प्रेम को हमने एकदम व्‍यक्तिगत बना दिया. निजी. इसका असर यह हुआ कि यह केवल व्‍यक्तियों के बीच फंसकर रह गया. यह सामाजिक नहीं हो पाया. यह समाज में वैसा रूप नहीं ले पाया, जिसकी मनुष्‍य को जरूरत है. इसे सरलता से ऐसे समझिए कि प्रेम को सफाई की तरह लिया गया. समाज ने सफाई को घर तक सीमित रखा, सार्वजनिक जीवन में शायद ही कभी इसे गंभीरता से लिया गया!


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प्रेम के साथ भी यही हुआ. प्रेम को फि‍ल्‍मों, किताबों में इस तरह पेश किया गया कि उसके मायने पूरी तरह व्‍यक्तिगत हो गए. जबकि प्रेम तो स्‍वभाव, आदत है. प्रेम जिसके स्‍वभाव में है, वह सबसे प्रेम करेगा. ऐसा नहीं हो सकता कि वह किसी एक से प्रेम करे, बाकी से सबसे शत्रुता रखे! किसी व्‍यक्ति के प्रेम में डूबे रहने को ही प्रेम कहना तो प्रेम को बाधित करना हुआ. जिसकी सीमा तय है, जिसकी सोच के दायरे में केवल व्‍यक्ति विशेष है, उससे समाज को बहुत कुछ मिलना संभव नहीं.


डियर जिंदगी: बच्‍चों के बिना घर!


प्रेम दृष्टिकोण है. स्‍वभाव है. जीवनशैली है. फलसफा है. अक्‍सर हम गुस्‍से के उलट प्रेम को समझने की चेष्‍टा करते हैं. जबकि दोनों एक-दूसरे के विपरीत छोर पर हैं. जहां गुस्‍सा नहीं है, जरूरी नहीं कि वहां उसकी जगह प्रेम ही हो. ठीक इसी तरह जहां प्रेम नहीं है, वहां क्रोध हो यह जरूरी नहीं. जैसे घर को साफ रखने के मायने यह नहीं कि हम नगर की सफाई के बारे में बड़े जागरूक, प्रतिबद्ध हैं, वैसे ही जीवन का नाता प्रेम से है.


आपके सामने दो छोटे -छोटे प्रसंग रखता हूं. जिनसे प्रेम के दृष्टिकोण को समझने में सरलता होगी.


पहला: डियर जिंदगी को मुंबई से एक ईमेल मिला है. जिसमें रचना रहाणे ने एक रिश्‍ते की कहानी के माध्‍यम से प्रेम की एक तस्‍वीर पेश की है.


मुंबई में इंजीनियर, सामाजिक सरोकार, प्रतिबद्धता के लिए लोकप्रिय हरीश माकवे और बैंक मैनेजर हंसा रावत की मित्रता कुछ बरस बाद प्रेम में बदल गई. सात बरस के प्रेम, एक-दूसरे को समझने का समय देने के बाद अलग होने का फैसला कर लिया गया. इस रिश्‍ते को आगे नहीं ले जाने में हंसा की ओर से अधिक सहमति थी, क्‍योंकि वह अपने परिवार को तमाम कोशिश के बाद भी नहीं समझा सकीं थी. इसलिए, उन्‍होंने अंतत: परिवार की पसंद के साथ जाने का निर्णय लिया.


डियर जिंदगी: रास्‍ता बुनना!


हरीश माकवे के लिए अलगाव को स्‍वीकार करना अधिक मुश्किल रहा. अचानक उन्‍होंने अपनी दुनिया के दरवाज़े सबके लिए बंद कर दिए. कल तक सबके लिए उपलब्‍ध, अपने ज्ञान, सूचना, प्रेम की खिड़की उन्‍होंने बंद कर दी. जो उनके संपर्क में आता उसे यही बताने में लग गए कि जिंदगी के मायने केवल स्‍वयं में हैं. दूसरों के साथ, दूसरों के लिए जीवन का कोई मोल नहीं. हरीश ने तो हर व्‍यक्ति से संबंध तोड़ लिए जिसने हंसा से मित्रता कायम रखी. हम अक्‍सर जरूरत के हिसाब से रिश्‍तों को मोड़ देते हैं. अपनी सुविधा के अनुसार उन्‍हें बदलना चाहते हैं! जबकि रिश्‍ते कागज़ की किश्‍ती नहीं हैं, वह जिंदगी के विशाल समंदर की पतवार हैं. प्रेम के प्रति उनका दृष्टिकोण ही बदल गया. उन्‍हें निजी अनुभव को समाज पर लागू कर दिया.


डियर जिंदगी: ‘ कड़वे ’ की याद!


दूसरा: रोहन श्रीवास्‍तव और अनुजा त्रिपाठी की कहानी अनूठी है. दोनों को अंतरजातीय विवाह करने में बहुत अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा. यहां तक कि अनुजा के परिवार की ओर से किसी संबंधी के हमले में रोहन को गंभीर चोट भी आई. लेकिन उसके बाद भी दोनों ने शादी के बाद एक-दूसरे के परिवार की ओर से की गई गलतियों को क्षमा करने का निर्णय लिया. इस मामले में रोचक बात यह रही कि जिस लड़के ने रोहन के साथ मारपीट की थी आगे चलकर उसके विवाह में रोहन की ही मुख्‍य भूमिका रही.  जबकि अनुजा उन्हें ऐसा करने से मना करती रहीं. लेकिन रोहन ने उन्‍हें समझाया कि जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है. मैं अपनी जिंदगी अपने दृष्टिकोण से चलाना पसंद चाहता हूं, दूसरे के स्‍वभाव के हिसाब से अपनी जिंदगी को नहीं बनाना चाहता.


डियर जिंदगी: सब कुछ ठीक होना!


इसलिए अगर हम अपने जीवन को सुखद, सरल, सरस बनाना चाहते हैं, तो प्रेम को अपना स्‍वभाव बनाना होगा. उसको दूसरों के नजरिए, स्‍वभाव के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता!


ईमेल dayashankar.mishra@zeemedia.esselgroup.com


पता : डियर जिंदगी (दयाशंकर मिश्र)
Zee Media,
वास्मे हाउस, प्लाट नं. 4, 
सेक्टर 16 A, फिल्म सिटी, नोएडा (यूपी)


(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)


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