खट्टे फल जिन्होंने इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का भाग्य बदल दिया!
उस ज़माने में सुदूर तटों के सफर पर निकलने वाले जहाजों के चालक दल के आधे से ज्यादा सदस्य सफर के दौरान मर जाते थे. इन मौतों की वजह एक रहस्यमय बीमारी थी.
400 ईसा पूर्व यूनान के दो महान नगर साम्राज्य एथेंस और स्पार्टा के बीच के लंबे युद्ध में स्पार्टा की विजय के पीछे कई कारण दिए जा सकते हैं जैसे स्पार्टा के योद्धा एथेंस के योद्धाओं से बहुत बेहतरीन थे (फारस से स्पार्टा के बेहतरीन लड़कों की लड़ाई पर हॉलीवुड में '300' नामक एक कमाल की फ़िल्म भी बनी है), लेकिन इनमें सबसे प्रमुख कारण था एक बीमारी जिसका नाम है प्लेग. प्लेग ने एथेंस के महान राजा पेरिक्लीज़ के साथ साथ लगभग आधी एथेंस आबादी को मौत के घाट उतार दिया था. एथेंस की ही तरह एक और चिकित्सकीय घटना ने दो हज़ार साल बाद कई देशों के भाग्य को बदल दिया था... इस बार यह घटना थी स्कर्वी के उपचार की खोज.
पंद्रहवीं शताब्दी के बाद से ही वैज्ञानिक खोजों को यूरोप ने प्राथमिकता देना शुरू कर दिया था. जब यह सिद्ध हो चुका था कि सूर्य ही सभी ग्रहों का केंद्र है तो लोगों की इसमें रुचि बढ़ गई थी कि यह आखिर पृथ्वी से है कितना दूर. पृथ्वी से सूर्य की दूरी का एकदम सटीक परिणाम हासिल करने के लिए खगोलविदियों को दक्षिण पश्चिम प्रशांत महासागर तक भेजना अनिवार्य था, क्योंकि वहां से पृथ्वी और सूर्य के बीच से शुक्र के गुजरने का कोण सबसे सटीक था.
इतिहासकार हरारी के अनुसार 1768 में रॉयल सोसायटी ने एक प्रख्यात खगोलविद चार्ल्स ग्रीन को टहिटी भेजने का फैसला किया और उसके लिए उन्हें आवश्यक सभी बेहतरीन सुविधाएं दी गईं. चार्ल्स ग्रीन के साथ ही इस दल में कुछ चित्रकारों को भी शरीक किया गया, जिन्हें स्थलों, वनस्पति, जीव-जंतुओं और लोगों के चित्र बनाकर लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई. रॉयल सोसायटी ने इस दल की कमान कैप्टन जेम्स कुक (कैप्टन कुक) को सौंपी थी जो एक अनुभवी नाविक होने के साथ-साथ दक्ष भूगोलविद और नृवंश विज्ञानी भी थे.
अभियान दल ने 1769 में टहिटी से शुक्र के गुजरने की प्रक्रिया का परीक्षण किया. प्रशांत महासागर के अनेक द्वीपों की खोज की. ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की यात्रा कर दो साल बाद 1971 में इंग्लैंड लौटा. यह दल अपने साथ बहुत बड़ी तादाद में वैज्ञानिक आंकड़े लेकर आया.
कुक अभियान दल से एक और क्रांति होने वाली थी. उस ज़माने में सुदूर तटों के सफर पर निकलने वाले जहाजों के चालक दल के आधे से ज्यादा सदस्य सफर के दौरान मर जाते थे. इन मौतों की वजह एक रहस्यमय बीमारी थी. इस बीमारी के शिकार लोग थके हुए और उदास हो जाया करते थे, उनके मसूड़ों से खून आने लगता था. जैसे-जैसे यात्रा के दिन और लंबे होते थे बीमारी बढ़ती जाती थी. उनके दांत झड़ने लगते थे. शरीर में फोड़े निकलने लगते थे. वे बुखार और पीलिया से ग्रस्त हो जाते थे और अपने अंगों पर नियंत्रण खोने लगते थे. और अंततः मर जाते थे. अनुमान है कि 16 से 18वीं सदी के बीच इस रहस्यमय बीमारी ने 2000000 नाविकों की जान ली थी. उस वक्त तक इस बीमारी की वजह कोई नहीं जानता था. कई लोग और यहां तक कि कई देश इसे समुद्र के देवता के क्रोध का परिणाम मानते थे, तो कुछ इसे शत्रुओं द्वारा किया गया जादू. क्योंकि सभी तरह की चिकित्सा या सावधानी रखने पर भी नाविकों का बड़ी तादाद में मरना जारी था.
1747 में एक अंग्रेज चिकित्सक जेम्स लिंड ने इस बीमारी के शिकार नाविकों पर एक प्रयोग किया था. उसने नाविकों को कई समूहों में बांटा और हर समूह का अलग-अलग तरह से उपचार किया. एक समूह को नींबू संतरे जैसे खट्टे-फल खाने के निर्देश दिए- इस समूह के लोग जल्दी ही स्वस्थ हो गए. लिंड नहीं जानते थे कि खट्टे फल में ऐसी कौन सी चीज थी जो नाविकों का जीवन बचा रही थी. बाद में 1930 में इस रहस्यमय खट्टी चीज को एक अमेरिकी वैज्ञानिक अल्बर्ट ग्योगरी ने खोजा 'एस्कॉर्बिक एसिड' के रूप में, जिसे 'विटामिन सी' भी कहा जाता है.
शाही नौसेना की रॉयल नेवी को लिंड के प्रयोग पर यकीन नहीं था, लेकिन कैप्टन कुक को था. उन्होंने लिंड को सही साबित करने का निश्चय कर लिया. उन्होंने अपनी नाव में बड़ी तादाद में खट्टी गोभी और फल लादे और अपने नाविकों को आदेश दिया कि जब भी अभियान दल किसी तट पर उतरे तो सारे नाविक भरपूर खट्टे फल और सब्जियां खाएं. कुक के इस आदेश को मानकर उस अभियान दल का कोई भी नाविक उस बेरहम और रहस्यमय रोग का शिकार होकर नहीं मरा. बाद के दशकों में दुनिया की सारी नौसेनाओं ने कुक के इस जहाजी भोजन को अपनाया और इस तरह से असंख्य समुद्री यात्रियों की जान बची.
कुक और लिंड के इस प्रयोग ने शाही नौसेना को अपार शक्ति दी और उनके नोसैनिक दूसरे सैनिकों की तुलना में लगभग बिल्कुल नहीं मरते थे. कुक के अभियान के बाद अंग्रेजों ने प्रशांत महासागर, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को जीत लिया. वहां के मूल निवासियों की लगभग नब्बे प्रतिशत आबादी को मौत के घाट उतार दिया गया. और बाकी बचे दस प्रतिशत लोगों को ग़ुलामी की ज़िल्लत भरी जंजीर पहना दी.
खट्टे फलों ने अंग्रेजों को शक्तिशाली बनाया. जहाज के असंख्य यात्रियों के जीवन की रक्षा की, लेकिन इसने कई लोगों को क्रूर नौसेनाओं द्वारा मृत्यु के घाट उतारने और उपनिवेशियों के हाथों ग़ुलामी की जंजीरों में जकड़ने में योगदान दिया. आज एक रुपये की कीमत में मिलने वाली विटामिन सी की खट्टी गोलियां उस समय एक बेशकीमती जीवनरक्षक और लोगों का भाग्य बदलने वाली जादुई दवा साबित हो सकती थीं.
लेखक चिकित्सक हैं.
(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)