कोई दिल पर दस्तक दे तो समझ लेना कि लक्ष्मी और कोचानियन तुम्हें बुलाने आए हैं...
प्रेम का जन्म तो स्वतंत्रता में होता है. जहां मजबूरी है, वहां प्रेम हो ही नहीं सकता. एक महान दार्शनिक ने कहा था कि प्रेम की कोई भाषा नहीं होती, प्रेम का फूल मौन में खिलता है. प्रेम संगीत है, प्रेम अंतर्नाद है, प्रेम ही अनाहद नाद है.
प्रेम क्या है? ये सवाल जितना छोटा है उतने ही गहरे अर्थ भी रखता है. ये एक ऐसा सवाल है जिसका कोई एक उत्तर तो नहीं हो सकता. तमाम नजरियों से इसके कई उत्तर हो सकते हैं. जैसेकि जिसके लिए सब कुछ कुर्बान कर देने का मन करे वो प्रेम है. जिसके लिए जीने और मरने का मन करे वो प्रेम है. जिसके लिए हंसने और रोने का मन करे वो प्रेम है. जिसकी चिंता में पूरी रात नींद ना आए और दिन ख्यालों में गुजरे तो वो प्रेम है और जिसके इंतजार में पूरी जिंदगी काट देने का मन करे वो प्रेम है. इतना सब कह देने के बाद भी हम ये दावा नहीं कर सकते हैं कि हमने प्रेम को परिभाषित कर दिया. ये शब्द ही ऐसा है जिसे कहा तो नहीं जा सकता लेकिन महसूस जरूर किया जा सकता है.
प्रेम में कोई कैसे फैसले ले सकता है, इसका एक ताजा उदाहरण केरल में देखने को मिला है. केरल के एक सरकारी वृद्धाश्रम में एक बहुत खूबसूरत महिला रहती हैं, नाम है लक्ष्मी. उनकी उम्र 65 साल है. इसी जगह एक बहुत हैंडसम इंसान भी रहते हैं, नाम है कोचानियन मेनन. उनकी उम्र 67 साल है. ये उम्र का वो पड़ाव है जहां आकर अक्सर लोग जिंदगी से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगते हैं. समाज, दुनिया और जिम्मेदारी के तमाम बोझों के बीच इस उम्र के लोग या तो भगवान को खुश करके स्वर्ग में अपनी टिकट कंफर्म करने की कोशिश कर रहे होते हैं या फिर अपने बचे हुए दिन कैसे सुरक्षित ढंग से बिताएं, ये सोचने में बिता रहे होते हैं.
ऐसे में लक्ष्मी और कोचानियन की कहानी दिल को सुकून पहुंचाती है. ये कहानी तमाम दुनियादारियों के बीच जिंदगी के प्रति एक सकारात्मक नजरिया देती है. 65 साल की लक्ष्मी और 67 साल के कोचानियन एक-दूसरे से बेशुमार मोहब्बत करते हैं. ये दोनों एक-दूसरे को 30 सालों से जानते हैं. त्रिशूर जिले के रामावर्मापुरम के वृद्ध आश्रम में शनिवार (28 दिसंबर) को लक्ष्मी और कोचानियन ने शादी कर ली.
आश्चर्य की बात ये है कि ये दोनों लोग बीच में कुछ समय के लिए एक-दूसरे से अलग भी हुए थे, लेकिन जहां प्यार होता है, वहां दूरी और देर की कोई जगह नहीं होती. अलग होने के बाद इन दोनों की मुलाकात फिर वृद्धाश्रम में हुई और ये हमेशा के लिए एक-दूजे के हो गए. जहां एक ओर समाज प्रेम पर तमाम तरह की पाबंदियां लगा रहा है, वहीं लक्ष्मी और कोचानियन की इस उम्र में शादी करने के फैसले ने कई मान्यताओं को तोड़ते हुए एक मिसाल पेश की है.
लक्ष्मी और कोचानियन के इस प्रेम को देखकर सोशल मीडिया पर भी उनको खूब दुआएं मिल रही हैं. सोशल मीडिया यूजर्स कह रहे हैं कि प्रेम की कोई उम्र नहीं होती. अगर दो लोग प्रेम करते हैं और ऐसे लोगों को अगर मिलवा दिया जाए तो ईश्वर की दुनिया में इससे बड़ा पुण्य कुछ नहीं हो सकता. लक्ष्मी और कोचानियन को ढेरों बधाइयां. लक्ष्मी और कोचानियन की शादी के मौके पर केरल के कृषि मंत्री वीएस. सुशील कुमार भी मौजूद रहे. उन्होंने खुद लक्ष्मी का हाथ कोचानियन के हाथों में सौंपा.
लक्ष्मी और कोचानियन एक-दूसरे को वृद्धाश्रम में आने से पहले से जानते थे. लक्ष्मी के पति कृषा अय्यर का कैटरिंग का बिजनेस था और कोचानियन इस बिजनेस में सहयोगी थे. 21 साल पहले लक्ष्मी के पति का निधन हो गया. इसके बाद लक्ष्मी बिल्कुल अकेली पड़ गईं. इस दौरान केवल कोचानियन ही थे जिन्होंने हर मौके पर लक्ष्मी की मदद की.
लेकिन कुछ साल पहले अचानक कोचानियन कहीं चले गए और वापस नहीं लौटे. फिर 2 साल पहले लक्ष्मी एक वृद्धाश्रम में आ गईं और हैरानी की बात ये है कि कोचानियन उन्हें यहां फिर से मिल गए. लक्ष्मी ने खुद बताया कि कोचानियन उनसे बहुत प्यार करते हैं इसलिए उन्होंने पूरा जीवन साथ में बिताने का फैसला लिया.
शादी के मौके पर लक्ष्मी ने लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी और उनके बालों पर फूलों का गजरा भी लगा था. वहीं कोचानियन भी पारंपरिक ड्रेस में काफी हैंडसम लग रहे थे.
ये कहानी इसलिए भी दिल को छूती है क्योंकि आज के समाज के माहौल को देखते हुए लक्ष्मी और कोचानियन ने बहुत हिम्मत भरा फैसला किया. हम जिस समाज में रह रहे हैं, वहां आधुनिक तो सब होना चाहते हैं लेकिन जब प्यार की बात आती है, तो उसका विरोध करने के लिए पूरा समाज आगे आ जाता है. प्यार करने वालों को तमाम तरह के नकारात्मक उदाहरण दिए जाते हैं जिससे वो अपने फैसले से पीछे हट जाएं. उनसे कहा जाता है कि तुम बहुत गलत काम कर रहे हो, तुम बहुत घिनौना काम कर रहे हो, तुम्हारे प्रेम विवाह करने के फैसले से समाज में परिवार की बदनामी हो जाएगी. समाज में हम सिर उठाकर नहीं जी पाएंगे. ऐसी तमाम दुनियादारियां प्रेम करने वालों के सामने रख दी जाती हैं. नतीजा ये होता है कि प्रेम करने वाले लोग अपने फैसले से डरकर पीछे हट जाते हैं और परिवार की मर्जी से अपना घर बसा लेते हैं.
ऐसे में भावनात्मक दवाब डालकर शादी कराने वाला परिवार तो बहुत खुश होता है लेकिन भुगतना उन लोगों को पड़ता है जो किसी और से प्रेम करते थे और उन्हें शादी किसी और से करनी पड़ी. इसका एक कारण ये भी है कि हमने अपने समाज को शादी के केंद्र पर खड़ा किया है, प्रेम के केंद्र पर नहीं. लेकिन हमारे समाज को इस बात पर ध्यान देना होगा कि प्रेम से एक सफल शादी का जन्म हो सकता है लेकिन शादी से सफल प्रेम का जन्म होना मुश्किल है.
हमारा रूढिवादी समाज आज भी ये मानता है कि शादी कर देने से 2 लोग आपस में खुद ही प्रेम करने लगेंगे. जबकि सच ये है कि 2 लोगों को एक डोर से बांध देने से उनमें प्रेम नहीं होता. वो तो बस साथ-साथ रहने से एक जुड़ाव हो जाता है. प्रेम का जन्म तो स्वतंत्रता में होता है. जहां मजबूरी है, वहां प्रेम हो ही नहीं सकता. एक महान दार्शनिक ने कहा था कि प्रेम की कोई भाषा नहीं होती, प्रेम का फूल मौन में खिलता है. प्रेम संगीत है, प्रेम अंतर्नाद है, प्रेम ही अनाहद नाद है.
(लेखक: ऋतुराज त्रिपाठी Zee News डिजिटल में सीनियर सब एडिटर हैं)
(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)