भी यह मामला यहीं खत्म नहीं हो पाएगा. क्योंकि इन खिलाड़ियों को फिलहाल इतनी सज़ा उनके बोर्ड और आईसीसी की तरफ से मिल रही है. इससे कहीं बड़ी सज़ा मानसिक यातना के रूप में उन्हें मीडिया और आमलोगों की तरफ से लानत के रूप में भी मिली है. इस सज़ा ने खिलाड़ियों से लेकर कोच तक को उस स्थिति में पहुंचा दिया कि मीडिया के जरिए दुनिया का सामना करते हुए वे खुद को संभाल नहीं पा रहे हैं. मसलन शनिवार को कोच लेहमन का गला और आंखें भी बार-बार भरी जा रही थीं.


बिना शर्त माफी के बाद क्या
पिछले तीन दिनों में हुईं कई प्रेस कॉन्फ्रेंस के दृश्यों को देखें तो यह बात निकलकर आती है कि इन गुनहगार खिलाड़ियों ने पूरी ईमानदारी और शिद्दत से अपना गुनाह कबूला. एक शब्द की भी शर्त लगाए बिना उन्होंने माफी मांगी. अपने देशवासियों और क्रिकेटप्रेमियों का भरोसा टूटने से वे हद से ज्यादा परेशान और अपराधबोध में दिखाई दिए. कहीं से नहीं लगा कि वे किसी आर्थिक नुकसान या भविष्य को लेकर चिंतित हों. बल्कि उनमें वर्षों की मेहनत से कमाई इज्ज़त और अपने प्रशसंकों का प्यार खोने का दर्द दिखा. उनके कारण उनके परिवार ने जो जलालत झेली उससे वे भीतर से टूटे नज़र आए.


कहीं लुप्त ही न हो जाए क्षमाबोध 
बीते समय में आखिरी बार कब देखा गया कि सार्वजनिक जीवन में किसी ने अपनी गलती इस इमानदारी से स्वीकारी हो और क्षमा याचना की हो. मानव के बदलते व्यवहार के दौर में ईमानदारी से अपनी गलती मानकर माफी मांगने का हौसला भी खत्म होता दिखता है. अगर ये खिलाड़ी क्षमा योग्य नहीं माने गए तो यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि फिर माफी पाने की योग्यता आज क्या है? इस मामले में अपराधबोध, सज़ा को तत्परता से स्वीकारना, सुधार और दोबारा गलती न करने का आश्वासन, ये सारे तत्व क्या इस प्रकरण में स्पष्ट नहीं थे?


(लेखिका, प्रबंधन प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और सोशल ऑन्त्रेप्रेनोर हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं)