Trending Photos
सोशल मीडिया पर #MeToo अभियान चल रहा है. बहुत से लोगों को पता ही नहीं है कि आखिर इस अभियान का मतलब क्या है. दरअसल ये अभियान हॉलीवुड एक्ट्रेस एलिसा मिलानो ने शुरू किया है. #MeToo अभियान के तहत दुनियाभर की महिलाएं अपने साथ हुई यौन शोषण की घटनाओं का खुलासा कर रही हैं. #MeToo के जरिए महिलाएं अब खुलकर कह रही हैं कि हां मैं भी. लेकिन क्या इतना आसान है ये बोलना कि मैं भी यौन शोषण का शिकार हुई हूं. शायद नहीं, क्योंकि बचपन से बच्चियों का यौन शोषण करने वाला कोई और नहीं बल्कि हमारा अपना, परिवार का बहुत करीबी या सदस्य ही होता है.
सोशल मीडिया पर आम और खास सब इस अभियान के तहत अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न को लिख रही हैं. मुझे लगता है कि शायद ही ऐसी कोई भाग्यशाली लड़की हो जो किसी ना किसी तरह के यौन उत्पीड़न का शिकार ना हुई हो. 5 साल की उम्र में जब मैं गांव में ट्यूशन पढ़ने जाती थी तो हमारे टीचर के यहां हॉस्पिटल में काम करने वाला एक बंदा आता था. वह मेरी कुर्सी के पीछे खड़ा होकर मेरे गले में हाथ डाले रहता था. मुझे समझ नहीं आता था कि ये क्या कर रहा है, लेकिन अच्छा नहीं लगता था. तब किसी ने गुड टच या बैड टच के बारे में नहीं बताया था. मैं ट्यूशन जाने में कतराने लगी, लेकिन कभी कह नहीं पाई या फिर मां को समझा नहीं पाई की वह क्या हो रहा है. मैं हमेशा उससे भागती थी बहुत गुस्सा आता था. जब थोड़ी समझ आई तो दूर बचकर निकल जाती थी, क्योंकि मुझे लगता था कि वह हाथ फिर से मेरी फ्रॉक के अंदर चले जाएंगे. अपना ही बहुत करीबी बुआ के बेटे ने भी यही किया, लेकिन समझ नहीं आता था कि वह क्या था. आज जब अपने ज़ख़्म और गंदी यादें कुरेद रही हूं तो बुरा नहीं लग रहा है, बल्कि मैं चाहती हूं कि हमारे बच्चे ये सब ना झेलें. उन्हें पता हो कि उनके साथ कोई भी कोई भी ऐसी हरकत करे तो उसे क्या करना है.
ये भी पढ़ें: #Metoo: कॉमेडियन मल्लिका दुआ ने बयां किया दर्द - मेरा भी हुआ यौन शोषण
बचपन के अलावा बड़े होते हुए भी ना जाने कितने पहचान वाले हाथों ने जिस्म को छुआ है, टटोलते हुए गुज़र गए हमारे उभारों को. बाप से बड़ी उम्र के भाई ने बत्तमीज़ी की तो समझ नहीं आया कि आख़िर हुआ क्या था. खुद को बार बार धो रही थी ऐसा लग रहा था जैसे कुछ गंदा हो गया हो. मां को बताया तो मां ने बहुत हंगामा किया. लेकिन बहुत कुछ नहीं बदला. मां ने साथ दिया, लेकिन पापा बहुत कुछ नहीं कह पाए क्योंकि वो उनके रिश्तेदार थे उनके उससे अच्छे संबंध थे, जिसका खामियाज़ा मुझे भुगतना पड़ा. वो शायद कुछ बड़ा कर पाते, लेकिन मेरे धक्के ने उन्हें आगे नहीं बढ़ने दिया. इस वाकये को सालों गुज़र गए, लेकिन वो जैसा का तैसा है. जेहन में वो दिन उस तरह हरा है जैसा उस पल था. घर वाले बहुत अच्छे हैं, लेकिन मेरी नाराज़गी इस बात पर सबसे है कि मेरा साथ किसी ने नहीं दिया. चह बंदा आज भी घर आता है और मैं घर से दूर रहती हूं. मुझे मेरे घर में एक कमरे में बंद रहना होता है.
मेरी शिकायत उन मां-बाप से भी हैं जिनकी बेटियां. जिनकी ज़िम्मेदारी है अपनी बेटियों की सुरक्षा, जिनकी ज़िम्मेदारी है अपनी बेटियों का साथ देना. लेकिन वो समाज परिवार और खानदान में बदनामी के डर से बेटियों को चुप करा देते हैं. हर बेटी के मन में ऐसी घिनौनी यादें हैं, ऐसे घिनौने वाक्ये इस कदर बसे हुए हैं गुस्से से जिस्म कांपने लगता है. ये सब लिखना आसान नहीं नहीं है, लेकिन मुझे पता है कि अब नहीं बोला तो फिर कभी नहीं बोल पाएंगे. बोलना ज़रूरी है कि यौन शोषण कितनी बड़ी समस्या है. बच्चियों की स्कर्ट में, फ्रॉक में कोई अपने ही करीबी का हाथ रहता है. बच्चियां असजह होती हैं लेकिन मां -बाप हालात को या तो गंभीरता से लेते नहीं या फिर जानबूझकर अंजान बने रहते हैं. बेटी के मां-बाप होने के नाते उनकी जिम्मेदारी है कि वो अपनी बेटी की सुरक्षा करें, उसका यक़ीन करे, वो जो कहे उसका साथ दे. नहीं तो वो अपने मां-बाप से प्यार करते हुए भी नाराज़गी रखेगी. ठीक मेरी तरह.
अपनी बच्चियों को भरोसा दिलाइए कि कोई कितना भी करीबी, चाचा, ताऊ, अंकल, दोस्त, कोई भी अगर तुम्हारे साथ बत्तमीज़ी करता है तो हमें बताओ हम तुम्हारे साथ हैं. हम दोबारा ऐसा नहीं होने देंगे. सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी माता-पिता कि होती है कि वह बच्चियों को मेहफूज़ महसूस करवाएं. दुनियाभर की महिलाएं #MeToo अभियान के ज़रिए अपने ज़ख्म कुरेद रही हैं, क्योंकि कई बार ज़ख्म में से खून बह जाना ज़रूरी होता है. जरूरी होता है कि सबको मालूम चले कि क्या चीज़ कितना नुकसान पहुंचा रही है. समाज की परवाह किए बिना अपने बच्चों का साथ दीजिए, ताकि फिर कभी इस तरह के अभियान की ज़रूरत ही ना पड़े.
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)