एक परिवार. एक जैसे स्‍कूल. वैसे ही सलाहकार. लेकिन बच्‍चों का मिजाज जाने कैसे अलहदा हो जाता है. शायद बचपन के अलसभोर में ही उनके भीतर अंतर पैदा करने वाले 'गुण' समाहित हो जाते हैं. हम सब आगे चलकर उसी रास्‍ते पर दौड़ते, हांफते, भागते हैं, जो हम भीतर से कभी होना चाहते थे.


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एक जैसी सोच, क्षमता वाले बहुत से लोग एक जैसे रास्‍ते पर चलते भी हैं. लेकिन ऐसा क्‍यों होता है कि पहुंचते बहुत कम हैं! बहुत से अपने सफर की दिशा पलट देते हैं. कई अपनी गति को स्‍थायी कर देते हैं. ऐसे में यह सवाल उठना ही चाहिए कि आखिर हममें क्‍या है, जो अंतर पैदा करता है.


मेरे विचार से हम अभी भी शिक्षा के लिए स्‍कूल के किताबी पैटर्न पर बहुत अधिक निर्भर हैं. हम विज्ञान के प्रयोग से लेकर गांधी, लिंकन, लूथर की यात्रा तक सबकुछ निबंधों से ही समझा देना चाहते हैं. हम नेपोलियन और रवींद्रनाथ टैगोर के बारे में पढ़ाते तो हैं लेकिन यह नहीं कि उनकी यात्रा कैसी रही, वह कैसे बने, जिसके लिए वह याद किए जाते हैं. हम उनकी उपलब्‍धियों पर जरूरत से ज्‍यादा ध्‍यान देते हैं.जबकि हमारी दृष्टि उनकी यात्रा पर भी उतनी ही होनी चाहिए. हम जिस तरह जीवन के टर्निंग प्‍वाइंट्स को बच्‍चों को समझाते हैं, उनके भीतर जीवन के गुण भी उसी तरह आकार लेते हैं.


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मिसाल के लिए गांधी के जिन पक्षों से बच्‍चों को सबसे कम परिचित करवाया जाता है, वह है उनकी प्रतिबद्धता. उनकी निडरता और सत्‍य के प्रति आग्रह. इन्‍हें बेहद व्‍यवहारिक तरीके से बच्‍चों के साथ साझा किया जाना चाहिए. लेकिन इसकी जगह हम उन्‍हें रटे रटाए तरीकों से गांधी के योगदान की कहानी पढ़ाते हैं. इसलिए भी गांधी हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से दूर होते जा रहे हैं. आजादी में योगदान की यात्रा जितना ही महत्‍वपूर्ण गांधी, हमारे नायकों का जीवन भी हैं. वह अपने आपमें बच्‍चों के लिए संपूर्ण शिक्षा हैं. आज हम कल्‍पना भी नहीं कर सकते कि डॉ. भीमराव अंबेडकर को किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा था. कैसे मुश्किल स्थितियों का उन्‍होंने सामना किया होगा. तब उनके भीतर कैसा 'रसायन' रहा होगा. जिसने उन्‍होंने निराश होने से बचाया होगा. उस डिप्रेशन, तनाव से बचाया, जिसके सामने अब कहीं अधिक सबल, जागरूक समाज के बच्‍चे समर्पण कर रहे हैं.


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डियर जिंदगी में हम अपने नायकों की चर्चा इसलिए कर रहे हैं, क्‍योंकि तनाव और आत्‍महत्‍या से जुड़ी खबरों के विश्‍लेषण के दौरान एक महत्‍वपूर्ण बात यह निकल रही है कि बच्‍चों के भीतर हालात से लड़ने की क्षमता कम हो रही है. बच्‍चे बहुत जल्‍दी हार मानने लगे हैं. उनका खुद पर से भरोसा थोड़ी सी मुश्किल आते ही डगमगा जाता है


हमें इस बात को अपने मन, दिमाग पर स्‍पष्‍टता से लिखना होगा कि जीवन में हमारे आगे बढ़ने की यात्रा में हमारे किसी भी दूसरे गुण से अधिक जरूरी है- हमारा साहस, धैर्य और निडरता. यह तीनों मिलकर एक ऐसी दवा बनाते हैं, जिसकी खुराक हर उम्र, प्रोफेशन, रिलेशनशिप और तनाव का मुकाबला करने में सक्षम है.


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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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