डियर जिंदगी : ‘याद’नगर का सफर; क्या भूलें, क्या याद रखें…
कुछ लोग हमेशा अतीत की ओर देखते हुए मिल जाएंगे, शायद इसलिए कि उनके पास वर्तमान की कहानियां नहीं हैं. जाहिर है, जिसके पास वर्तमान की कहानी नहीं है, यकीनन उसका आज वैसा तो नहीं है, जैसा उसने सोचा होगा.
यादें हमारी जिंदगी के सबसे अहम हिस्सों में से एक हैं. हम जिन चीजों से बनते हैं, उनमें यादों की एक बड़ी भूमिका होती है. इसे तरह भी समझा जाना चाहिए कि यादें अतीत का प्रबंधन हैं. हम अपने अतीतको कैसे देखते हैं, कितना उसमें जीते हैं. इससे ही अतीत बनता है. याद, अतीत को सहेजना भर नहीं है, याद असल में जीवन बीमा जैसी चीज है, बचत के साथ निवेश!
कुछ लोग हमेशा अतीत की ओर देखते हुए मिल जाएंगे, शायद इसलिए कि उनके पास वर्तमान की कहानियां नहीं हैं. जाहिर है, जिसके पास वर्तमान की कहानी नहीं है, यकीनन उसका आज वैसा तो नहीं है, जैसा उसने सोचा होगा.
इस 'याद'नगर का जिक्र इसलिए क्योंकि इन दिनों बच्चों, युवाओं सबके भीतर जो चीज़ सबसे ज्यादा परेशान करने वाली है, वह है; गहरी उदासी और आत्महत्या की ओर बढ़ते कदम.
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अपनी जिंदगी के भीतर भी जाकर देखिए. हम ऐसे जी रहे हैं, मानों किसी और के हिस्से का काम कर रहे हैं. हम अपनी जिंदगी को उतना वक्त भी नहीं दे रहे हैं, जितना आईने को देते हैं. अपनी शक्ल पर फिदा रहने वाले समाज का सबसे बड़ा संकट, अपने लिए समय न होकर सेल्फी में समा जाने का है. सेल्फी समाज में इसलिए गुस्सा, अहंकार और नाराजगी बढ़ रही है, क्योंकि उसने दूसरों के प्रति कठोर होते-होते खुद को कठोरता से भर लिया है. जबकि हमें दूसरों के प्रति उदार और अपने प्रति कठोर होना चाहिए.
यादों पर एक बड़ी प्यारी कहानी है, कभी न कभी आपने भी पढ़ी होगी...
दो दोस्त हैं. बरसों से एक साथ हैं. बचपन से उनका सफर साथ शुरू हुआ. एक बार दोनों किसी नदी के किनारे से गुजर रहे थे कि उनमें सेएक को दूसरे पर बहुत तेज़ गुस्सा आ गया. उसने अपने दोस्त के गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया. इतना तेज के वहां से गुजरने वाले परिंदों को भी उसकी सिहरन महसूस हुई.
कुछ देर बाद मारने वाले को गलती का अहसास हो गया. उसके बाद थप्पड़ खाने वाले ने रेत पर लिखा, ‘मेरे अजीज दोस्त ने मुझे थप्पड़ मारा’. उसके बाद दोनों एक वीरान जंगल में पहुंच गए. जहां दलदल में गिरे दोस्त की थप्पड़ जड़ने वाले ने जान बचाई.
अपनी जान जोखिम में डालकर. बचने वाले ने इस बार चट्टान पर लिखा, ‘मेरे दोस्त ने अपनी जान पर खेलकर मेरी जान बचाई, ऐसा दोस्त सबको मिले’.
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जान बचाने वाले ने पूछा, 'भाई ऐसा क्यों. तुम्हें कष्ट हुआ तो रेत पर लिखा और जान बची तो चट्टानपर. लिखने वाले ने कहा, ‘ भाई, जिंदगी में जो कड़वा है, उसे रेत की दीवार पर ही लिखना चाहिए, ताकि हमारी स्मति से मिट जाए, वह बार-बार हमें तंग न करता रहे. और जो खुशी दे, उसे इस तरह दिल, दिमाग में लिखना चाहिए, दूसरों को बताना चाहिए, जिससे वह हमेशा हमें खुशी और दूसरों को प्रेरणा दे.
जो अपनी यादों को जितना अधिक सुखी, संवादी और सहज बनाए रखेगा, उसके चेहरे और मन पर दुखकी छाया उतनी ही कम हल्की होगी. अपने दिमाग में कंप्यूटर, मोबाइल की तरह डिलीट का बटन रखें और उन यादों को दफन करते रहें, जो आपको उस अंधेरी गुफा की ओर ले जाती हैं, जिसका नाम उदासी है. हमें अपने ही बच्चों से सीखना चाहिए, कैसे लड़ झगड़कर एक-दूसरे को माफ कर देते हैं. कैसे बस एक-दूसरे का प्रेम याद रखते हैं.
तो जब भी ‘याद’नगर की ओर जाएं, हमेशा याद रखें कि रेत पर क्या लिखना है और चट्टान पर क्या. आपकी स्मृतियां सुखद हों!
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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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