विराग गुप्ता


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सुप्रीम कोर्ट ने 3:2 बहुमत के फैसले से यह कहा है कि तीन तलाक गैर-कानूनी और असंवैधानिक है. दो जजों ने अल्पमत के फैसले से संसद को कानून बनाने के लिए कहने के साथ तीन तलाक पर 6 महीने की रोक भी लगा दी है. जटिलताओं से भरे 395 पेज के फैसले को कैसे लागू किया जाये, इस पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं-


तीन तलाक से पीड़ित महिलायें अब क्या करें :
फैसले के बावजूद यदि तीन तलाक दिया गया तो यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना होगी और पीड़ित महिला सिविल अदालत में राहत की मांग कर सकती है. स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के तहत शादी को बरकरार रखने की मांग के साथ सीआरपीसी की धारा-125 के तहत मेंटीनेंस की मांग भी की जा सकती है. डोमेस्टिक वाइलेंस एक्ट के तहत तीन तलाक से पीड़ित महिला घर से ना निकाले जाने की प्रार्थना पर अदालत उचित आदेश पारित कर सकती है.


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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शादियों का रजिस्ट्रेशन जरूरी :
भारत ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए 1980 में की गई अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन को मान्यता दी है, जिसकी धारा-16 (2) में शादियों के रजिस्ट्रेशन को जरूरी बताया गया है. इस संदर्भ में सीमा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 11 साल पहले सन् 2006 में सभी राज्यों में शादियों के रजिस्ट्रेशन को जरूरी बनाने के लिए आदेश पारित किया था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश को उत्तर प्रदेश में विभिन्न सरकारों द्वारा 11 वर्ष तक लागू नहीं किया। योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश विवाह रजिस्ट्रेशन नियम 2017 बनाकर सभी धर्मों के लोगों की शादियों के रजिस्ट्रेशन को जरूरी कर दिया है.


मुस्लिम महिलाओं की शादी और तलाक के रजिस्ट्रेशन का कानून :
विधि आयोग ने 2008 में 211वीं रिपोर्ट में मुस्लिम महिलाओं के विवाह और तलाक के 1876 के कानून का जिक्र किया है. इस कानून की धारा-6 के अनुसार कई राज्यों में मुस्लिम महिलाओं के तलाक का रजिस्ट्रेशन आवश्यक है. देश के 6 राज्यों पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, असम, उड़ीसा और मेघालय में मुस्लिम महिलाओं के तलाक के रजिस्ट्रेशन के लिए कानून बनाये गये हैं.


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महिलाओं की सुरक्षा के लिए तलाक रजिस्टर का हो प्रावधान :
संविधान के अनुच्छेद-44 के तहत समान नागरिक संहिता का प्रावधान है जिस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद विधि आयोग द्वारा कार्यवाही की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष-2006 में पारित आदेश के बाद सभी धर्मों के लोगों की शादियों का रजिस्ट्रेशन जरूरी है. संसद द्वारा शादी के साथ तलाक के भी कानून बनाये गये हैं. जिस प्रकार से जन्म के साथ मृत्यु का रजिस्ट्रेशन जरूरी है उसी तरीके से शादी के साथ तलाक का रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं जरूरी होना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों तथा विधि आयोग की रिपोर्ट के अनुसार क्या केन्द्र सरकार इस संदर्भ में जरूरी कार्यवाही करेगी? यदि देश के सभी राज्यों में तलाक के रजिस्ट्रेशन का प्रावधान हो जाये तो तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू होने के साथ महिलाओं को समानता का संवैधानिक अधिकार हासिल हो सकेगा.


(लेखक संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)


(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)