डियर जिंदगी : तुम समझते/समझती क्यों नहीं...
पति और पत्नी इस दुनिया में एक-दूसरे को छोड़कर बाकी सबको समझने योग्य मानते हैं! ऐसा क्या है इस रिश्ते में, जो उल्लास, आनंद, खुशी के ख्वाब से आरंभ होता है, वह कुछ ही दिनों में हिचकोले खाने लगता है.
हम बच्चे होते हैं, तो लगता है 'माता-पिता' हमारी बात नहीं सुनते. नहीं समझते! जैसे-जैसे बड़े होते जाते हैं, यह असहमति बढ़ती जाती है. हद तो यह है कि जब बच्चे खुद माता-पिता बन जाते हैं, तब उनके बच्चे भी यही शिकायत करते हैं. उनकी छोडि़ए, पति-पत्नी की सबसे बड़ी शिकायत यही होती है कि दोनों एक-दूसरे को नहीं समझते.
'जिंदगी न हुई. पाइथागोरस की प्रमेय हो गई! हर कोई बस यही शिकायत किए जा रहा है कि समझ में नहीं आती. जब पति-पत्नी ही एक-दूसरे को नहीं समझ पा रहे, तो 'दूसरों' की क्या हैसियत कि वह समझ में आ जाएं.'
'डियर जिंदगी' का यह 300वां लेख है. पहले लेख से लेकर अब तक जिस विषय पर हमें सबसे ज्यादा पाठकों की प्रतिक्रया मिली, वह है- रिश्तों में तनाव. एक-दूसरे को न समझ पाने से उपजी कुंठा धीरे-धीरे तनाव, डिप्रेशन में बदलने लगती है. क्या है ऐसी चीज़, जो एक-दूसरे के लिए अबूझ पहेली बन जाती है.
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दस-बाई-दस के कमरे में रहने वाले दो लोग जो एक-दूसरे की सहमति, समझ के आधार पर साथ आए हैं, कुछ बरस बाद ही एक-दूसरे को गणित जैसा कठिन मानने लगते हैं.
पति की राय में पत्नी को समझना असंभव है. बहुत मुश्किल है. वह महिलाओं पर एक से एक विद्वानों की राय लेकर हाजिर हो जाते हैं कि उन्हें समझना मुश्किल है. लेकिन मजे की बात यह है कि जैसे ही उनसे कहा जाता है कि अपनी मां, बहन, बॉस को समझते हैं, तो वह तुरंत हां में उत्तर देते हैं.
ठीक यही तब होता है, जब पत्नी की हमेशा शिकायत होती है कि पति उन्हें समझते ही नहीं. उनको अपने दिल की बात कहने का कोई अर्थ नहीं, क्योंकि उनको समझना ही नहीं. लेकिन पत्नी अपने भाई, पिता, बॉस के बारे में एकदम उल्ट राय रखेंगी.
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इस तरह पति और पत्नी इस दुनिया में एक-दूसरे को छोड़कर बाकी सबको समझने योग्य मानते हैं! ऐसा क्या है इस रिश्ते में, जो उल्लास, आनंद, खुशी के ख्वाब से आरंभ होता है, वह कुछ ही दिनों में हिचकोले खाने लगता है.
पति-पत्नी दो जिस्म एक जान हैं, दोनों का जन्म सात जन्मों का है. जैसे नारों ने हमें बहुत नुकसान पहुंचाया है. क्योंकि इस दंपति के बीच में एक-दूसरे के लिए 'जगह' खत्म होती गई. कहीं पति निरंकुश हो गए, अपनी 'पुरुष' मानसिकता के कारण, तो कहीं पत्नी चीजों, संबंधों को अपनी मान्यता, विचार से देखने पर इतनी अडिग हैं कि पति के विचार के लिए 'शून्यकाल' घोषित कर दिया गया.
इसलिए दंपति जब अलग-अलग होकर दुनिया से मिलते हैं, तो वह दुनिया को समझ में आते हैं. दुनिया को समझ जाते हैं, लेकिन जैसे ही दोनों एक साथ होते हैं, वह एक-दूसरे को अपनी समझ की रेंज से बाहर कर देते हैं.
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इसलिए, सबसे आसान कदम से शुरू करें. एक-दूसरे को सुनने की आदत अपनाएं. अपने अंदर सुनने का सब्र, दूसरे में अच्छाई की तलाश संबंध को बेहतर करने की दिशा में सबसे अहम काम हैं. यह पौधे के नियमित ख्याल रखने जैसी चीज हैं. उसके खाद-पानी जैसे हैं. एक बार पौधा बड़ा हो जाए, तो वह अपना ख्याल खुद रख सकता है, लेकिन इस पर भी उसे बुलडोजर, अतिक्रमण से तो बचाना ही होता है.
रिश्ते भी ऐसे ही होते हैं. वह एक साथ सरल, सहज और जटिल भी होते हैं. यह आप पर है कि आप उन्हें कैसे देखना, बनाए रखना चाहते हैं.
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