क्या मिस इंडिया कॉम्पिटीशन में हमारे यहां की मॉडल खड़े होकर जजों के सामने महिला हिंसा के आंकड़े बोलने की हिम्मत जुटा पाएंगी. क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि भारत में होने वाले किसी ब्यूटी कॉन्टेस्ट में मॉडल फिगर साइज़ की जगह महिलाओं के खिलाफ़ हो रहे अपराध के आंकड़े गिनाने लगें. ये सोच और ऐसी हिम्मत अब तक भारत की मॉडलों ने नहीं दिखाई है. लेकिन एक देश है जहां की मॉडलों ने धड़ल्ले से सबको चौंकाते हुए अपने फिगर साइज़ की बजाए महिला हिंसा के आंकड़े बताए. यह देश है पेरू. मिस पेरू कॉम्पिटीशन में जब जजों ने मॉडलों से उनकी फिगर साइज़ पूछी, तो उन्होंने देश में महिला हिंसा के आंकड़े गिनाने शुरू कर दिए. यह सभी के लिए बहुत हैरान करने वाला था, लेकिन बाद में ये मॉडल मिसाल बन गईं नई शुरुआत की.


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लेकिन क्या हम भारत में इस तरह की पहल की उम्मीद कर सकते हैं? क्या हम ये उम्मीद करें कि चमक-धमक वाली दुनिया के लोग इस सिआह सच को इतने बड़े मंचों से बोलने की हिम्मत करेंगे. जब भी कोई ब्यूटी कॉम्पिटीशन देखा तो आखिरी में विनर यही बोलती है कि वह समाज के लिए खुद को समर्पित कर देगी. महिलाओं, शोषित लोगों के लिए काम करेगी. लेकिन इसमें कितना सच है. कितनी विश्व सुंदरियां, मिस यूनिवर्स, मिस इंडिया समाज के लिए, लड़कियों के लिए जी जान से काम करती हैं. ये बातें कहने-सुनने में बहुत अच्छी लगती हैं लेकिन पेरू में मॉडल्स ने जो हिम्मत दिखाई, क्या वाकई हमारे देश की मॉडल भी ये रिस्क उठा सकती हैं. क्या ये महिला हिंसा के प्रति इतनी संवेदनशील हैं कि ब्यूटी कॉम्पिटीशन में इनके आंकड़े गिना पाएं.


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देश में तो मॉडल, हीरो, हीरोइनें सपने बेच रहे हैं. कोई गोरा बनाने की क्रीम बेच रहा है तो कोई ऐसा साबुन जिससे उम्र ठहर जाएगी. कोई ऐसे डिओ और परफ्यूम का एड कर रहा है जिससे लड़कियां खिंची चलीं आएंगी. रोज़ाना हज़ारों विज्ञापनों के केंद्र में सिर्फ़ महिला होती है. चाहे विज्ञापन किसी भी सामान का हो. किसी भी विज्ञापन में महिला को लेकर संवेदनशीलता दिखाई ही नहीं देती है. खुद महिलाएं भी खुद को इस्तेमाल होने दे रही हैं. वह वस्तु की तरह खुद को पेश कर रही हैं जिसका अपना मार्केट है. बात सिर्फ़ ब्यूटी कॉम्पिटीशन में मॉडलों की संवेदनहीनता की नहीं है बल्कि बात महिला हिंसा के प्रति संवेदनशीलता की है. दरअसल लोगों को लगता ही नहीं है कि महिला हिंसा इतना बड़ा मुद्दा है भी. रोज़ाना हज़ारों बलात्कार होते हैं, कितनी बेटियां दहेज के लिए जला दी जाती हैं, कितने छेड़छाड़ के मामले आते हैं और कितने घरेलू हिंसा के. टीवी पर दिखाए जाने वाले सरकारी जागरुकता विज्ञापनों को छोड़ दें तो गाहे बगाहे कहीं कोई महिला हिंसा को लेकर कभी कोई विज्ञापन दिखता हो.


देश में 100 साल से लेकर डेढ़ साल की बच्ची तक बलात्कार का शिकार होती हैं और लोग चर्चा तक नहीं करते. फुटपाथ पर बलात्कार हो रहा होता है और लोग आंखें मूंदकर निकल जाते हैं. किसी के घर से महिला के पिटने की आवाज़ आती है तो लोग कानों में तकिया लगाकर सोते जाते हैं. कोई सरेआम लड़की को पीटता है, उसके साथ बदतमीजी करता है, मारपीट करता है औरलोग तमाशबीन बने देखते रहते हैं. अब तो वीडियो भी बना लते हैं. मिस पेरू कॉम्पिटीशन का ज़िक्र करने का मतलब सिर्फ़ इतना है कि जिस तरह एक मुल्क की लड़कियों ने शुरुआत कर पूरे विश्व में महिला हिंसा को लेकर नई चर्चा छेड़ दी है वैसे हीहमें भी भारत में महिला हिंसा को लेकर संवेदनशील होने की ज़रूरत है.


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पिटना महिलाओं की नियति नहीं है बल्कि हर तरह के उत्पीड़न के खिलाफ़ खुलकर बोलना ज़रूरी है. महिला हिंसा कोई छोटा मुद्दा नहीं है बल्कि हमारे देश के लिए शर्म की बात है जिससे हमें निकलना होगा. हमें हर तरह की हिंसा की शिकार महिला का साथ देना होगा और आने वाली पीढ़ी के साथ वर्तमान को भी इस दानव से बचाना है. ताकि हम शान से कह सकें कि भारत देश में महिलाओं का सम्मान होता है. इज्जत महिलाओं से हिंसा में नहीं बल्कि उनके सम्मान में है. सिर्फ़ देवी कहना बंद करिए और उन्हें जीता जागता इंसान मानिए जिसे दर्द होता है, तकलीफ़ होती है आप ही की तरह. तभी महिला हिंसा में कमी आएगी लेकिन इसके लिए शुरुआत हमें अपने घरों से ही करनी होगी.


(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)